समाज की ऊंची नाक और वो "फंसाने वाली चालू लड़कियां"
गुजरात के डाकोर में एक 14 साल की बच्ची को सजा दी गई
यूं ही, बस यूं ही, बदनाम होकर जीती है। लड़की जब प्यार में पड़ जाती है। लड़के का प्यार,
जवानी का खुमार।
और लड़की पर है,
बिगड़े लच्छन का भूत सवार।
ये भूत तो उतारना ही होगा,
लड़की को सुधारना ही होगा।
तो चलो मिलकर तय करते हैं,
कैसे उतारेंगे हम अपना फ्रस्ट्रेशन।
आखिर तो लड़की ने तोड़ी हैं,
मर्यादा और परम्परा।
तो चलो उसे सबक सिखाते हैं,
प्रेम का दुस्साहस फिर न हो, ऐसा पाठ पढ़ाते हैं।
करते हैं उसको फिर से पवित्र,
सही राह दिखलाते हैं।
अपनी इज्जत के लिए
उसकी इज्जत से खेल जाते हैं।
गुजरात के डाकोर में एक 14 साल की बच्ची को सजा दी गई। ज्यादा कुछ नहीं सिर्फ उसे गंजा किया गया, उसके मुंह पर कालिख पोती गई और उसके सिर पर जलता, टूटा मटका रखकर उसे लोगों के बीच घुमाया गया। इस बीच लड़की रोती रही-बिसूरती रही लेकिन लोगों ने सजा में कटौती नहीं की। और फिर लड़की के 'पापों' को तारते हुए एक 'भले' आदमी से उसकी सगाई भी कर दी गई। लीजिए साहब प्रेम कहानी खत्म।
गुजरात के हारजी गांव की एक जनजाति की इस नाबालिग ने एक आदमी से प्रेम करने और उसके साथ भाग जाने की हिम्मत दिखाई थी। ये हरकत उस जनजाति के हिसाब से जघन्य अपराध की श्रेणी में आती है। लिहाजा लड़की पकड़ी गई और फिर उसके लिए सजा मुकर्रर हुई।
लड़की के कथित प्रेमी को पुलिस ने पकड़ लिया है और उसके विरुद्ध अपहरण, बलात्कार जैसी कुछ धाराओं में मामले दर्ज कर लिए गए हैं। इसके अलावा करीब 20-25 और भी लोगों के विरुद्ध भी शिकायत दर्ज की गई है। लेकिन लड़की की सजा के लिए न शिकायत दर्ज होने का इंतज़ार किया गया न ही उसकी सुनवाई हुई। न ये जानने की कोशिश ही की गई कि उसपर क्या बीती। आखिर है तो वो 14 साल की बच्ची ही। लेकिन औरत तो पैदा होने से मरने तक सिर्फ औरत ही होती है। बच्ची, किशोरी जैसे शब्द उसके लिए नहीं रचे जाते।
दरअसल, हमारे देश में ऐसी कई जनजातियां और पंचायतें हैं जहां आज भी आदमी आदम है] लेकिन औरत हौव्वा नहीं हौवा है। अशिक्षा, जानकारी का अभाव, आधारभूत सुविधाओं का अभाव और गरीबी ऐसी जगहों पर चंद आदमियों के बनाए कानून का पालन करती है। सिर झुकाए, सहमे और घबराए। उन्हें न आवाज उठाने का अधिकार है, न ही यह मालूम है कि मौलिक अधिकार
किस चिड़िया का नाम है।
हर चुनाव में यहां भी जन प्रतिनिधि आते हैं लेकिन वे भी बस उनके सामने सिर झुका लेते हैं जिनके रौब से उनका चुनाव जीतना तय है। तो जनाब यहां शिक्षा पहुंचाने की भला क्या जरूरत? चल तो रहा है सब अच्छे से। अगर इस बीच बात मानव अधिकार या महिला आयोग तक पहुंची तो कुछ दिनों लड़की की और हो सकेगा तो उसके नाम की भी नुमाइश हो जाएगी।
फोटो तो वायरल हो ही गया है। जड़ में बदलेगा कुछ नहीं। फिर एक दिन ये लड़की चार-पांच बच्चों को जन्म देने और जीते जी रोज अपने पाप की सजा भुगतने के बाद शायद मोक्ष पा जाएगी। अरे, न न.... पापी लोगों को मोक्ष थोड़े ही न मिलता है। तो वो मरने के बाद नरक में जाएगी।
ये या ऐसी किसी भी लड़की के घर से भागने, उसके प्रेम में पड़ने या कहिये इस उम्र में किसी के आकर्षण में पड़ने के की स्थिति को कोई जानने का इच्छुक नहीं होता। लोगों को तो बस पिटती, जलील होती या कुछ मामलों में दूजों को पीटती औरत का वीडियो बनाने में मजा आता है। भई, असली मजा तो एक्शन में है।
टीन एज में इस तरह के आकर्षण का होना आम है। हां इसके चलते बच्चों के दिल भी टूटते हैं, वे इमोशनली बहुत उथल-पुथल से गुजरते हैं लेकिन इस पूरे समय उन्हें ठीक से बैठकर समझाने वाला, उन्हें बिना मारे-पीटे गलती से सबक लेकर आगे बढ़ने और आत्मविश्वास से खुद को फिर खड़ा करने में सहायता करने वाला चाहिए होता है।
उस बच्ची ने जो किया उसके पीछे मासूम से सपनों से लेकर भूख, गरीबी और पिछड़ी जिंदगी से आगे निकलने की चाहत जैसी चीजें रही होंगी। पता नहीं वह उस सपने को निश्चिंतता से कुछ मिनिट्स भी जी पाई होगी या नहीं?
