सड़क हादसे और चुनौतियां

सड़क हादसों में होने वाली मौतें और अपंगता की बढ़ती संख्या ने यह सोचने पर विवश किया है कि क्या विकास की धुरी मानी जानी वाली सड़कें मौत का प्रमुख कारण और जगह बनती जा रही हैं

Update: 2022-10-11 05:36 GMT

अखिलेश आर्येंदु: सड़क हादसों में होने वाली मौतें और अपंगता की बढ़ती संख्या ने यह सोचने पर विवश किया है कि क्या विकास की धुरी मानी जानी वाली सड़कें मौत का प्रमुख कारण और जगह बनती जा रही हैं? जिस सड़क से सारा यातायात संचालित होता है, क्या वे जीवन छीनने का कारण बनती जा रही हैं? सड़कें अर्थव्यवस्था की वृद्धि की आधार हैं, तो क्या सड़कों पर हो रही मौतें अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचा रही हैं?

पिछले कुछ सालों में केंद्रीय सड़क और राजमार्ग मंत्रालय ने सड़क सुरक्षा संबंधी कई उपाय किए हैं। उनमें सुरक्षित बुनियादी ढांचे को प्रोत्साहित करना, जागरूकता पैदा करना, सुरक्षा कानूनों का प्रवर्तन, सड़क सुरक्षा सूचना का डेटाबेस तैयार करना जैसे उपाय शामिल हैं। इसके कुछ सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। मगर बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं ने इन सारे उपायों पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। वजह है कि इन उपायों का पालन ठीक से नहीं कराया जा रहा है। कठोर कानून के बावजूद लोगों को उसका भय नहीं सताता, जिसका परिणाम प्रतिदिन सैकड़ों सड़क हादसों के रूप में सामने आता है।

सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के मकसद से 2019 में मोटर वाहन अधिनियम को बेहद कठोर बना दिया गया। साथ ही, वाहन सुरक्षा के लिए नए तकनीकी मानक भी लागू किए गए। इसके बावजूद यातायात नियमों का सरेआम उल्लंघन किया जाता है। सड़क दुर्घटनाओं में दुपहिया वाहनों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। देखा गया है कि गड्ढे वाली और टूटी-फूटी सड़कों पर लापरवाही या जानबूझ कर गलत तरीके से वाहन चलाने से हुई दुर्घटनाओं से कोई सबक नहीं लेता।

शहरों में लालबत्ती पार करने, अधिक रफ्तार से गाड़ी चलाने और आगे निकलने की प्रवृत्ति आम है। यह दुर्घटनाओं को आमंत्रित करने जैसा है। इससे सैकड़ों लोग घायल होते और मरते हैं। इसमें यातायात पुलिस की लापरवाही कम जिम्मेदार नहीं है। वहीं हादसा होने के बाद घायल को तुरंत अस्पताल पहुंचाने में हुई देरी घायल व्यक्ति की मौत का बड़ा कारण है, मगर आम लोग घायल व्यक्ति की मदद के लिए आगे नहीं आते। राज्य सरकार की तरफ से घायल को तत्काल चिकित्सा और राहत पहुंचाने वाली सुविधाएं भारत में बहुत कम हैं। इससे भी घायल व्यक्ति की मौत असमय हो जाती है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार दुपहिया वाहनों पर दुर्घटना का शिकार होने वाले पचहत्तर फीसद लोग हेलमेट का प्रयोग नहीं करते। अपने देश में सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण गुणवत्तापूर्ण ड्राइविंग स्कूलों की बेहद कमी भी है। आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली अस्सी फीसद मौतों के लिए वाहन के चालक प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार होते हैं।

विडंबना ही कही जाएगी कि जो सुझाव सड़क दुर्घटनाओं से बचने के लिए यातायात विशेषज्ञों द्वारा दिए जाते रहे हैं उन्हें मुस्तैदी के साथ पालन कराने के लिए यातायात पुलिस कुछ दिन तो काम करती है, लेकिन धीरे-धीरे फिर वही पुराना ढर्रा कायम हो जाता है। वरना क्या कारण है कि भारत में ही सबसे अधिक सड़क हादसे होते हैं?

हाल में केंद्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सड़क दुर्घटनाओं की खास वजह तेज रफ्तार से गाड़ी चलाना और सड़क नियमों का पालन न करना है। गौरतलब है कि 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2011 से 2020 के दशक को 'सड़क सुरक्षा पर सहमति का दशक' घोषित किया था। उसका असर दुनिया के देशों में तो हुआ, लेकिन भारत में कोई असर दिखाई नहीं दिया। पिछले एक दशक में सड़क दुर्घटनाएं कम होने के बजाय बढ़ती गई हैं। चीन के बाद सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती हैं।

