राम रहीम और कैदे बामुश्क्कत: क्यों इतना आसान है धर्म के नाम पर लोगों को बरगलाना?
ऐसा कोई भी व्यक्ति जो स्वयं से ऊपर ही नहीं उठ पाता हो वह भगवान कैसे हो सकता है? भगवान ने तो किसी भी ग्रंथ में स्वयं के लिए कुछ नहीं मांगा
सीबीआई की विशेष अदालत ने आखिरकार राम रहीम के लिए उम्रकैद की सजा मुकर्रर कर डाली। राम रहीम को यह सजा साक्ष्यों के आधार पर मिली। हमारी न्याय व्यवस्था का यह सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है कि अधिकांश अपराधी उचित साक्ष्य न होने की दशा में निरपराध घोषित हो, फ्री घूमते हैं और फिर अपराध करने को स्वतंत्र हो जाते हैं। कानूनी प्रक्रिया का अपना अलग एक तरीका है। यहां लाखों केसेस पहले ही पेंडिंग हैं। जज कम हैं और अव्यवस्था ज्यादा।
सबसे बड़ी बात कानूनी जानकारी आम इंसान के बूते से बाहर की कठिन भाषा में है। ये सारी चीजें मिलकर आम आदमी को कोर्ट के नाम से ही डरा और घबरा देती हैं। इसलिए लोग शिकायत करने और न्याय पाने से दूर रहते हैं, जबकि न्यायपालिका एक बहुत ही मजबूत आधार है।
राम रहीम केस में आम लोगों ने ही शिकायत भी की, गवाही भी दी और सबूत भी दिए। इस तरह से यह आम आदमी की जीत है। वह आम आदमी जो सहज विश्वास करता है, कानून में आस्था रखता है, आज भी अपनी अंतरात्मा की सुनता है और भगवान पर अटूट आस्था रखता है।
बहरहाल, राम रहीम जेल में ही रहेगा और वीडियो भी नहीं बना पाएगा। जैसी कि उसने जज साहब से गुजारिश की थी और जो ठुकरा दी गई। नो मोर प्रवचन, नो मोर एक्सप्लॉयटेशन प्लीज।
खैर, इस केस ने लोगों की आंखें खोलने का काम तो किया है कि आंख मूंदकर ऐसे बाबाओं पर विश्वास करना कितना घातक हो सकता है। सवाल यह है कि आखिर वह क्या चीज है जो लोगों को ऐसे लोगों पर अंधश्रद्धा करने से रोक नहीं पाती?
ये केवल एक राम रहीम की बात नहीं है। अभी आसाराम भी इसी तरह के आरोपों में अंदर हैं और केस चल रहा है। इसके पहले भी कई केसेस ऐसे बाबाओं पर चल चुके हैं। ये केवल एक धर्म विशेष का मामला भी नहीं, क्योंकि समय समय पर मस्जिद से लेकर गिरिजाघरों तक से ऐसे शोषण की दिल दहलाने वाली कहानियां सामने आती रही हैं। कहीं न्याय मिल पाया तो कहीं बात दबा दी गई। प्रश्न फिर भी वही है कि लोग धर्म की आड़ में शोषण करने वाले ऐसे लोगों की बातों में आते कैसे हैं? चलिए अब इसी बात पर आते हैं।
आमतौर पर जो लोग इस तरह के कथित धार्मिक जाल में फंसते हैं उसमें दो तरह की प्रकृति के लोग होते हैं। पहले वे जो किसी मुश्किल दौर से गुजर रहे होते हैं और दूसरे वे जो धर्म के नाम पर किसी भी व्यक्ति पर सहज विश्वास कर लेते हैं। ऐसे लोगों को शिकार बनाना आसान होता है।
बाकी के कई केसेस की ही तरह यहां भी शोषण का शिकार वे ही महिलाएं या युवतियां होती हैं, जिन्हें या तो उनके परिवार वाले आर्थिक तंगी या अन्य कारणों से ऐसे ढोंगी बाबाओं की सेवा के लिए छोड़ जाते हैं या फिर जो किसी परेशानी के समाधान के लिए इन बाबाओं को चमत्कार के रूप में मां बैठती हैं।
