वित्तमन्त्री ने लघु व मंझोले उद्योगों के लिए आपातकालीन ऋण उपलब्ध कराने की सीमा तीन लाख करोड़ से बढ़ा कर साढे़ चार लाख करोड़ रुपए की कर दी है। जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 50 हजार करोड़ रुपए व अन्य प्रभावित उद्योग-धंधों के लिए 60 हजार करोड़ रुपए के आपातकालीन ऋण सुलभ होंगे। मगर दूसरी तरफ हमें यह देखना होगा कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान राज्य स्तर पर किये गये विभिन्न लाॅकडाउनों ने पूरी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है और सबसे बुरा असर लघु व मध्यम दर्जे की औद्योगिक इकाइयों पर ही डाला है। इनमें से एक चौथाई की हालत ऐसी हो चुकी है कि वे आगे उत्पादन करने योग्य नहीं रही हैं । बाजार में मांग की कमी होने की वजह से जो इकाइयां उत्पादन कर भी रही हैं वे अपनी स्थापित क्षमता का औसतन आधा ही उपयोग करके किसी तरह घिसट रही हैं। इसके साथ ही बेरोजगारी की दर में भी वृद्धि हुई है और सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले लघु व मध्म दर्जे की इकाइयों से कार्यरत कर्मचारियों की छंटनी हो रही है अथवा उन्हें आधी तनख्वाह पर काम पर रखा जा रहा है। यह स्थिति भयावह कही जा सकती है जिसका उपचार केवल वित्तीय मदद देकर ही किया जा सकता है परन्तु वित्तमन्त्री का जोर पहले 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज से लेकर मौद्रिक मदद देने पर ही रहा है। इसके अच्छे परिणाम आने को ही थे कि कोरोना की दूसरी लहर ने अर्थव्यवस्था को अपनी चपेट में ले लिया। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि मौद्रिक उपायों से अर्थ व्यवस्था में धीरे-धीरे जान आयेगी।
पिछले 20 लाख करोड़ के पैकेज में से भी सरकारी खजाने से केवल पौने दो लाख करोड़ रुपए की रोकड़ा ही निकली थी जिसमें मुफ्त अनाज सुविधा व ग्रामोण रोजगार की बढ़ी हुई अवधि की कीमत धनराशि भी शामिल थी। पहले भी यह मांग उठी थी कि सरकार गरीबी की सीमा रेखा के पास बैठे हुए परिवारों को सीधे छह हजार रु महीने की वित्तीय मदद दे जिससे बाजार में मांग बढ़ सके और उत्पादन गतिविधियां बदस्तूर जारी रह सकें परन्तु सरकारी पैकेज से इतना जरूर हुआ था कि ग्रामीण अर्थ व्यवस्था अपने बूते पर उठ कर खड़ी हो गई थी। तर्क दिया जा रहा है कि सरकार ने पेट्रोल व डीजल की कीमत बढ़ा कर साल भर में चार लाख करोड़ रुपए की धनराशि अपने खजाने में जमा की है। इसका दस प्रतिशत भी कोरोना के मृत परिवारों को देने से अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा और मांग बढ़ने में मदद मिलेगी तथा स्वरोजगार के माध्यम से बेरोजगारी के आंकड़ों पर भी असर पड़ेगा किन्तु यह भी सोचना होगा कि सरकार को अभी प्रत्येक वयस्क को कोरोना वैक्सीन लगाने के साथ ही दो वर्ष से लेकर 18 वर्ष तक की नौजवान पीढ़ी के भी मुफ्त वैक्सीन लगानी होगी। इसके लिए वित्तीय स्रोतों को संभाल कर रखना होगा। मगर वित्तमन्त्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जो मदद देने की घोषणा की है उसका स्वागत किया जाना चाहिए। कुल 50 हजार करोड़ की ऋण गारंटी स्कीम बड़े-बड़े शहरों के अलावा अन्य़ छोटे शहरों में भी चिकित्सा सेवाओं को सुदृढ़ करने की गरज से होगी, इसमें 23,200 करोड़ रुपये का आवंटन स्वास्थ्य मन्त्रालय को तुरन्त किया जायेगा जिससे वह देश में आधारभूत चिकित्सा सेवाओं को मजबूत बना सके। इस मद में केन्द्र के खजाने से 15 हजार करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे।
पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वित्तमन्त्री ने इस क्षेत्र के लिए भी ऋण गारंटी योजना की शुरूआत की है और पांच लाख पर्यटक वीजा मुफ्त देने का ऐलान किया है। साथ ही आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना को 30 जून, 20 से बढ़ा कर 31 मार्च, 22 तक कर दिया गया है। इसी प्रकार निर्यात ऋण गारंटी स्कीम को भी बढ़ा कर पांच साल से ऊपर कर दिया गया है और इलैक्ट्रानिक उत्पादन क्षेत्र की विशेष स्कीम को भी बढ़ा कर 2025-26 तक कर दिया गया है। अतः ये सारी स्कीमें उद्योग जगत को सुविधा देने की जरूर हैं मगर इस बात की गारंटी नहीं है कि बाजार में यथानुरूप मांग भी बढे़गी। मांग तभी बढे़गी जब जनता के हाथ में रोकड़ा की प्रचुरता होगी। अतः इस तरफ भी ध्यान दिया जाना चाहिए। क्योंकि दूसरी लहर ने तो इस बार सबसे ज्यादा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ही तोड़ा है। अतः हमें मांग बढ़ाने और वित्तीय मदद पर भी विचार करना चाहिए।