आंकड़े बताते हैं कि दुर्घटनाओं में 12.42 फीसद प्रतिवर्ष तथा सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों में 29.16 फीसद प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हो रही है। ये आंकड़े सरकारी हैं। गैर-सरकारी आंकड़ों में मौतों का आंकड़ा इससे पांच गुना ज्यादा है। आंकड़े के मुताबिक दुनिया में बारह लाख से ज्यादा लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं, जबकि इससे पांच गुना से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं, जिनमें ज्यादातर अपंग हो जाते हैं। इनमें युवाओं की तादाद तीन चौथाई से ज्यादा है।

विश्व के कुल वाहनों का महज दो फीसद भारत में हैं, पर सड़क हादसों में होने वाली मौतें बारह फीसद से ज्यादा हैं। दुनिया के तमाम देशों ने अपने कड़े सड़क कानून और जनजागरूकता अभियानों के जरिए सड़क हादसों में वृद्धि नहीं होने दी, लेकिन पिछले बीस सालों में सड़क दुर्घटनाओं की वजह से भारत में पचहत्तर फीसद से ज्यादा की वृद्धि हो चुकी है।

इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में कितना सड़क कानूनों का पालन किया और कराया जाता है। सड़क सुरक्षा पर जारी की गई विश्व स्थिति रिपोर्ट ने सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते मामले की मुख्य पांच वजहें बताई हैं। इनमें सीमा से ज्यादा तेज गाड़ी चलाना, नशे में गाड़ी चलाना, सुरक्षा पेटी न बांधना, दुपहिया चलाते वक्त हेलमेट न पहनना और बच्चों की सुरक्षा के उपायों की अनदेखी शामिल है।

गौरतलब है कि जिस रफ्तार से विकास का आधार मानी जाने वाली सड़कों का निर्माण हो रहा है, उस अनुपात में सड़क सुरक्षा के उपाय न होने की वजह से सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। यह भी सच है कि वाहन चालक सड़क यातायात नियमों का पालन भी नहीं करते। इसी वजह से देश में हर साल एक लाख पचपन हजार लोगों की मौत सड़क हादसों में हो जाती है। यानी रोजाना चार सौ पचपन लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं।

पिछले दस सालों में देश में सड़कों और हाइवे का तेजी से जाल बिछा है। इससे जहां तरक्की के रास्ते खुले हैं, वहीं सड़क हादसों में हो रही मौतों ने कई सवाल खड़े किए हैं। आकड़ों के मुताबिक आम सड़कों की तुलना में राष्ट्रीय राजमार्गों पर मौतें ज्यादा हो रही हैं। राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के मुताबिक राष्ट्रीय राजमार्ग कुल सड़कों का महज 1.58 फीसद है और सड़क दुर्घटनाओं में हुई कुल मौतों का 27.5 फीसद इन पर होती हैं।

इसी तरह राज्य हाइवे में देश की कुल सड़कों का महज 3.28 फीसद है, लेकिन कुल सड़क दुर्घटनाओं में इसका हिस्सा 25.2 फीसद है और कुल मौतों में 32.6 फीसद। इस तरह राष्ट्रीय और राज्य हाइवे को मिलाकर महज 4.86 फीसद होता है, लेकिन दुर्घटनाओं के मामले में यह 52.7 फीसद है और कुल होने वाली मौतों में इसकी हिस्सेदारी तकरीबन 60.1 फीसद है।

सड़क सुरक्षा के मानकों का महत्त्व समझना और समझाना दोनों जरूरी है, क्योंकि देश में सड़क नेटवर्क का तेजी से हो रहे विस्तार, गाड़ियों की संख्या में हो रही वृद्धि और शहरीकरण का नकारात्मक पक्ष सड़क दुर्घटनाओं के रूप में सामने आ चुका है। सड़क हादसों में होने वाली मौतें और अपंगता की बढ़ती संख्या ने यह सोचने पर विवश किया है कि क्या विकास की धुरी मानी जानी वाली सड़कें मौत का प्रमुख कारण और जगह बनती जा रही हैं? जिस सड़क से सारा यातायात संचालित होता है, क्या वे जीवन छीनने का कारण बनती जा रही हैं? सड़कें अर्थव्यवस्था की वृद्धि की आधार हैं, तो क्या सड़कों पर हो रही मौतें अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचा रही हैं?

सवाल है कि क्या सड़क हादसों में होने वाली मौतों को रोका या कम किया जा सकता है? दरअसल, जिस तरह देश-समाज की सुरक्षा वाले कानूनों का पालन महज दिखावा बन कर रह गया है वैसे ही यातायात नियमों की अनदेखी एक प्रवृत्ति बन गई है। यातायात नियमों का पालन, अतिरिक्त सावधानी, वाहन को नियंत्रित सीमा में रखना, पैदल यात्रियों का सड़क पार करते समय अतिरिक्त सावधानी बरतना, सड़कों को मानक रूप में बेहतर बनाए रखना और 'ओवरटेक' करने से बचना जरूरी है। सड़क सुरक्षा सप्ताहों में जिस तरह पुलिस यातायात नियमों के पालन के लिए लोगों को जागरूक और बाध्य करती है, वैसी जागरूकता हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाए, तो हादसों में कमी लाई जा सकती है।


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