मंडी रैली से निकला आत्मबल

हिमाचल की सत्ता के लिए पांचवां साल भले ही प्रदर्शन के लिहाज से चामत्कारिक रहता है

Update: 2021-12-30 04:47 GMT
दिव्यहिमाचलमंडी रैली से निकला सत्ता पक्ष का आत्मबल 'मिशन रिपीट' का कारवां कैसे बनता है, इस उत्सुकता में हिमाचल की परिवर्तनशीलता, सुशासन की कर्मठता और दायित्व की वर्तमान पारी को मुकम्मल होते हर कोई देखना चाहेगा। जाहिर है सारी करवटों में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के इरादे, रणनीतिक कौशल तथा सियासी व प्रशासनिक फर्ज की अदायगी की स्वीकार्यता अब पल्लवित होंगे, इसीलिए वह इम्तिहान की लकीरों को तोड़ते हुए यह कहते हैं कि सरकारें बदलने का क्रम टूटेगा। यह एहसास जीना और इस सफर की परीक्षा को कबूल करना कम से कम मंडी रैली की उपादेयता सरीखा है। रैली के मंतव्य में लिखी गई सियासत की चौड़ी छाती पर यह सुखद अनुभूति हो सकती है, लेकिन इसके साथ कमोबेश पिछली सरकारों के लिए पांचवां साल हानिकारक क्यों रहा, इस पर विवेचन करना होगा। सरकारों का पांचवां साल अपनी निपुणता में कोई कसर नहीं छोड़ता, लेकिन सत्ता का नजरिया और आत्मपरीक्षण की विफलता के कारण सूचनाएं भ्रमित करती हैं या चुगलखोर शलाघा व सत्ता के लाभार्थियों के कारण सरकार के लाभांश पर जो चोट रहती है, उसका पटाक्षेप चुनावों में होता रहा है। इस बार परिस्थितियां भिन्न हैं या हो सकती हैं, इसके कुछ तर्क 'डबल इंजन' सरकार, कुछ पार्टी की तैयारी और कुछ विपक्ष की बीमारी से निकल सकते हैं, लेकिन असली दारोमदार केंद्र की लंबित योजनाओं-परियोजनाओं की हकीकत पर रहेगा या हिमाचल की रहस्यमयी और अति महत्त्वाकांक्षी जनता पर भी रहेगा।
हिमाचल की सत्ता के लिए पांचवां साल भले ही प्रदर्शन के लिहाज से चामत्कारिक रहता है, लेकिन सामाजिक परिदृश्य में लोकतांत्रिक अधिकारों की असीमित उम्मीदें हर बार टकराती हैं। हिमाचल में केवल विपक्षी पार्टी ही विपक्ष नहीं, बल्कि एक संगठित नागरिक विपक्ष है जो हर सरकार से फिरौती मांगता है। यह फिरौती सरकारी धन के प्रति असंवेदनशीलता हो सकती है। सरकारी नौकरी की फरियाद हो सकती है या नौकरी में रहते हुए बेहतर वेतनमानों से मनमाफिक स्थानांतरण तक की भी हो सकती है। इसी तरह सत्ता तक पहुंचते ही राजनीतिक कॉडर का चारित्रिक क्षरण शुरू होता है। कार्यकर्ताओं का नेताओं की भूमिका में परिपक्व होने के लिए, सत्ता की मलाई अकसर कड़वी हो जाती है। इस तरह सत्ता के भीतर आंतरिक विपक्ष तथा टूटन से बरतन इतने खनकते हैं कि पांचवां साल कई बार 'सैल्फ गोल' करने पर उतारू हो जाता है। हिमाचल में सत्ता के सामने कर्मचारी व नौकरशाह दो ऐसे वर्ग हैं जो या तो असंतुष्ट मिट्टी पर खड़े होते हैं या सचिवालय को सड़क से मिलने नहीं देते। हिमाचल में सत्ता की सीट ऐसी जगह है जहां नौकरशाही खुद को टूरिस्ट समझती है या नेताओं की फितरत में फिसलते-फिसलते सत्ता के लम्हों को चकनाचूर कर देती है। शिमला से प्रदेश को देखना भौगोलिक दृष्टि से कठिन है, ऊपर से सत्ता की राजनीतिक आंख पर पर्दा गिराने का काम वहां स्थापित हो चुकी कार्यसंस्कृति करती है। एक बार धूमल सरकार ने सचिवालय के पेंच कसने शुरू किए थे, लेकिन पांचवें साल की मजबूरियों ने कदम पीछे ले लिए। राजनीतिक गणित में सरकारों के लिए कठिन फैसले लेने मुश्किल हो रहे हैं। हिमाचल अपनी सत्ता के फेर में ऐसे समाज का गठन कर चुका है जो पांचवें साल में कुंडली बदलने में माहिर हो जाता है।
कर्मचारी राजनीति कमोबेश हर सरकार को नाको चने चबाने को मजबूर करती है। इस बार भी जयराम सरकार के सबसे कोमल दस्तखत कर्मचारी मसलों पर हो रहे हैं या राज्य का खजाना पूरी तरह न्योछावर हो रहा है, लेकिन यह वर्ग अपने भीतर 'विपक्षी कौम' की तरह पूर्वाग्रह पाल कर राजनीतिक माहौल को अभिशप्त नहीं करेगा, इसकी गारंटी लेना कठिन है। आश्चर्य यह कि जेसीसी के हमाम में हर बार राज्य का खजाना नंगा होता है, लेकिन इस सौदे में राजनीति बदनाम होती है। यह दीगर है कि पांचवें साल में सरकारें वास्तविक मुद्दों और विकास को तरजीह देती हुईं, क्षेत्रीय संतुलन सुधारती हैं। मंडी रैली की तरह कम से कम तीन और रैलियां अगर प्रधानमंत्री स्वयं शिमला, कांगड़ा व हमीरपुर संसदीय क्षेत्रों में करते हैं और इसी तर्ज पर सरकार अपने आभामंडल का विस्तार पूरे राज्य में कर पाती है, तो निश्चित रूप से मिशन रिपीट के उद्घोष सामने आएंगे। सरकार में मंत्रियों को भी मुख्यमंत्री की तरह अगर मिशन रिपीट को संभव बनाना है, तो हर विभाग की हर फाइल और विकास की हर परियोजना को धरती पर उतारना होगा। हर मंत्री अगर अपने क्षेत्र के अलावा कम से कम दस विधानसभा क्षेत्रों को विकास का इनसाफ दिला सके या पूरे हिमाचल में मुख्यमंत्री का सौहार्द दिखाई दे तो सरकार को कौन रिपीट नहीं करना चाहेगा। यह दीगर है कि पांचवें साल में हिमाचल का विपक्ष भी हाथी-घोड़ों पर सवार होता है और उसकी बात मीडिया से समाज तक सुनी जाती है।
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