India और भारत के बीच की दूरी बढ़ रही है
सामाजिक-आर्थिक रूप से हमारा देश इंडिया और भारत में जिस तरह बंट रहा है वो
संयम श्रीवास्तव। सामाजिक-आर्थिक रूप से हमारा देश इंडिया और भारत में जिस तरह बंट रहा है वो एक सशक्त लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. अमीर और गरीब के बीच बढ़ता अंतर तो समझ में आता है पर जब क्षेत्रीय असमानता बढ़ने लगती है तो देश की एकता और अखंडता तो खतरा पैदा होने का डर पैदा हो जाता है. नीति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य गरीबी और स्वास्थ्य सुविधाओं के खस्ताहाल से लगातार जूझ रहे हैं. वहीं दूसरी ओर केरल, गोवा, सिक्किम, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्य हैं दिन प्रति दिन कमाई और स्वास्थ्य के मामले में लगातार बेहतर हो रहे हैं. इस तरह तुलना करने पर यह लगता है कि एक ही देश में संपन्न यूरोप और विपन्न अफ्रीका विकसित हो रहा है.
भारत में उत्तर भारत के राज्य बिहार-उत्तर प्रदेश-मध्यप्रदेश और राजस्थान को बहुत पहले से बीमारू राज्य की संज्ञा से नवाजा गया था पर ये राज्य इस दुष्चक्र से निकलने के बजाय इस अभिशाप में और जकड़ते जा रहे हैं. नीति आयोग ने देश का पहला मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (Multi-dimensional Poverty Index) जारी किया है, इस इंडेक्स के मुताबिक बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है. यहां की कुल जनसंख्या का 51.91 फ़ीसदी आबादी बहुआयामी गरीब है. इसके बाद झारखंड का नंबर आता है यहां की कुल जनसंख्या का 42.16 आबादी बहुआयामी गरीब है. फिर नंबर आता है उत्तर प्रदेश का यहां 37.79 फ़ीसदी लोग बहुआयामी गरीब हैं. नीति आयोग ने इस रिपोर्ट को बनाते वक्त स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को आधार बनाया है. इसके साथ ही पोषण, स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति, स्कूली शिक्षा के वर्ष, पेयजल, स्वच्छता, आवास, बैंक में खाते जैसे 12 संकेतों को भी इसमें शामिल किया गया है.
कुपोषित लोगों की बात करें तो झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बाद बिहार में सबसे ज्यादा लोग कुपोषित हैं. जबकि केरल, गोवा, सिक्किम, तमिलनाडु और पंजाब के लोगों की बात करें तो, केरल 0.71 फ़ीसदी के साथ शीर्ष पर है. उसके बाद गोवा 3.76 फ़ीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है. फिर सिक्किम 3.82 फ़ीसदी के साथ तीसरे स्थान पर है और तमिलनाडु 4.89 फ़ीसदी के साथ चौथे स्थान पर है. पंजाब 5.59 फ़ीसदी के साथ गरीबी के मामले में पांचवें स्थान पर है.
स्वास्थ्य के आधार पर भी दो भारत नजर आते हैं
गरीबी अमीरी में तो दो भारत हैं ही, स्वास्थ्य के मामले में भी भारत दो हिस्सों में बंटा है. इसे आप ऐसे देख सकते हैं कि तमिलनाडु में डायरिया के मामले बिहार के कुल मामलों से एक तिहाई से भी ज्यादा कम हैं. तमिलनाडु की तुलना में बिहार में शिक्षित महिलाएं या प्रति एक हजार की आबादी पर चिकित्सक अनुपात को भी अगर देखें तो भी बिहार बहुत पीछे है. कमजोर और ठिगने बच्चों के मामले में भी बिहार का अनुपात तमिलनाडु से 50 फ़ीसदी अधिक है. बिहार न्यूट्रीशन के मामले में भी देश का सबसे पिछड़ा राज्य है, यहां की 51.88 फ़ीसदी आबादी न्यूट्रीशन से वंचित है. वहीं झारखंड की 47.99 फ़ीसदी और मध्य प्रदेश कि 45.49 फ़ीसदी आबादी न्यूट्रिशन से वंचित है. जबकि इस श्रेणी में सिक्किम की स्थिति बेहतर है यहां सबसे कम महज़ 13.32 फ़ीसदी आबादी न्यूट्रिशन से वंचित है.
वहीं अगर मैटरनल हेल्थ की बात करें तो इसमें भी बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे गंभीर है. बिहार में 45.62 फ़ीसदी महिलाएं मैटरनल हेल्थ से वंचित हैं. जबकि बिहार के बाद सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश की है, यहां 35.45 फ़ीसदी महिलाएं मैटरनल हेल्थ से वंचित हैं. उसके बाद तीसरे स्थान पर झारखंड आता है जहां 33.07 फ़ीसदी महिलाएं मैटरनल हेल्थ से वंचित हैं.
