लाल किला और गुरु तेग बहादुर
यह घटना 1675 की है। दिल्ली का लाल कि़ला उन दिनों भारत में विदेशी सत्ता का केन्द्र था
यह घटना 1675 की है। दिल्ली का लाल कि़ला उन दिनों भारत में विदेशी सत्ता का केन्द्र था। मध्य एशिया के आक्रमणकारी मुग़लों ने देश पर कब्जा किया हुआ था। उनका दरबार इसी लाल कि़ला में सजता था। उनका बादशाह इसी लाल कि़ला में बैठ कर हिन्दुस्तान पर राज करता था। उस समय यह बादशाह औरंगजेब था जिसे उत्तर-पश्चिम के लोग औरंगा कहते थे। औरंगजेब सारे हिन्दुस्तान को दारुल इस्लाम बनाना चाहता था। दारुल इस्लाम यानी इस्लाम का मुल्क। इसे वह खुदा का हुक्म मानता था। उसका मानना था कि दुनिया में प्रत्येक आदमी के पास दो ही विकल्प हैं, या तो वह मुसलमान बन जाए या फिर मरने के लिए तैयार हो जाए। कम्युनिस्ट टोले के इतिहासकार कहते हैं कि औरंगजेब बहुत ही ईमानदार व पाक साफ था। वह टोपियां तैयार करके उसे बेचता था और उस पैसे से अपना घर का ख़र्चा करता था। ऐसा पाक साफ आदमी कितना धूर्त था कि उसने अपने बाप को जेल में तड़पा तड़पा कर मारा, भाईयों को धोखे से मारा। मरे हुए शवों का भी अपमान किया। वह टोपियां सीलता रहा और राजधर्म भूल गया। धर्म कहता है कि किसी को ग़ुलाम मत बनाओ। उसने और उसके पुरखों ने सदियों से भारत को ग़ुलाम बना कर रखा हुआ था। धर्म कहता है ग़ुलाम देश की प्रजा के अनुसार भी मानवीय व्यवहार करो। उसने प्रजा की बात तो दूर अपने बाप और भाईयों के साथ भी मानवीय व्यवहार नहीं किया था। धर्म कहता है कि ईश्वर एक ही है, लेकिन उसको मानने वाले उसकी अलग-अलग रूपों में अलग-अलग प्रकार से पूजा अर्चना करते हैं। लेकिन वह कहता था कि ईश्वर का वही रूप मान्य होगा जो इस्लाम कहता है और उसकी पूजा यानी इबादत का वही तरीक़ा इस्तेमाल करना होगा जो इस्लाम में मान्य है। इसी को वह दारूल इस्लाम कहता था। उसकी इस राक्षसी इच्छा को पूरा करने के लिए उसके पास फौज थी और इस्लाम की व्याख्या करने के लिए उसके पास सैयदों की पूरी फौज थी जिनके पुरखे अरब देशों और मध्य एशिया से आकर राज दरबार में बस गए थे। ये सैयद अपने आपको हज़रत मोहम्मद के दामाद अली के ख़ानदान के बताते थे। इसलिए ये चाहते थे कि हिन्दुस्तान के लोग इनको सिजदा करें। मुसलमान बन जाएं या फिर मुगल तुर्कों की तलवार का सामना करें।