रूस-यूक्रेनः सबसे पहले शांति

यूक्रेन के दो प्रांतों को स्वतंत्र देशों के रूप में मान्यता देने के अगले ही दिन रूस ने वहां अपनी सेना भेज दी और इसके साथ ही दोनों देशों के बीच बाकायदा युद्ध शुरू हो गया है। हालांकि रूस अभी इसे महज एक सैन्य कार्रवाई कह रहा है

Update: 2022-02-25 03:31 GMT

यूक्रेन के दो प्रांतों को स्वतंत्र देशों के रूप में मान्यता देने के अगले ही दिन रूस ने वहां अपनी सेना भेज दी और इसके साथ ही दोनों देशों के बीच बाकायदा युद्ध शुरू हो गया है। हालांकि रूस अभी इसे महज एक सैन्य कार्रवाई कह रहा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे यूक्रेन की सीमाओं का रूस द्वारा अतिक्रमण ही माना जा रहा है। देखने की बात यह होगी कि रूस की इस कार्रवाई पर अपनी प्रतिक्रिया में अमेरिका और अन्य नाटो देश किस हद तक जाते हैं। इस बीच भारत की पहली चिंता यूक्रेन में फंसे 20 हजार से ज्यादा भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की है, जिनमें से ज्यादातर स्टूडेंट्स हैं। पूरे यूक्रेन में आपात काल लागू कर दिया गया है। जगह-जगह हो रहे मिसाइल अटैक और बमबारी के कारण हालात चिंताजनक हैं। वहां फंसे नागरिकों को सुरक्षित वापस लाने के लिए भेजे गए एयर इंडिया के एक विमान को आधे रास्ते से ही वापस लौटाना पड़ा क्योंकि वहां उसकी सेफ लैंडिंग सुनिश्चित नहीं हो पा रही थी। वहां से विभिन्न स्टूडेंट्स के विडियो मैसेज भी आ रहे हैं जिनमें भारत सरकार से उन्हें वहां से निकालने की गुहार लगाई जा रही है।

इस बीच विदेश मंत्रालय और कीव स्थित भारतीय दूतावास की ओर से उन स्टूडेंट्स तक पहुंचने और उन्हें आश्वस्त करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। न केवल हेल्पलाइन नंबर मुहैया कराए गए हैं बल्कि स्टूडेंट्स को वहां से निकालने के वैकल्पिक उपायों पर भी विचार किया जा रहा है। जहां तक इस युद्ध के अन्य दुष्प्रभावों की बात है तो उसका सिलसिला भी दुनिया भर के बाजारों में आई जबर्दस्त गिरावट के साथ ही शुरू हो चुका है। भारत में भी सेंसेक्स और निफ्टी में करीब 3.5 फीसदी की गिरावट देखी गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर चुकी है जो पिछले सात वर्षों की रेकॉर्ड ऊंचाई है। ये ऐसे दुष्प्रभाव हैं, जो तत्काल घटित हो चुके हैं। इनका असर भी अलग-अलग रूपों में हमारे सामने आता रहेगा, लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि स्थिति अभी और कितनी बिगड़ेगी और यह कि शांति स्थापित होने में कितना वक्त लगेगा।

बेशक, हालात काफी उलझे हुए हैं, लेकिन कई प्रेक्षक कह रहे हैं कि अगर रूस की सुरक्षा चिंताओं को समझते हुए यूक्रेन को नाटो में शामिल न करने और मिन्स्क समझौते का पालन कराने से जुड़ी उसकी दो मूल मांगों पर समय रहते ध्यान दिया जाता तो संभवत: स्थिति इतनी न बिगड़ती। लेकिन, जब जागे, तभी सवेरा। अब भी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को चाहिए कि कुछ खास देशों या नेताओं को इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने की इजाजत न दे और सभी संबंधित पक्षों की जायज चिंताओं का सम्मान करते हुए जल्द से जल्द शांति स्थापित करने की कोई राह निकाले।

नवभारत टाइम्स

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