राम रहीम की जीवनशैली, उनके ठिकाने की साज-सज्जा और भव्यता ने उन्हें एक हीरो की तरह प्रस्तुत करने में और भी योगदान दिया और यह एक स्थापित सत्य है कि अधिकांशतः आम इंसान पैसे की चकाचौंध से प्रभावित भी होता है और डरता भी है।
वह जानता है कि अगर वह कुछ नहीं कर सकता तो उसे किसी ऐसे की शरण ले लेनी चाहिए, जहां उसका भला जो। ये तमाम चीजें मिलकर राम रहीम जैसे लोगों के आस पास भीड़ बढ़ा डालती हैं।
अब इनमें से ही कुछ स्वार्थी अनुयायी सेवादार से राजदार बन जाते हैं और हवा में से भभूति प्रकट करने से लेकर महाराज की सेवा में प्रस्तुत लोगों से वसूली करने तक मे ये मददगार बन जाते हैं। फिर शुरू होता है सिलसिला शोषण का। न लालसा का अंत होता है न शोषण का। यही राम रहीम के मामले में हुआ। लेकिन पाप का घड़ा जब भरा तो उसके खास राजदार भी ज्यादा देर साथ नहीं दे पाए।
इस तरह के सभी बाबाओं या धर्म की आड़ में लोगों के साथ ठगी करने वालों के पास दो मुख्य तरीके होते हैं। पहला बातों का इंद्रजाल और दूसरा भव्यता और मैजिक ट्रिक्स के बूते पर स्वयं को भगवान घोषित कर देना। आम आदमी इसी बहकावे में आ जाता है। ऊपर से जब व्यक्ति देखता है कि ऐसे लोगों राजनीतिक प्रश्रय के साथ ताकतवर लोगों का वरदहस्त भी प्राप्त है, तो वह इनकी शक्ति के आगे घुटने टेक देता है। इसी का फायदा राम रहीम जैसे लोग उठाते हैं।
यदि कोई वाकई संत है तो उसे मोहमाया की बेड़ियों की जरूरत ही नहीं। इस तरह संत की परिभाषा पर तो ये लोग फिर बैठते नहीं। ये ज्यादा से प्रवचनकार हो सकते हैं जो लोगों को धर्म संबंधी बातें बताते हैं चाहे वे किसी भी धर्म से जुड़े हों।
ऐसा कोई भी व्यक्ति जो स्वयं से ऊपर ही नहीं उठ पाता हो वह भगवान कैसे हो सकता है? भगवान ने तो किसी भी ग्रंथ में स्वयं के लिए कुछ नहीं मांगा। ऐसा कहा जाता है कि भगवान तो सिर्फ भाव के भूखे होते हैं। तो फिर खुद को खुदा मानने वाले सच्चे कैसे हुए?
यह बात हमेशा ध्यान रखिए कि आपकी समस्याओं का हल आपको खुद के भीतर से ही मिलता है। यह भी कहा जाता है कि ईश्वर भी उसकी मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करता है। तो बजाय किसी और पर हल के लिए आश्रित होने के ईश्वर पर और खुद पर भरोसा कीजिए। ढोंगी बाबाओं पर नहीं।
इसलिए हर स्तर पर गांव और दूरदराज इलाकों तक इस बात को लेकर जानकारी का प्रसार जरूरी है कि किस तरह कुछ स्वार्थी तत्व आपको धर्म के नाम पर ठग सकते हैं या आपका शोषण कर सकते हैं। इनसे सतर्क रहने के तरीकों के बारे में लोगों को बताएं।
80 के दशक में महाराष्ट्र में नरेंद्र दाभोलकर ने अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की स्थापना इसी उद्देश्य से की थी कि ग्रामीण और पिछड़े वर्गों के मन से अंधविश्वास को मिटाया जा सके और धर्म के नाम पर ऐसे फायदा उठाने वालों से लोगों को बचाया जा सके। ऐसी समितियों की जरूरत वक्त के साथ और बढ़ गई है, क्योंकि अब बाबा ज्यादा हाईटेक हो गए हैं और लोग अंधविश्वासी।