भारतीय मूल की अमेरिकी स्वास्थ्य शोधकर्ता देवी श्रीधर ने पिछले दिनों महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की, 'महामारी सेनाओं के जुलूस से या युद्ध विराम कोशिश से खत्म नहीं होती है। बीमारी जब समय से मंद पड़ती है और रोजमर्रा की समस्याएं हावी होती हैं, तभी महामारी का अंत होता है।' यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनिया का ध्यान महामारी से हटाकर युद्ध पर लगा दिया है। सभी देशों पर रूस या फिर यूक्रेन के साथ खड़े होने के लिए दबाव बढ़ा है। सभी देश अपनी कूटनीति पर चलते हुए बोलने या चुप रहने पर अड़े हुए हैं।
पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के यूरोप में दिए गए एक वक्तव्य ने कूटनीति के मोर्चे पर तूफान खड़ा कर दिया। बाइडन ने रूस के लागों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति पुतिन के लिए कहा, 'ईश्वर के नाम पर, यह आदमी सत्ता में नहीं बना रह सकता।' अमेरिकी राष्ट्रपति के पहले से तैयार किए गए भाषण में यह वक्तव्य नहीं था। बाद में बाइडन ने भी माना कि वह उनका निजी नैतिक आक्रोश भर था। अंतरराष्ट्रीय मीडिया को लगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति के वक्तव्य से कूटनीतिक हालात बिगड़ेंगे। वहीं अपने मीडिया को इसमें युद्ध की महामारी दिखने लगी। अपने यहां खबर तो मनोरंजन के लिए देखी जाती है, मगर मनोरंजन में राजनीति खोजी जाती है। बाकी जो हो, सो हो, पर बाइडन ने इस कथन से असत्य की हिंसा को बेशक ललकारा है। अहिंसा के सत्य से ही असत्य की हिंसा का युद्ध लड़ा जा सकता है। यही सच्ची सभ्यता का दर्शन भी है।
गौरतलब है कि महात्मा गांधी ने मित्रों के कहने पर दूसरे विश्वयुद्ध के आसार देखते हुए हिटलर को उनकी भयावह मंशा के लिए पत्र लिखा था। लेकिन हिटलर तक पत्र को पहुंचने नहीं दिया गया। सत्य के खोजी और अहिंसा के पुजारी होने के नाते गांधी जी ने पत्र लिखना अपना नैतिक अधिकार माना था। पत्र से दुनिया के सामने हिंसा से अलग अहिंसा का सिद्धांत सामने आया। पत्र में हिटलर को भी परम मित्र संबोधित करते हुए गांधी जी ने लिखा था, 'यह साफ है कि विश्व में आप ही एकमात्र व्यक्ति हैं, जो युद्ध रोक सकते हैं और मानवता को भयावह क्रूरता से बचा सकते हैं। अपना उद्देश्य आप जितना भी अच्छा मानें, कीमत तो उसकी आपको ही चुकानी होगी।' हिटलर को लिखे अपने दूसरे पत्र में अहिंसा के सर्वकालिक गुण बताते हुए गांधी जी ने कहा था, 'अहिंसा के उपयोग में कोई आर्थिक कीमत नहीं चुकानी पड़ती। न ही विज्ञान के गलत प्रयोग से बने विनाशकारी हथियारों की जरूरत रहती है। ...अगर ब्रिटिश नहीं, तो कोई और सत्ता आपसे आगे निकल कर आपके ही हथियार से आपको हरा देगी। आप ऐसी कोई विरासत नहीं छोड़े जा रहे हैं, जिस पर आपके ही लोग गर्व कर सकें।'
इसलिए बाइडन ने पुतिन के लिए निजी और नैतिक तौर पर जो कहा, वह राजनीतिक और सार्वजनिक तौर पर भी कहा जाना चाहिए, ताकि पुतिन आज का हिटलर न बने सकें। वैसे सभी जानते हैं कि हिंसा के बदले में ही ज्यादा भयावह हिंसा होती है। इसीलिए युद्ध की हिंसा से जरूरी है महामारी से अहिंसक लड़ाई। हिंसा की तानाशाही आती-जाती रहेगी। लोग रहेंगे, तो लोकशाही चलती रहेगी।