बंगाल की मुख्यमंत्री ममता द्वारा केंद्र सरकार के साथ असहयोग का रवैया चिंता का विषय
पिछले दिनों बंगाल की खाड़ी में उठा चक्रवात ‘यास’ जहां एक ओर पूर्व तटीय प्रदेशों में तबाही मचा गया
लालजी जायसवाल। पिछले दिनों बंगाल की खाड़ी में उठा चक्रवात 'यास' जहां एक ओर पूर्व तटीय प्रदेशों में तबाही मचा गया, वहीं जाते-जाते यह एक ऐसा सियासी तूफान भी खड़ा कर गया, जिसमें संघीय ढांचे की कड़ियां कमजोर पड़ती दिख रही हैं। ऐसी आपदा से निपटने के लिए केंद्र-राज्य में समन्वय और सहयोग अपेक्षित होता है। यही वजह है कि 'यास' से हुए नुकसान का आकलन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल के कलाईकुंडा एयरबेस पर समीक्षा बैठक बुलाई थी, जिसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शामिल न होकर आपदा से निपटने में केंद्र का सहयोग नहीं करने का मुखर संदेश दिया।
हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रधानमंत्री से मिलने पहुंची जरूर थीं, पर आधे घंटे की देरी और ऊपर से बैठक में हिस्सा लेने के बजाय प्रधानमंत्री को नुकसान पर रिपोर्ट सौंपकर उनकी अनुमति लेकर वहां से निकल गईं। ध्यातव्य है कि आपदा से नुकसान जनता का होता है, जिससे निपटने और राहत देने के लिए राज्य और केंद्र मिलकर काम करते हैं। जहां तक बात मुख्य सचिव की है तो वह राज्य सचिवालय का प्रमुख होता है, राज्य की प्रशासन व्यवस्था का नेतृत्व करता है तथा केंद्र एवं राज्य शासन के बीच संचार की कड़ी के रूप में कार्य करता है। लेकिन प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री के साथ मुख्य सचिव का भी देरी से पहुंचना यह दर्शाता है कि मुख्य सचिव पर कर्तव्यों से इतर राजनीतिक बल ज्यादा प्रभावी था। उल्लेखनीय है कि राज्य का मुख्य सचिव आपदा के समय अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
हाजा आपदा की स्थिति में मुख्य सचिव को दिल्ली बुलाना उचित नहीं माना जा सकता। यही वजह है कि ममता ने केंद्र से मुख्य सचिव को प्रतिनियुक्ति पर बुलाने का आदेश रद करने की अपील की थी।मुख्य सचिव केंद्र और राज्य के बीच समन्वय का कार्य करते हैं, लेकिन राजनीति से प्रेरित होना प्रशासनिक अधिकारी आचार संहिता में प्रतिबंधित है। ऐसी स्थिति में अगर मुख्य सचिव उदासीनता बरतते हैं, तो उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। केंद्र सरकार की ओर से जारी आदेश में मुख्य सचिव को 31 मई की सुबह 10 बजे तक दिल्ली स्थित प्रशिक्षण विभाग के कार्यालय में रिपोर्ट करना था, लेकिन उन्होंने दिल्ली नहीं जाने का फैसला लिया। इसके बाद केंद्र सरकार की ओर से अनुशासनात्मक निर्णय लिए जाने की चर्चा थी, जिसके पहले ही उन्होंने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी। मुख्य सचिव अलापन बंद्योपाध्याय का कार्यकाल मई के आखिर में खत्म होने वाला था, लेकिन मुख्यमंत्री ने उनका कार्यकाल केंद्र सरकार से कहकर तीन महीने बढ़वा दिया। मुख्य सचिव का कार्यकाल नियमों का पालन करने के लिए ही जाना जाता है। लेकिन अलापन बंद्योपाध्याय के उपरोक्त व्यवहार के कारण गृह मंत्रालय ने उनके खिलाफ चार्जशीट जारी करने की तैयारी कर ली है। मुख्य सचिव पद से रिटायरमेंट के बावजूद केंद्र की ओर से उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई के तौर पर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत मंगलवार को उन्हें नोटिस जारी किया गया है।
बंगाल के कलाईकुंडा एयरबेस पर प्रधानमंत्री के साथ बैठक में ममता बनर्जी के शामिल नहीं होने के बाद से उठा यह विवाद जारी है। फाइल
