बंगाल को बचाओ: शर्मिंदा करने वाली बंगाल की बेलगाम राजनीतिक हिंसा, तृणमूल राजनीतिक विरोधियों के दमन पर आमादा
यह देखना बेहद शर्मनाक भी है और चिंताजनक भी कि पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के बाद जब तृणमूल कांग्रेस को शासन संचालन के मामले में एक नई इबारत लिखने का काम करना चाहिए था,
भूपेंद्र सिंह| यह देखना बेहद शर्मनाक भी है और चिंताजनक भी कि पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के बाद जब तृणमूल कांग्रेस को शासन संचालन के मामले में एक नई इबारत लिखने का काम करना चाहिए था, तब वह राजनीतिक विरोधियों के दमन पर आमादा है। बंगाल की बेलगाम राजनीतिक हिंसा राज्य के साथ राष्ट्र को भी शर्मिंदा करने वाली है। यह हिंसा कितनी भीषण है, इसका पता इससे चलता है कि जहां प्रधानमंत्री को राज्यपाल से बात करनी पड़ी और भाजपा अध्यक्ष को आनन-फानन कोलकाता रवाना होना पड़ा, वहीं राज्य के हालात से चिंतित कुछ लोगों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। बंगाल की राजनीतिक हिंसा से चुनाव आयोग का वह फैसला सही साबित हुआ, जिसके तहत उसने राज्य में आठ चरणों में मतदान कराया। चुनाव बाद बंगाल में जो कुछ हो रहा है, वह घोर अलोकतांत्रिक और सभ्य समाज को लज्जित करने वाला है, लेकिन शायद ममता बनर्जी के नेतृत्व में बंगाल अपनी पुरानी राजनीतिक कुसंस्कृति का परित्याग करने को तैयार नहीं। अपने राजनीतिक विरोधियों को डराने-धमकाने और खत्म करने का जो काम एक समय वामदल किया करते थे, वही, बल्कि उससे भी ज्यादा घृणित तरीके से तृणमूल कांग्रेस कर रही है।