अंतरिक्ष अनुसंधान और मंगलयान

खासकर यह सवाल कि क्या मंगल पर जीवन संभव है और क्या इंसान वहां जाकर अपनी रिहाइश के लिए बस्तियां बसा सकता है। अगर पृथ्वी से मंगल की औसत साढ़े बाईस करोड़ किलो मीटर दूरी तय करने में हमारे यान पांच-छह महीने के बजाय एक महीने का वक्त लेने लगें, तो संभव है कि इंसान पृथ्वी के बाद मंगल को अपना दूसरा ठिकाना बनाने के बारे में सोच सकता है।

Update: 2022-10-13 05:18 GMT

अभिषेक कुमार सिंह; खासकर यह सवाल कि क्या मंगल पर जीवन संभव है और क्या इंसान वहां जाकर अपनी रिहाइश के लिए बस्तियां बसा सकता है। अगर पृथ्वी से मंगल की औसत साढ़े बाईस करोड़ किलो मीटर दूरी तय करने में हमारे यान पांच-छह महीने के बजाय एक महीने का वक्त लेने लगें, तो संभव है कि इंसान पृथ्वी के बाद मंगल को अपना दूसरा ठिकाना बनाने के बारे में सोच सकता है।

इसे संयोग कहा जा सकता है कि 2014 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यान मार्स एटमास्फीयर एंड वोलाटाइन इवोल्यूशन (मावेन) और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का मार्स आर्बिटर मिशन (मंगलयान-1) लगभग साथ-साथ मंगल तक पहुंचे थे। पर उस वक्त की गई इनकी तुलना बताती है कि कई चीजें इत्तिफाक नहीं थीं। मसलन, 4026 करोड़ रुपए के खर्च से मंगल तक पहुंचे मावेन के मुकाबले करीब दस गुना कम लागत (450 करोड़ रुपए) वाले हमारे मंगलयान यानी मार्स आर्बिटर का पहले ही प्रयास में सफल होना कोई संयोग नहीं था।

इसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति और ठोस वैज्ञानिक इरादों के अलावा व्यापार की सोची-समझी रणनीति काम कर रही थी, जो भारत जैसे एक विकासशील देश को बेहद किफायत में अंतरिक्ष मिशन चला कर अंतरिक्ष में कमाई के मौके दिला रही है। अब हमारा मंगलयान खामोशी के साथ विदा हो गया है। बहुतों को लग सकता है कि अब भारत के अंतरिक्ष मिशन का क्या होगा और आखिर मंगलयान ऐसा क्या देकर गया, जिसे याद रखा जाएगा और जिसकी बुनियाद पर हमारे अगले अंतरिक्ष मिशनों का भविष्य तय होगा।

गौरतलब है कि मंगलयान की चर्चा का प्रमुख आधार इस पर हुआ खर्च था। 5 नवंबर 2013 को इसरो के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से पोलर सेटेलाइट वीकल (पीएसएलवी) सी-25 की मदद से प्रक्षेपित मंगलयान 24 सितंबर, 2014 को मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचा था। फिलहाल सूचना यह है कि महज छह महीने के लिए मंगल ग्रह की कक्षा में परिक्रमा करने के लिए भेजा गया मंगलयान निर्धारित की गई मियाद से सोलह गुना ज्यादा लंबी उम्र गुजारने के बाद आखिरकार खामोश हो गया।

इसरो के यूआर राव सेटेलाइट सेंटर के निदेशक की ओर से 27 सितंबर, 2022 को जारी एक अनौपचारिक सूचना के मुताबिक अब मंगलयान से हमारा संपर्क टूट चुका है। इसकी वजह है मंगल पर लगातार लगे सूर्यग्रहण, जिनमें से एक इस साल साढ़े सात घंटे तक चला था। इन सूर्यग्रहणों के कारण मंगलयान में लगी सौर बैटरियां नाकाम हो गईं। उल्लेखनीय है कि मंगलयान की बैटरियां सूरज से रोशनी न मिलने की सूरत में एक घंटे चालीस मिनट तक ही चार्ज रह पाती थीं।

हालांकि साढ़े सात घंटे लंबे ग्रहण के बावजूद बैटरियों ने मंगलयान को संचालित करने की कोशिश की, लेकिन वापस पहले वाली हालत में आना संभव नहीं हुआ। फिर भी यह उपलब्धि कोई कम बड़ी नहीं है कि इन बैटरियों से मंगलयान आठ साल तक काम करता रहा, जबकि उसका निर्माण छह महीने के संचालन के लिए किया गया था।

मंगलयान-1 के बाद भारत के मंगल मिशनों का अब कोई भविष्य है या नहीं- इसे लेकर कई चर्चाएं हैं। जैसे कहा जा रहा है कि अब इसरो की प्राथमिकता इंसानों को अंतरिक्ष में ले जाने वाली परियोजना- गगनयान और चंद्रयान-3 है। इसके अलावा सूर्य के नजदीकी अध्ययन के लिए आदित्य- एल 1 भी इसरो की प्राथमिकता सूची में है।

भारत और उसके अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान- इसरो के लिए किसी भी परियोजना का महत्त्व उसके आर्थिक पहलू, देश तथा जनता को उससे मिलने वाले लाभों पर आधारित होता है। संभवत: इसीलिए अब भारत का ध्यान मंगलयान-2 से ज्यादा दूसरी परियोजनाओं पर है। मगर उल्लेखनीय है कि मंगलयान-1 से भारत को अंतरिक्ष की होड़ में आगे बने रहने, मंगल ग्रह के करीबी अन्वेषण के साथ इस क्षेत्र के कारोबारी दोहन का वह मौका मिला, जो शायद इसके बिना मिलना संभव न होता।