केंद्र सरकार के पास शक्ति है कि वह किसी भी राज्य के अधिकारियों की संख्या को कम कर सकता है, यानी ज्यादा से ज्यादा अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर ला सकता है। लेकिन जब तक कोई अधिकारी राज्य सरकार के अधीन है, केंद्र उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। इन सेवाओं के जरिये सेवा शर्तें तो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं, लेकिन उनकी सेवाएं केंद्र और राज्य दोनों ले सकते हैं। बहरहाल, इसी बात को ध्यान में रखते हुए अखिल भारतीय सेवाओं की नियमावलियां इस तरह बनाई गई हैं, ताकि अधिकारी दबाव मुक्त रहकर अपना काम कर सकें। इसीलिए कैडर (संवर्ग) आवंटित करते समय ध्यान रखा जाता है कि हर राज्य में पर्याप्त संख्या में दूसरे राज्यों के निवासी पहुंचें, ताकि स्थानीय पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर काम कर सकें। केंद्र और राज्य दोनों की सहमति से ही किसी अधिकारी को केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाता है। इसके पीछे वजह सिर्फ राजनीतिक है, प्रशासनिक नहीं। लेकिन यह देश के संघीय ढांचे के लिहाज से ठीक नहीं है। इसी विवाद पर अलापन बंद्योपाध्याय को दिल्ली बुलाने के केंद्र के आदेश को असंवैधानिक बताते हुए ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख यह आदेश वापस लेने का अनुरोध किया था। फिलहाल, अगर देश के संघीय ढांचे की बात की जाए तो ममता बनर्जी ने पहले भी प्रधानमंत्री के साथ अनेक बैठकों में भाग न लेकर देश के परिसंघीय ढांचे को धता बताया है, चाहे वह कोरोना आपदा के दौरान मिलकर काम करने से संबंधित हो या तूफान से संबंधित राहत कार्ययोजना पर एकसाथ आना हो।
संघीय ढांचे को कमजोर करने में ममता की भूमिका अग्रणी रही है। कोरोना रोधी वैक्सीन की आर्पूित को लेकर अभी हाल ही में इस तरह के मामले सामने आए हैं। इस प्रकार के टकराव की स्थिति अक्सर तब आती है, जब केंद्र और राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक र्पािटयों की सरकारें होती हैं, और प्रशासनिक अधिकारी किसी राजनीतिक दल की विचारधारा से प्रभावित होते हैं। ऐसी स्थिति में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों पर केंद्र या राज्य में से किसी एक के असीमित अधिकार संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ होंगे, जो हमारे लोकतंत्र के लिए घातक साबित हो सकता है। प्रशासनिक अधिकारियों को तटस्थ होकर काम करना होता है, उनकी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं होती है। ऐसे में राज्य सरकारों को विचार करना चाहिए कि समन्वयक अभिकरण अथवा कार्यकारी निकाय को कमजोर करना तथा उसका राजनीतिक हित में उपयोग करना क्या देश के लिए उचित होगा? क्या इससे संघीय व्यवस्था को चोट नहीं पहुंचेगी? क्या राज्य सचिवालयों को राजनीतिकरण करना जायज है?
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा केंद्र सरकार के साथ असहयोग का रवैया अपनाना निश्चित ही चिंता पैदा करने वाला मामला है। सभी जानते हैं कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री व्यक्ति नहीं, बल्कि संस्था होते हैं, जिन पर जनता का विश्वास होता है। लिहाजा आपदा काल में बंगाल की जनता को सहायता देने के लिए वहां गए प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्री द्वारा यथोचित व्यवहार नहीं करना निंदनीय है। राजनीतिक मतभेदों को जनसेवा के संकल्प व संवैधानिक कर्तव्य से ऊपर रखने का यह एक दुर्भाग्यपूर्ण उदाहरण कहा जा सकता है।
[शोधार्थी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय]