जलवायु आपदाएं रोकने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे; नेट जीरो की अपनानी होगी राह

साल 2021 अंततः जलवायु के नजरिए से एक व्यर्थ अवसर साबित हुआ

Update: 2022-01-15 08:27 GMT
आरती खोसला का कॉलम: 
साल 2021 अंततः जलवायु के नजरिए से एक व्यर्थ अवसर साबित हुआ। अब 2022 को लेकर उम्मीद है कि शायद कुछ बदलाव आए। 2021 तो जलवायु आपदाओं के लिए याद किया जाएगा। 2021 की शुरुआत स्पेन में रिकॉर्ड शीत लहर के साथ हुई। जम्मू-कश्मीर में कई सालों बाद ऐसी कड़ाके की ठंड देखने को मिली। फरवरी में उत्तराखंड के चमोली में अचानक बाढ़ आ गई। एक बार फिर उत्तरी गोलार्ध में भी दक्षिणी गोलार्ध की तरह ही जलवायु परिवर्तन का असर दिखा।
फरवरी के अंत में एक बर्फीले तूफान ने दक्षिणी और मध्य अमेरिका के कई हिस्सों को जमा दिया। फिर जून-जुलाई में पैसेफिक उत्तर-पश्चिम में जबरदस्त लू चली, जिसका असर पांच करोड़ लोगों पर पड़ा। पश्चिम जर्मनी में रिकॉर्ड बारिश से आई बाढ़ के कारण कम से कम 220 लोगों की जान गई। जंगलों की आग का कहर 2021 में जारी रहा। खासतौर से साइबेरिया, अमेरिका और तुर्की में।
इन आग की घटनाओं से कुल 176 करोड़ टन कार्बन इमीशन हुआ, जो कि जर्मनी के सालाना उत्सर्जन का दोगुना है और पूरे यूरोपियन यूनियन के उत्सर्जन के 50% के बराबर है। 2021 के दौरान हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा में भूस्खलन होने, बाढ़ आने और बादल फटने जैसी घटनाओं से 164 लोगों की मौत हो गई। पश्चिमी तट पर- ताउते चक्रवात के कारण भारी तबाही हुई और 50 से अधिक लोग मारे गए।
वैज्ञानिकों ने चक्रवात की इस तीव्रता के पीछे जलवायु परिवर्तन को एक वजह बताया। पूर्वी समुद्र तट पर चक्रवात यास के कारण उड़ीसा, बंगाल, झारखंड में 14 लोगों की जान गई। कोयला उत्पादन में भी तेजी से वृद्धि हुई और कार्बन उत्सर्जन भी 2020 के निचले स्तर से वापस उछल कर ऊपर आ गया क्योंकि अर्थव्यवस्थाएं धीरे-धीरे महामारी से उबर गईं। 2021 में जापान स्थित रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमेनिटी एंड नेचर ने एक अध्ययन में बताया कि देश के सबसे अमीर 20% लोगों का कार्बन फुट प्रिंट गरीबों (₹140 रु. प्रतिदिन से कम कमाने वाले) की तुलना में सात गुना अधिक है।
इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अब धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री की सीमा में नहीं रोका जा सकता। नवंबर 2021 में ग्लासगो, स्कॉटलैंड में COP26 शिखर सम्मेलन भी आयोजित हुआ। ग्लासगो समझौते में माना गया कि जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की जरूरत है। लेकिन यह बिना कार्रवाई के ठोस कदम उठाए बिना पृथ्वी के तेजी से गर्म होने रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का अनुमान है कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 2030 तक प्रति वर्ष 300 अरब डॉलर की जरूरत होगी, जो अनुमान से बहुत कम है। ऐसे में फिलहाल विकासशील देशों को अक्षय ऊर्जा स्रोतों में ट्रांजिशन करने के लिए जलवायु वित्तपोषण की तत्काल आवश्यकता है।
अंततः मुद्दे की बात ये है कि सार्थक जलवायु कार्रवाई के लिए समय बर्बाद करने का अब समय बचा नहीं है और हर दिन आने वाले कल में अधिक पारिस्थितिक रूप से निर्माण करने का एक अवसर है। हर दिन अपना कार्बन फुटप्रिंट कम करना ज़रूरी है। तभी 2022 में अगर हम नित नई आने वाले आपदाओं से निजात हासिल करना चाहते हैं, तो हमें नेट जीरो यानि शून्य कार्बन उत्सर्जन की राह अपनानी होगी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
Tags:    

Similar News

ईर्ष्या हद
-->