जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दों के मंसूबे पूरी तरह पस्त कर पाना अब भी सुरक्षाबलों के लिए बड़ी चुनौती है। मगर पिछले हफ्ते कुपवाड़ा और अनंतनाग में जिस तरह सेना ने बड़ी कामयाबी हासिल की उससे जरूर उनकी साजिशों को पलीता लगा है। शुक्रवार को कुपवाड़ा में पांच विदेशी आतंकवादियों को मार गिराया। उसी दिन अनंतनाग से पांच आतंकी गिरफ्तार किए गए, जो सभी स्थानीय थे।
इससे दो दिन पहले कुपवाड़ा में ही दो आतंकियों को मार गिराया गया था। इसके पहले भी पिछले दो महीनों में कई आतंकियों को मुठभेड़ में मारा जा चुका है। इन कार्रवाइयों से स्पष्ट है कि सेना घाटी में दहशतगर्दों के सफाए को लेकर मुस्तैदी से काम कर रही है। इससे यह भी उम्मीद बनती है कि आतंकवादियों का मनोबल काफी कमजोर हुआ होगा।
मगर यह पहली बार नहीं है जब सेना ने इतने कम अंतराल में आतंकियों को मार गिराया या गिरफ्तार किया। वहां पिछले आठ-नौ सालों से गहन तलाशी अभियान चला कर दहशतगर्दों और उन्हें मदद पहुंचाने वालों की पहचान की जा रही है। उनके खिलाफ कार्रवाइयां भी हुई हैं। मगर फिर भी घाटी में दहशतगर्दी पर पूरी तरह रोक नहीं लग पाई है। बल्कि थोड़-थोड़े अंतराल पर वीभत्सतम साजिशों को अंजाम देने में भी कामयाब होते रहे हैं।
ताजा घटना में मारे गए सभी आतंकवादी विदेशी यानी पाकिस्तानी मूल के बताए जा रहे हैं। भारी बारिश और तूफान के बीच वे सुरक्षा इंतजामों को चकमा देकर सीमा पार करने की कोशिश कर रहे थे। दहशतगर्द ऐसी ही परिस्थितियों की ताक में रहते हैं। वे सीमापार प्रशिक्षण लेते, वहां से आकर यहां साजिशों को अंजाम देते और स्थानीय युवाओं को अपने साथ जोड़ने की योजनाएं चलाते हैं।
सीमा पर अत्याधुनिक निगरानी तंत्र के जरिए लगातार चौकसी बरती जाने का दावा किया जाता है। पड़ोसी देश में सीमा से लगे इलाकों में चल रहे दहशतगर्द शिविरों पर भी नजर बनाए रखने का दावा किया जाता है। इस तरह सीमा पार से घुसपैठ कम होने का उल्लेख किया जाता है। ताजा घटना से इस चौकसी का प्रमाण भी मिलता है। मगर फिर वही सवाल कि आखिरकार घुसपैठ पर पूरी तरह रोक क्यों और कैसे नहीं लग पाई है।
घाटी में आतंकी संगठनों के पास अत्याधुनिक साजो-सामान और वित्तपोषण कहां से पहुंच रहा है। जबकि सड़क के रास्ते दोनों देशों के बीच व्यापार भी बंद है, घाटी में मौजूद ज्यादातर ऐसे लोगों को जेलों में डाला जा चुका है, जो आतंकवादियों को वित्तीय मदद पहुंचाया करते थे।
बड़ी उपलब्धि केवल यह नहीं है कि सेना कितने दहशतगर्दों को मार गिराती है। बड़ी चिंता की बात यह है कि घाटी में दहशतगर्दी खत्म होने के बजाय और जड़ें क्यों जमाती गई है। अनंतनाग से पकड़े गए पांच आतंकवादियों से एक बार फिर जाहिर हुआ है कि स्थानीय युवाओं में हथियार उठाने को लेकर कोई हिचक नहीं है।
खुद सरकारी आंकड़ों के मुताबिक घटी में उस दौरान भी आतंकवादी संगठनों में कश्मीरी युवाओं की भर्ती न सिर्फ जारी रही, बल्कि कुछ बढ़ी हुई ही दर्ज की गई, जब अनुच्छेद तीन सौ सत्तर हटने के बाद पूरे जम्मू-कश्मीर में कर्फ्यू था, संचार सेवाएं ठप थीं। सबसे बड़ी चिंता की बात यही है कि आखिर कश्मीरी युवाओं को हाथों में हथियार उठाने से रोकने में कामयाबी नहीं मिल पा रही। जब तक स्थानीय लोगों का दहशतगर्दों को समर्थन नहीं रुकेगा, तब तक वहां अमन-चैन का माहौल कायम करना मुश्किल होगा।
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