उस बच्ची ने जो किया उसके पीछे मासूम से सपनों से लेकर भूख, गरीबी और पिछड़ी जिंदगी से आगे निकलने की चाहत जैसी चीजें रही होंगी। - फोटो : @Pixabay
तालिबान असल में कुछ लोगों का झुंड नहीं, न ही ये एक देश या सीमा का मामला है। तालिबान असल में एक विचार है, एक दूषित-सडांध मारता विचार जो इस बात को जीता है कि औरतें दोजख का दरवाजा हैं। इसलिए उन्हें जितने जूते-लात मारे जाएं, जितनी गालियां दी जाएं उतना वे 'हद में भी रहेंगी और ज़द में भी।' और ये विचार किसी एक धर्म, जात या देश से परे कई सारे मर्दों के दिमाग में रचा बसा है।
औरतें जब प्यार करती हैं तो वे भावनाओं से बंधती हैं। तभी तो विवाह के बाद पति के लात घूंसे खाने पर भी उनका पति के लिए करवाचौथ रखना नहीं छूटता। प्रेम में वे बागी होती हैं, हर आग के दरिया से गुजर जाने को प्रतिबद्ध लेकिन आदमी के लिए ये भी जीत-हार का मामला होता है। क्रिकेट मैच की तरह।
जीते तो उम्रभर यह तमगा साथ होगा कि देखो मैंने तुमसे प्रेम विवाह किया है, अब बाकी तुम एडजस्ट करो। समाज भी उन्हें इसी नजरिये से देखता है कि उन्होंने कितना बड़ा त्याग किया। परिवार के विरुद्ध, समाज के विरुद्ध। तो वो बन जाते हैं हीरो और उनको ईनाम में मिलती है हीरोइन। और अगर इस प्रेम में बाधा आये तो पुरुष परिवार-समाज किसी की भी दुहाई देकर या तो भाग निकलता है या फिर कहीं और बंधन बांध लेता है।
इसके बिल्कुल उलट औरत इसी प्रेम के लिए उम्रभर की कैद सहती है। वह भी खुशी खुशी पूरी ज़िन्दगी ज्यादातर इस गफलत के साथ कि उसने जिसे चाहा वह जीवन भर के लिए उसके साथ है, उसके बच्चों का बाप है। और अगर उससे शादी न हुई तो उसकी यादों की कैद में किसी और के साथ जुड़कर। इन्हें उन किस्सों से न जोड़ें जहां या तो पुरुष दुष्परिणाम भुगतता है या हैप्पी एंडिंग भी होती है। हां पुरुष भी प्रताड़ित होते हैं लेकिन ऐसे किस्सों से सजा पाने वाली औरतों का प्रतिशत कहीं ज्यादा है।
और अंत में मुझे याद आया एक प्रेम की विवाह में सुखद परिणीति के तौर पर दिया गया स्नेहभोज। दूल्हा-दुल्हन अलग-अलग 'सरनेम' वाले थे, एक ही दफ्तर में कार्यरत। एक-दूसरे के साथ बहुत खुश। दोनों के परिवारों ने भी उनके विवाह को सहमति दी और विवाह खुशी से सम्पन्न हो रहा था।
मैं उस दम्पत्ति को बधाई देकर प्रसन्न मन से परिवार के उन्नत विचारों को सराहती स्टेज से उतर रही थी कि दूल्हे की बुआजी की फुसफुसाहट मेंरे कानों में पड़ी। शायद उनसे किसी ने दुल्हन की तारीफ की होगी। और उनका जवाब था-''अरे हमारा बच्चा तो बहुत सीधा है। इसने ही रूप के जाल में फंसाया होगा। बहुत चालू होती हैं ये आजकल की लड़कियां।"
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।