तालिबान में फूट?

अमेरिकी फौज की वापसी के बाद तालिबान ने जितनी आसानी से काबुल पर कब्जा किया, उससे आगे की उसकी राह उतनी ही मुश्किल लग रही है।

Update: 2021-09-07 03:20 GMT

अमेरिकी फौज की वापसी के बाद तालिबान ने जितनी आसानी से काबुल पर कब्जा किया, उससे आगे की उसकी राह उतनी ही मुश्किल लग रही है। पिछले शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद नई सरकार का ऐलान किया जाने वाला था, लेकिन वह समयसीमा कब की खत्म हो चुकी। अभी तक यह भी साफ नहीं हुआ है कि अगली सरकार के स्वरूप को लेकर कोई सहमति बन पाएगी या नहीं और बनेगी तो कब तक। इस बीच तालिबान के विभिन्न धड़ों में मतभेद इतने गहरा गए हैं कि वे हिंसक संघर्ष के रूप में प्रकट होने लगे हैं।

काबुल से आ रही खबरों के मुताबिक हक्कानी ग्रुप के लड़ाकों से हुई ऐसी ही एक झड़प में मुल्ला अब्दुल गनी बारादर जख्मी हो गए और उनका पाकिस्तान में इलाज चल रहा है। हालात इतने गंभीर हो गए कि अब तक खुद को अफगानिस्तान में शांति स्थापना की कामना तक सीमित बताने वाले पाकिस्तान को तत्काल अपनी कथित न्यूट्रल भूमिका से कूद कर ट्रबलशूटर के रोल में आना पड़ा। आईएसआई चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद शनिवार को ही काबुल पहुंच गए और सभी पक्षों से बातचीत के जरिए बीच का कोई रास्ता निकालने में लग गए।
इस बीच तालिबान लड़ाकों ने पंजशीर घाटी पर अपने कब्जे का दावा पेश कर दिया है। हालांकि नैशनल रेजिस्टेंस फ्रंट ने इन दावों को गलत बताते हुए लड़ाई जारी रखने की बात कही है, लेकिन तालिबान की ओर से जारी किए गए विडियो से साफ लगता है कि पंजशीर के प्रमुख ठिकानों पर वे काबिज हो चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस कब्जे के पीछे भी पाकिस्तान का हाथ बताया जा रहा है। नैशनल रेजिस्टेंस की तरफ से कहा गया है कि तालिबान के वेश में पाकिस्तान वायुसेना के जवान लड़ रहे हैं। तालिबान के साथ पाकिस्तान की सांठगांठ इस कदर उजागर हो चुकी है कि अब उसके खंडन का कोई खास मतलब नहीं रह गया है।
फिर भी यह कहना मुश्किल है कि पाकिस्तान की मदद तालिबान के आपसी मतभेदों को सुलझा पाएगी या जाने अनजाने इसे और उलझा देगी। फिलहाल हक्कानी नेटवर्क ने साफ कर दिया है कि अखुंदजादा को सुप्रीम लीडर बनाने का प्रस्ताव उसे मान्य नहीं है। अन्य ग्रुपों की भी अपनी अलग प्राथमिकताएं हैं। इनमें से कौन-कौन स्वेच्छा से अपनी प्राथमिकताओं को छोड़ने के लिए राजी होगा और क्यों यह देखने वाली बात होगी। आम तौर पर अगर मतभेदों को बंदूक के सहारे सुलझाने की आदत हो जाती है तो शांतिपूर्ण बातचीत के रास्ते किसी हल तक पहुंचना लगभग नामुमकिन हो जाता है। अफगानिस्तान में होम करते हुए हाथ जलाने वालों की संख्या कम नहीं है। देखना यह होगा कि अमेरिका की ताजा मिसाल के बाद भी अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में नाक घुसाने वाले पाकिस्तान की आगे क्या गति होती है।

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