अमीरी गरीबी के आधार पर दो भारत
केवल स्वास्थ्य के आधार पर ही भारत दो हिस्सों में नहीं बढ़ा है. बल्कि अमीरी और गरीबी के आधार पर भी भारत दो हिस्सों में नजर आता है. नीति आयोग की फर्स्ट डाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स के रिपोर्ट के मुताबिक जहां एक और बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य सबसे गरीब राज्य के रूप में देखे जाते हैं. वहीं दूसरी ओर केरल, गोवा, सिक्किम जैसे राज्य सबसे कम गरीब लोगों वाले राज्य के रूप में देखे जाते हैं. बिहार में जहां 51.91 फ़ीसदी लोग गरीब हैं. तो वहीं झारखंड में 42.16 फ़ीसदी और उत्तर प्रदेश में 37.79 फ़ीसदी लोग गरीब हैं. जबकि केरल में सिर्फ 0.71 फ़ीसदी लोग गरीब हैं और गोवा में 3.76 फ़ीसदी, सिक्किम में 3.82 फ़ीसदी लोग गरीब हैं. जो देश में सबसे कम गरीबी वाले राज्य हैं. ऐसा नहीं है कि यह फैसला सिर्फ राज्यों में हैं, केंद्र शासित प्रदेशों में जाते हैं तो वहां भी आंकड़े कुछ इसी तरह दिखाई देते हैं. जहां एक ओर दादरा नगर हवेली में 27.36 फ़ीसदी, जम्मू कश्मीर और लद्दाख में 12 .58 फ़ीसदी लोग गरीब हैं. वहीं पुडुचेरी में सिर्फ 1.72 फ़ीसदी और लक्ष्यदीप में 1.82 फ़ीसदी लोग गरीब हैं.
शिक्षा के आधार पर दो भारत
भारत सरकार का नारा है 'सब पढ़ें सब बढ़ें' लेकिन क्या जमीन पर वाकई 'सब पढ़ें सब बढ़ें' का नारा सफल हो रहा है? क्योंकि एक तरफ जहां कुछ राज्यों में शिक्षा का स्तर बेहद गिरा हुआ है, वहीं कुछ राज्यों में यह स्तर ठीक-ठाक नजर आता है. दरअसल स्कूली शिक्षा की श्रेणी में बिहार सबसे निचले स्तर पर है. जबकि केरल इसमें सबसे बेहतर स्थिति में है. स्कूली शिक्षा को मापने का आधार है कि एक परिवार तब तक स्कूली शिक्षा से वंचित माना जाता है, जब तक की वहां के 10 साल या उससे अधिक उम्र के परिवार के एक सदस्य ने कम से कम 6 साल की स्कूली शिक्षा पूरी न की हो. बिहार में ऐसे 26.27 फ़ीसदी बच्चे हैं जिन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की है. इस आंकड़े के साथ बिहार का स्थान सबसे ऊपर है. जबकि इसके बाद मेघालय है जहां 19.71 फ़ीसदी बच्चों ने स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की है. फिर झारखंड में 18.32 फ़ीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 17.77 फ़ीसदी और उत्तर प्रदेश में 17.52 फ़ीसदी बच्चों ने स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की है. जबकि वहीं अगर हम केरल की बात करें तो केरल में महज 1.78 फ़ीसदी बच्चे ही हैं, जो स्कूली शिक्षा से वंचित हैं.
अन्य मामलों में भी दो भारत नजर आते हैं
ऐसा नहीं है कि देश सिर्फ शिक्षा स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति में ही दो हिस्सों में बंटा है, बल्कि ऐसे कई क्षेत्र है जहां देश भारत और इंडिया दो रूपों में नजर आता है. केंद्र सरकार बात करती है कि उसने उज्जवला योजना चलाकर देश के हर घर में गैस सिलेंडर पहुंचा दिया. ताकि महिलाओं को खाना बनाने में तकलीफ ना हो. लेकिन क्या वाकई ऐसा हुआ है. क्योंकि नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में अभी भी 63.20 फ़ीसदी आबादी ऐसी है जो खाना बनाने के पारंपरिक ईंधन पर निर्भर है. यहां की महिलाएं आज भी उपले, लकड़ी और कोयले पर खाना बना रही हैं. पारंपरिक इंधन पर निर्भर लोगों में बिहार नंबर वन है जबकि इस मामले में सबसे अच्छी स्थिति गोवा की है जहां से 3.10 फ़ीसदी लोग ही पारंपरिक ईंधन पर निर्भर हैं. इसके साथ ही सैनिटेशन, पेयजल, बिजली, घर, संपत्ति और बैंक अकाउंट के आंकड़ों में भी भारत दो हिस्सों में बंटा नजर आता है.
सैनिटेशन के मामले में बिहार सबसे खराब राज्यों की सूची में दूसरे नंबर पर है यहां की 73.61 फ़ीसदी आबादी सैनिटेशन से वंचित है. जबकि पहले स्थान पर झारखंड है जहां 75.32 फ़ीसदी आबादी सैनिटेशन से वंचित है. वहीं अगर घर की बात करें तो बिहार की 73.73 फ़ीसदी आबादी घर से वंचित है. जबकि इस मामले में पहले स्थान पर मणिपुर है जहां 81.49 फ़ीसदी आबादी के पास घर नहीं है.
बेरोजगारी में एक भारत
जहां एक और आर्थिक स्थिति और स्वास्थ्य में भारत दो हिस्सों में बंटा नजर आता है. वहीं अगर बेरोजगारी की स्थिति में देखें तो यहां एक भारत नजर आता है. यानि केरल हो या बिहार हर जगह बेरोजगारी की समस्या एक जैसी है. द प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार और केरल दो ऐसे राज्य हैं जहां रोजगार की तलाश कर रहे और बेरोजगार रह गए युवाओं का अनुपात सबसे ज्यादा है. जबकि उच्च शिक्षा पा रहे युवाओं के मामले में यह दोनों राज्य शिखर पर हैं. 2004 से 2008 तक और 2018 से 2019 के बीच भारत के सभी बड़े राज्यों में बेरोजगारी दर बढ़ी. हालांकि इसी समयावधि में गुजरात और कर्नाटक जैसे समृद्ध, ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे मध्य आय वाले और बिहार, छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्यों में उद्योग एवं सेवा सेक्टर में रोजगार भी बढ़े हैं. जबकि केरल और महाराष्ट्र जैसे समृद्ध राज्यों में उद्योग और सेवा दोनों सेक्टर में रोजगार घटे.