सामाजिक सुरक्षा की बदहाली

कोरोना महामारी ने दुनिया भर में चुनौतियां पैदा की हैं, लेकिन गरीब और विकासशील देशों के लोग अधिक मुसीबत में हैँ

Update: 2021-09-06 16:41 GMT

By NI एडिटोरियल.

ILO social protection report में दुनिया के सिर्फ 47 प्रतिशत लोगों की कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा उपाय तक प्रभावी पहुंच बन पाई थी। तो हालत गंभीर है। आईएलओ इस तरफ ध्यान खींचने के लिए बधाई का पात्र है। हालांकि इससे सूरत बदलेगी, इसकी कोई उम्मीद नहीं है। भारत में ऐसी आशा तो और भी कम है।

कोरोना महामारी ने दुनिया भर में चुनौतियां पैदा की हैं, लेकिन गरीब और विकासशील देशों के लोग अधिक मुसीबत में हैँ। जाहिर है, वहां हेल्थ केयर और आय की सुरक्षा के इंतजाम इस वक्त बेहद जरूरी हो गए हैं। भारत में भी इसकी जरूरत शिद्दत से महसूस हुई है। लेकिन इस दिशा में कोई प्रयास हुआ है, इसके कोई संकेत नहीं हैं। भारत फिलहाल अपने 'हिंदू गौरव' को पुनर्जीवित करने में जुटा हुआ है। बहरहाल, जिन्हें आम जन की वास्तविक चिंता हो, उन्हें अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की ताजा रिपोर्ट पर जरूर गौर करना चाहिए। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया की आधा से ज्यादा आबादी के पास किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं है। 2020 में दुनिया के सिर्फ 47 प्रतिशत लोगों की कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा उपाय तक प्रभावी पहुंच बन पाई थी। बाकी 53 प्रतिशत लोग यानी करीब 4.1 अरब लोगों के पास कोई बचाव नहीं था। आईएलओ ने अपनी इस रिपोर्ट को- वर्ल्ड सोशल प्रोटेक्शन रिपोर्ट 2020-22 नाम दिया है। इसमें पूरी दुनिया की सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों में हाल के बदलावों और सुधारों का आकलन किया गया है। स्टडी के मुताबिक आज भी देश और इलाके के लिहाज से सामाजिक सुरक्षा का कवरेज यानी दायरा काफी अलग है। यूरोप और मध्य एशिया के लोगों को सबसे अच्छी सामाजिक सुरक्षा हासिल है। उनकी 84 फीसदी आबादी को कम से कम एक लाभ तो मिल ही रहा है।
अमेरिकी महाद्वीप में ये दर 64.3 फीसदी है। एशिया और प्रशांत क्षेत्र के अलावा अरब देशों में भी आधा से थोड़ा कम आबादी को सामाजिक सुरक्षा मिली हुई है, जबकि अफ्रीका में सिर्फ 17.4 प्रतिशत लोगों को कम से कम एक लाभ ही मिल पाया है। दुनिया के अधिकांश बच्चों के पास सामाजिक सुरक्षा नहीं है। दुनिया में चार मे से सिर्फ एक बच्चे को एक सामाजिक सुरक्षा लाभ मिल पाता है। नवजात शिशुओं वाली सिर्फ 45 प्रतिशत मांओं को ही मातृत्व के समय नकदी सहायता का लाभ मिल पाता है। गंभीर विकलांगता वाले तीन में से सिर्फ एक व्यक्ति को विकलांगता से जुड़े लाभ मिल पाते हैं और नौकरी गंवाने वाले पांच में से सिर्फ एक व्यक्ति को ही सामाजिक सुरक्षा मिल पाती है। तो हालत गंभीर है। आईएलओ इस तरफ ध्यान खींचने के लिए बधाई का पात्र है। हालांकि इससे सूरत बदलेगी, इसकी कोई उम्मीद नहीं है। ILO social protection report
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