कलह के कल्ले

पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ फूटे असंतोष को बेशक फिलहाल कांग्रेस समिति ने शांत करने में कामयाबी हासिल कर ली है,

Update: 2021-06-24 02:56 GMT

पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ फूटे असंतोष को बेशक फिलहाल कांग्रेस समिति ने शांत करने में कामयाबी हासिल कर ली है, मगर दावा करना मुश्किल है कि अब वास्तव में वहां सब कुछ ठीक-ठाक हो गया है। कांग्रेस समिति ने दावा किया है कि पंजाब कांग्रेस एकजुट होकर अगला विधानसभा चुनाव लड़ेगी। मगर जिस तरह अमरिंदर सिंह को पिछले कुछ दिनों में दो बार दिल्ली तलब किया गया और इस बार जब वे केंद्रीय कमान से मिलने पहुंचे, तो न राहुल गांधी ने उन्हें मिलने का वक्त दिया और न ही सोनिया गांधी ने, उससे साफ है कि केंद्रीय नेतृत्व भी उनसे संतुष्ट नहीं है। राहुल गांधी ने असंतुष्ट नेताओं से अलग-अलग बात की। फिर वे वापस लौट गए। मगर पंजाब कांग्रेस में सतह के नीचे उथल-पुथल अभी शांत नहीं हुई है। पंजाब विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं और ऐसे समय में पार्टी के भीतर असंतोष उसके लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। पहले ही अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी से हाथ मिला कर कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। ऐसे में अगर कांग्रेस कार्यकर्ता और नेताओं में असंतोष बना रहता है, तो उसकी मुश्किलें बढ़ेंगी ही।

कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ न केवल नवजोत सिंह सिद्धू ने, बल्कि कई असंतुष्ट विधायकों और मंत्रियों ने भी खुल्लमखुल्ला मोर्चा खोल रखा है। वे सब मुख्यमंत्री के कामकाज के तरीके से नाराज हैं। उनका कहना है कि अमरिंदर सिंह न तो अपने मंत्रियों और विधायकों से ठीक से बात करते हैं और न किसी फैसले में आमराय बनाने का प्रयास करते हैं। वहां कांग्रेस नेताओं की यह शिकायत नई नहीं है। शुरू से अमरिंदर सिंह के खिलाफ असंतोष के स्वर उभरते रहे हैं। दो साल पहले भी इसी तरह तनातनी बढ़ी थी, तो मंत्रिमंडल में फेरबदल करके असंतुष्ट नेताओं को शांत करना पड़ा था। मगर इस बार तो सरकार में शामिल नेता भी मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। इसे लेकर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की चिंता समझी जा सकती है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पंजाब ही एक ऐसा राज्य है, जहां कांग्रेस को अपनी कामयाबी की कुछ उम्मीद थी, मगर वहां पार्टी में कलह से इस उम्मीद पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
किसी भी राज्य में मतदाता पार्टी के मुखिया का चेहरा, उसके कामकाज और विश्वसनीयता के मद्देनजर ही जनादेश देता है। इस मामले में पंजाब के लोग अमरिंदर सिंह से निराश ही नजर आते हैं। उनके कामकाज में ऊर्जा नजर नहीं आती। इसके अलावा संगठन के स्तर पर भी कांग्रेस वहां शिथिल ही बनी हुई है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष ने पिछले साल इस्तीफा दे दिया था, पर केंद्रीय नेतृत्व ने उसे स्वीकार नहीं किया। तब से वे अध्यक्ष तो हैं, पर उनमें जमीन पर उतर कर काम करने का जज्बा नजर नहीं आता। संगठन में लंबे समय से अनेक पद खाली पड़े हैं। अब उन्हें भरने पर बल दिया जा रहा है, मगर चुनाव के वक्त यह कवायद कितनी असरदार साबित होगी, कहना मुश्किल है। फिर केंद्रीय स्तर पर भी कांग्रेस में कोई संभावना नजर नहीं आ रही। इन सबसे आम कार्यकर्ता और मतदाता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसका नतीजा यह होता है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते हैं, नेता नए विकल्प और संभावनाएं तलाशना शुरू कर देते हैं। पंजाब कांग्रेस जब तक इन चुनौतियों से पार पाने के स्थायी उपाय तलाश नहीं करती, तब तक कहना मुश्किल है कि वहां फिर कब कलह के कल्ले फूट पड़ेंगे।


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