धूर्त चीन का पाखंड
इसमें कोई संदेह नहीं रह गया कि चीन भारत का दुश्मन नम्बर-I है। लद्दाख में सीमा पर गतिरोध कायम है और ड्रेगन भारत को परेशान करने की कोई कसर नहीं छोड़ रहा।
आदित्य नारायण चोपड़ा; इसमें कोई संदेह नहीं रह गया कि चीन भारत का दुश्मन नम्बर-I है। लद्दाख में सीमा पर गतिरोध कायम है और ड्रेगन भारत को परेशान करने की कोई कसर नहीं छोड़ रहा। चीन भारत के सीमावर्ती इलाकों में दादागिरी दिखा रहा है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत जिस तरह से नए गठजोड़ कर रहा है, उससे वह चिंतित भी है। आतंकवाद पर चीन का दोहरा चरित्र है। यह एक बार फिर उस समय सामने आया जब उसने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत का साथ नहीं दिया बल्कि उसमें अड़ंगा लगा दिया। उसने पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्वी को प्रतिबंधित आतंकवादी सूची में डालने वाली मांग पर पाकिस्तान का साथ दिया। भारत और अमेरिका की साझा कोशिशों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने टेरिनकल होल्ड का दांव चलकर आतंकवादी मक्वी को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने से रोक दिया। ये पहला मौका नहीं है जब चीन ने ऐसा किया हो। इससे पहले आतंकवादी मसूद अजहर और लखवी के मामले में भी उसने यही दांव खेला था। सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यों के पास वीटो का अधिकार है और चीन इसी ताकत का इस्तेमाल पाक समर्थित आतंकियों के लिए कर रहा है। दो दिन पहले ही ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत चीन और दक्षिण अफ्रीका) की बैठक में आतंकवाद का मुद्दा उठा था और चीन ने दूसरे सदस्यों के साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का वादा किया था।जिस आतंकवादी मक्वी का चीन ने साथ दिया वह लश्कर ए तैयबा (नया नाम जमात उल दावा) के राजनीतिक प्रकोष्ठ का मुखिया है। वह लश्कर के सरगना हाफिज मोहम्मद सईद का करीबी रिश्तेदार है। उसका मुख्य काम भारत के खिलाफ आतंकवादियों को तैयार करना है। आवश्यक फंडिंग को जुटाने और जम्मू-कश्मीर में आतंकी वारदातों को अंजाम देने से जुड़ा रहा है। वर्ष 2000 का लालकिला हमला, 2008 का रामपुर कैम्प पर हमला और 2018 में बारामूला, श्रीनगर और बांदीपोरा हमला उसकी साजिशों का परिणाम थी। 2017 में उसके बेटे जावेद रहमान मक्वी को जम्मू-कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा आपरेशन में मार दिया गया था। मक्वी पाकिस्तान में भारत विराेधी भाषणों के लिए काफी लोकप्रिय है।पाकिस्तान की पूरी सियासत भारत विरोध पर आधारित है इसलिए वहां भारत के विरुद्ध जहर उगलने वालों को सस्ती लोकप्रियता मिल जाती है। पाकिस्तान सरकार ने 2019 में मक्वी को आतंकवादी वारदातों के जुर्म में गिरफ्तार किया था। तब पाकिस्तान पर एफएटीएफ का दबाव था। पाकिस्तान की कोर्ट ने उसे सजा भी सुनाई थी लेकिन पाकिस्तान हमेशा आतंकियों की गिरफ्तारी का ड्रामा करता है और बाद में उन्हें रिहा कर देता है। चीन ने अपने मित्र देश पाकिस्तान को ओर ज्यादा किरकिरी से बचाने के लिए सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को रोका जबकि मक्वी के आतंकी संबंधों के खिलाफ ठोस सबूत हैं। यूएस डिपार्टमैंट ऑफ स्टेट्स रिवार्ड्स फॉर जस्टिस प्रोग्राम के तहत मक्वी के बारे में जानकारी देने वाले को 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम घोषित किया है। कौन नहीं जानता कि मक्वी तालिबान के सर्वोच्च कमांडर मुल्ला उमर और अलकायदा के अल जवाहरी का करीबी है।संपादकीय :आज फिर जरूरत है संयुक्त परिवारों कीकश्मीर में चुनावों की सुगबुगाहटआओ मेघा आओ...अग्निपथ : विध्वंस नहीं सृजनकौन होगा नया राष्ट्रपति?5जी : बदल जाएगा जीवनचीन ने तुर्की और मलेशिया के साथ मिलकर पाकिस्तान को एफएटीएफ की लिस्ट से बाहर निकालने के लिए पूरा जोर लगाया लेकिन अभी इसमें उनको पूरी सफलता नहीं मिली। लेकिन चीन, तुर्की और मलेशिया की चालों से इतना तय है कि अगले कुछ महीनों में पाकिस्तान ग्रे लिस्ट से बाहर आ सकता है। पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ क्या-क्या कदम उठाए हैं। उनकी अब ऑन साइट समीक्षा की जाएगी। पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद प्रधानमंत्री बने शहबाज शरीफ के सामने इस बात की चुनौती है कि पाकिस्तान को आतंकवाद की खेती करने वाले देश की छवि को किस तरह से बदले। पाकिस्तान इस समय आर्थिक रूप से कंगाल हो चुका है। टैरर फंडिंग और मनि लॉड्रिंग के चलते पाकिस्तान को 2018 से एफएटीएफ में ग्रे सूची में डाला हुआ है। इस कारण उसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक एशियाई विकास बैंक और यूरोपीय संघ से वित्तीय सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो गया है, जिससे पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है।चीन पाकिस्तान की मदद करके अपने निवेश हितों को सुरक्षित रखना चाहता है। पाकिस्तान आतंकवादी पालता है और चीन उनकी ढाल बन जाता है। चीन और पाकिस्तान की मक्कारी की आतंक कथा का कोई अंत होता दिखाई नहीं दे रहा। आतंकवाद को लेकर चीन का जो रवैया सामने आ रहा है वह पाकिस्तान से कहीं अधिक खतरनाक है। चीन अब पूरी तरह से नग्न हो चुका है। आतंकवाद को पालने और पोषण करने वाले पाकिस्तान पर कड़े प्रतिबंध लगाए जाने चाहिएं जबकि एफएटीएफ भी कागजी कार्यवाहियों को स्वीकार करने वाली संस्था बन कर रह गया है।