भंवर में श्रीलंका

भीषण आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका में जब आपातकाल और सख्त कर्फ्यू की घोषणाओं का जनअसंतोष और सड़कों पर चल रहे प्रदर्शन पर खास असर होता नहीं दिखा तो रविवार रात लगभग पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया।

Update: 2022-04-05 03:50 GMT

नवभारत टाइम्स: भीषण आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका में जब आपातकाल और सख्त कर्फ्यू की घोषणाओं का जनअसंतोष और सड़कों पर चल रहे प्रदर्शन पर खास असर होता नहीं दिखा तो रविवार रात लगभग पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफों का मकसद बताया गया राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को संकट से उबरने के अपने प्रयासों को आगे बढ़ाने में मदद पहुंचाना। अगले दिन राष्ट्रपति की ओर से जिन चार प्रमुख मंत्रियों को संपूर्ण मंत्रिमंडल के गठन तक कामकाज संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई, उनमें रेखांकित किए जाने लायक बात यह रही कि वित्त मंत्री का पद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के भाई बासिल राजपक्षे से ले लिया गया। लेकिन जरूरी वस्तुओं की किल्लत से त्रस्त श्रीलंकाई नागरिकों का गुस्सा इस कवायद से ठंडा पड़ेगा ऐसा लगता नहीं है। 2019 में ही मजबूत नेतृत्व और निर्णायक कदमों के वादे पर जबर्दस्त जनसमर्थन से राष्ट्रपति पद पर पहुंचे गोटबाया राजपक्षे और उसके अगले साल वैसे ही बहुमत से सत्ता में आई उनकी पार्टी के प्रति असंतोष चरम पर पहुंचा दिख रहा है। हालांकि मौजूदा संकट के लिए पूरी तरह से वर्तमान सरकार को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसकी जड़ सिविल वॉर के बाद अधिक से अधिक विदेशी पूंजी आमंत्रित करने वाली नीति में है। हालांकि शुरू में उससे प्रति व्यक्ति आमदनी बढ़ाने में कुछ मदद मिली, लेकिन दीर्घकालिक नजरिए से यह नीति घातक साबित हुई।

2006 से 12 के बीच बाहरी कर्ज तीन गुना बढ़ गया और कुल सार्वजनिक कर्ज जीडीपी के 119 फीसदी तक पहुंच गया। 2019 में ईस्टर पर हुए आतंकी हमले ने श्रीलंका में पर्यटन को काफी नुकसान पहुंचाया जो इसकी आमदनी का प्रमुख स्रोत रहा है। कोरोना महामारी ने पर्यटन को लगभग ठप ही कर दिया। सख्त लॉकडाउन के सरकार के फैसले ने हालात और बदतर बना दिए। रही-सही कसर यूक्रेन युद्ध ने पूरी कर दी। अब आलम यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार खाली पड़ा है। बिजली कटौती, पेट्रोल संकट, दवाओं की कमी और खाने के लाले- इन सबसे कैसे निपटें, यह वहां की सरकार को समझ नहीं आ रहा। आईएमएफ से लोन पाने के लिए उसकी शर्तों के अनुरूप सरकार ने मुद्रा का जो अवमूल्यन किया उससे महंगाई अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई। भारत ने मदद का हाथ जरूर बढ़ाया है, उसका फायदा भी मिला है, लेकिन संकट के जिस भंवर में श्रीलंका पड़ चुका है, उससे उबरने के लिए यह काफी नहीं है। अब सवाल सिर्फ श्रीलंका का नहीं, इस पूरे क्षेत्र की स्थिरता का है। पहली जरूरत यह है कि श्रीलंकाई सरकार को लोगों का समर्थन हासिल हो और वह जनता को साथ लेकर मुश्किल स्थिति से बाहर निकलने के उपाय करे।


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