By: divyahimachal
आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने एक सार्वजनिक मंच से कहा है कि देश में आज भी 20 करोड़ से ज्यादा लोग गऱीबी-रेखा के नीचे हैं। करीब 23 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनकी आमदनी 375 रुपए प्रतिदिन है। ये आंकड़े कम-ज्यादा हो सकते हैं, क्योंकि भारत सरकार या नीति आयोग ने 'गरीबी-रेखा' को पूरी तरह परिभाषित नहीं किया है, लिहाजा निश्चित आंकड़े भी उपलब्ध नहीं हैं। बहरहाल संघ नेता ने जो खुलासा किया है, वह आंकड़ा भी सामान्य नहीं है। कुछ विशेषज्ञों ने सर्वे के आधार पर आकलन किए हैं कि गरीबी-रेखा के नीचे 26-28 करोड़ लोग हो सकते हैं। भयावह स्थिति है! बहरहाल संघ नेता ने गरीबी के साथ-साथ बेरोजग़ारी और आर्थिक असमानता के भी मुद्दे उठाए हैं। संघ का मानना है कि अमीर और गरीब के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है। भारत में गरीबी दशकों से है, लिहाजा अब उसे कम करने के सार्थक प्रयास किए जाने चाहिए। संघ महासचिव का सुझाव है कि भारत में उद्यमिता और स्वावलंबन का ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए, ताकि नौकरी मांगने और ढूंढने वाले लोग 'नौकरी प्रदाता' बन सकें। यह इसलिए अनिवार्य है, क्योंकि 140 करोड़ की आबादी वाले देश में प्रत्येक युवा और पात्र व्यक्ति को नौकरी देना संभव नहीं है, लिहाजा वे स्वावलंबी बनें। दत्तात्रेय ने ये विचार 'स्वदेशी जागरण मंच' के एक वेबिनार आयोजन के जरिए रखे हैं। यह संगठन भी संघ से संबद्ध है और आजकल 'स्वावलंबी भारत अभियान' चला रहा है। आरएसएस के एक शीर्ष नेता का यह कथन, खासकर मोदी सरकार के लिए, महत्त्वपूर्ण है और चेतावनी वाला भी है। करीब 700 जिलों में संघ का यह अभियान बीते एक साल से जारी है। इसके जरिए संघ स्थानीय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना चाहता है। इस संदर्भ में आरएसएस ने बीती मार्च में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें श्रम-गहनता वाले 'भारतीय आर्थिक मॉडल' की कल्पना की गई थी। इसे संघ की एक शीर्ष 'अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा' की बैठक में भी पारित किया गया था। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की संघवादी सोच है, जो ग्रामीण उद्यम और स्वरोजग़ार पर आधारित है।
मोदी सरकार इसे प्रत्यक्ष तौर पर नकार नहीं सकती, बल्कि इसके पालन के ठोस प्रयास करने होंगे। संघ लंबे समय से गरीबी, बेरोजग़ारी, आर्थिक असमानता सरीखे मुद्दों पर विचार-मंथन करता आया है। यह उसका राष्ट्रवादी और सामाजिक दायित्व भी है। संघ भाजपा का मातृ संगठन है और चुनाव, विभिन्न अभियानों और प्रचार में बुनियादी ताकत संघ की ही होती है, लिहाजा भाजपा आज सबसे बड़ी पार्टी है। बहरहाल दत्तात्रेय ने जो मुद्दे उठाए हैं, उनके संदर्भ में दावे न किए जाएं अथवा ताल न ठोंकी जाए कि कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' से घबरा कर, उसके प्रभाव में, संघ ने अपनी रणनीति बदली है और गरीबी, बेरोजग़ारी आदि मुद्दों पर सोचना शुरू कर दिया है। राहुल गांधी ने मैसूर में बारिश में भीगते हुए अपना भाषण जारी रखा, तो इससे संघ प्रभावित नहीं हुआ है। बारिश में भीगना कोई बलिदान देना नहीं है। रोजमर्रा की जि़ंदगी में असंख्य लोग, बारिश के मौसम में, भीगते रहते हैं, लिहाजा यह कोई अनूठा करतब नहीं था। संघ का काम 1925 से जारी है। ऐसे अभियान '70 के दशक से जारी रहे हैं, जब गरीबी, बेरोजग़ारी और भुखमरी भी उफान पर थीं। इतिहास उन अभियानों का गवाह है।
मौजूदा दौर में भी संघ का ग्रामीण अर्थव्यवस्था और स्वावलंबन पर जारी राष्ट्रीय अभियान एक साल पुराना हो चुका है। बेशक ये समस्याएं मौजूदा दौर में भयानक स्थिति में हैं। सरकार करोड़ों नौकरियां नहीं दे सकती और न ही ऐसी कोई संभावना है, लिहाजा संघ के कथन पर मोदी सरकार को गंभीर चिंतन करके कोई रास्ता निकालना चाहिए। संघ भी सुझाव दे सकता है। कांग्रेस की कुंठाओं पर ध्यान नहीं देना चाहिए। वह अपनी पार्टी जोड़ कर रखे, यही गनीमत है। राहुल गांधी ने कर्नाटक में बारिश में भीगते हुए ऐसा कोई ब्रह्म-वाक्य नहीं बोला है, जो संघ और मोदी सरकार की मदद कर सके। मोदी सरकार को गरीबी व बेरोजगारी दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। मोदी जी ने सत्ता में आने पर हर वर्ष दो करोड़ युवाओं को रोजगार दिलाने का वादा किया था। अब उस वादे को निभाने का समय आ गया है। आज देश में बेरोजगारी की हालत यह है कि चपरासी के पद के लिए भी एमए, एमएड पढ़े-लिखे युवा आवेदन कर रहे हैं। मोदी सरकार को अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में रिपीट करना है तो उसे युवाओं को बड़ी संख्या में रोजगार देने होंगे। सभी युवाओं को सरकारी नौकरियां नहीं दी जा सकती, इसलिए निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना होगा।