मंगलयान अभियान का उद्देश्य मंगल के वातावरण के अध्ययन के साथ वहां की जलवायु में बदलाव की पड़ताल करना था। इसके लिए मंगलयान में कई ऐसे आधुनिक उपकरण लगाए गए, जो मंगल के वातावरण में मौजूद मीथेन गैस से लेकर ऊपरी वायुमंडल में हाइड्रोजन कणों की उपस्थिति दर्ज कर सकते थे।

मंगलयान में लगाए गए करीब पंद्रह किलोग्राम वजनी उपकरण और सेंसरों ने सतह पर मौजूद खनिजों का पता लगाने, मंगल के वातावरण में मीथेन गैस की मात्रा का आकलन करने के लिए तस्वीरों के जरिए मंगल की विभिन्न जगहों की बनावट का सटीक ब्योरा प्रस्तुत किया। अपने उच्च क्षमता वाले कैमरे की मदद से उसने वलयाकार परिक्रमा पथ में भ्रमण करते हुए जो तस्वीरें लीं, उनकी सहायता से इसरो के वैज्ञानिकों ने मंगल का 'फुल डिस्क मैप' तैयार किया।

मंगल पर आए धूल के तूफान का अध्ययन करने, यंत्र मेनका की मदद से ग्रह की सतह से 270 किलोमीटर ऊपर आक्सीजन और कार्बन डाई-आक्साइड की मात्रा का आकलन करने के साथ-साथ मंगल के 'एक्सोस्फेयर' में 'हाट आर्गन' की खोज करने जैसे कई अन्य महत्त्वपूर्ण काम मंगलयान ने किए। मंगल ग्रह के 'सोलर डायनेमिक्स' का जो अध्ययन इसरो मंगलयान की बदौलत कर पाया, उसके आधार पर इस संगठन को 'सेटेलाइट इमेजरी' जैसी अंतरिक्ष सेवाओं के लिए कई देशों से कारोबारी अनुबंध हासिल हुए हैं।

बहरहाल, मंगलयान अब विदा हो चुका है, लेकिन कई सवाल हैं, जिनके उत्तर अभी खोजे जाने हैं। खासकर यह सवाल कि क्या मंगल पर जीवन संभव है और क्या इंसान वहां जाकर अपनी रिहाइश के लिए बस्तियां बसा सकता है। अगर पृथ्वी से मंगल की औसत साढ़े बाईस करोड़ किलोमीटर दूरी तय करने में हमारे यान पांच-छह महीने के बजाय एक महीने का वक्त लेने लगें, तो संभव है कि इंसान पृथ्वी के बाद मंगल को अपना दूसरा ठिकाना बनाने के बारे में सोच सकता है।

असल में, जीवन के सिलसिले में मंगल एक संभावना क्यों है- इसकी बड़ी वजह मंगल ग्रह का अब तक अनुमानों के विपरीत सूखा और बंजर ग्रह नहीं होना है। अमेरिकी स्पेस एजंसी- नासा के अंतरिक्ष यान 'मार्स रीकानिसेंस आर्बिटर से लिए गए चित्रों और प्रेक्षणों के आधार पर मंगल पर प्रचुर मात्रा में पानी की मौजूदगी का दावा किया जा चुका है। उन चित्रों के विश्लेषण में मंगल की एक सतह पर ऊपर से नीचे की ओर बहती हुई ऐसी धाराओं के प्रमाण मिले हैं जो करीब पांच मीटर चौड़ी और सौ मीटर तक लंबी हैं।

ये जलधाराएं कम तापमान या फिर सर्दियों में गायब हो जाती हैं और तापमान बढ़ने पर यानी गर्मियों में एक बार फिर प्रकट हो जाती हैं। तस्वीरों के अध्ययन से यह भी साफ होता है कि मंगल ग्रह पर नमक, पानी के जमाव और पानी के वाष्पीकृत होने के संकेत हैं। ये तीनों चीजें किसी सतह का तापमान बदल सकती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि ऐसे स्थान पर पानी लंबे समय तक मौजूद रह सकता है।

खास बात यह है कि मंगल ग्रह पर पानी का जमाव तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस ही है, लेकिन वहां काफी कम दबाव है। इस वजह से से पानी दस डिग्री तापमान पर ही वाष्पित हो जाता है, जबकि पृथ्वी पर पानी को भाप बनने के लिए सौ डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। हो सकता है कि मंगल का पानी इसी तरह वाष्पित होकर अंतरिक्ष में चला गया हो।

यानी यह भी हो सकता है कि जिस पृथ्वी पर आज हम जीवन देख रहे हैं, उसमें भी मंगल ग्रह पर मौजूद रहे पानी की भूमिका हो सकती है। साफ है कि मंगल ग्रह को लेकर कई और सवाल अनुत्तरित हैं। ऐसे में अगर भारत और इसरो निकट भविष्य में मंगल पर भेजे जाने वाले नए मिशन (यान व रोवर) की ओर बढ़ते हैं तो निश्चय ही वे वैज्ञानिक अनुसंधानों और मंगल को अंतरिक्ष के नए पड़ाव के रूप में स्थापित करने में हमारी मदद कर सकते हैं।

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