राजीव के हत्यारे की रिहाई
31 वर्षों से जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों में से एक ए.जी. पेरारिवलन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिहा करने के आदेश के बाद राजनीति को गर्माने का सिलसिला शुरू हो चुका है।
आदित्य नारायण चोपड़ा: 31 वर्षों से जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों में से एक ए.जी. पेरारिवलन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिहा करने के आदेश के बाद राजनीति को गर्माने का सिलसिला शुरू हो चुका है। विपक्ष का कहना है कि सरकार ने ऐसे हालात पैदा किए कि सुप्रीम कोर्ट को यह आदेश देना पड़ा। विपक्षी नेताओं ने 9 सितम्बर 2018 को तमिलनाडु की तत्कालीन अन्नाद्रमुक-भाजपा सरकार को भी दोषी ठहराया है जिसने यह सिफारिश की थी कि राजीव गांधी हत्या के सभी सात दोषियों को रिहा कर दिया जाए। राज्यपाल ने भी कोई निर्णय नहीं लिया और उन्होंने अपना पल्ला झाड़ते हुए मामला राष्ट्रपति के पास भेज दिया। उन्होंने ने भी कोई निर्णय नहीं लिया। कुछ लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि ऐसे तो उन हजारों कैदियों को भी छोड़ देना चाहिए जिन्हें आजीवन कारावास मिली हुई है क्योंकि यह मामला पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या से जुड़ा हुआ है इसलिए हत्यारे की रिहाई को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। चेन्न्ई की विशेष अदालत ने पेरारिवलन को पहले मृत्युदंड की सजा सुनाई थी जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया।दरअसल जिस जनसभा में राजीव गांधी की हत्या हुई थी उसमें जिस बैटरी का इस्तेमाल हुआ था उसका इंतजाम पेरारिवलन ने किया था। वह इस बात को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ता रहा है कि इस हत्या की सािजश की उसे जरा भी भनक नहीं थी वो एक प्रतिभाशाली इंजीनियरिंग छात्र था। गिरफ्तारी के बाद जेल में ही उसने पढ़ाई की। इसमें एक परीक्षा में वो गोल्ड मैडलिस्ट भी रहा। उसने जेल में ही कम्प्यूटर एपलिकेशन (बीसीए) और फिर एमसीए किया। राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का मुद्दा चुनावी मद्दा भी बना रहा है। इस मुद्दे पर पहला बड़ा राजनीतिक निर्णय 2000 में लिया था। जब उन्होंने राजीव गांधी की हत्या में लिप्त नलिनी को मौत की सजा की सिफारिश करने वाले मंत्रिमंडल की अध्यक्षता की लेकिन अन्नाद्रमुक प्रमुख अम्मा जयललिता ने 2014 में घोषणा की कि वह दोषियों को रिहा कर देगी। यह वह दिन था जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन, संथानम, मुर्गन की सजा उम्रकैद में बदल दी थी तब कांग्रेस सरकार ने कोर्ट का द्वार खटखटाया था और जयललिता को अपना फैसला रोकना पड़ा था।द्रमुक ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। पूर्व में गांधी परिवार ने भी दोषियों काे माफ कर देने की बात कही थी। नलिनी की फांसी को कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने खुद मानवीय आधार पर माफ कराया था। दरअसल इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी आसाधारण शक्तियों का इस्तेमाल किया है। इस अनुच्छेद के तहत संविधान में सुप्रीम कोर्ट को एक विशेषाधिकार मिला हुआ है। जिसके तहत किसी व्यक्ति को पूर्ण न्याय देने के लिए कोर्ट जरूरी निर्देश दे सकता है। वर्ष 1892 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विलियम एवार्ट ग्लाइड स्टॉन का एक कोट अक्सर सामने आ ही जाता है। संपादकीय :मथुरा में 'श्री कृष्ण जन्म स्थल'अमरनाथ यात्रा की पुख्ता तैयारीजेहादी मानसिकता का अन्त होअमर शहीद रमेश जी के बलिदान दिवस पर वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब द्वारा आर्थिक सहायता वितरणकाशी में बसते भोले बाबाभारत-नेपाल में फिर नजदीकियांJUSTICE DELAYED JUSTICE DENIED यानी देर से मिला न्याय 'अन्याय' के बराबर होता है। राजीव गांधी हत्या केस में यह वाक्य सटीक बैठता है। कितना अजीब है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की जाती है मगर हत्या के तीस साल बाद भी किसी को फांसी नहीं दी जाती। यह भी कितना अजीब है कि 23 साल पहले फांसी की सजा का ऐलान भी हो जाता है मगर चार दोषियों के लिए वह फंदा तैयार नहीं हो पाता है जिससे सजा मुकम्मल की जा सके। उससे भी अजीब है कि सालों तक दया याचिका पर कोई निर्णय नहीं होता। राजीव गांधी की हत्या के बाद हुई कार्रवाइयों का इतिहास अब तीन दशक से भी ज्यादा पुराना हो चुका है। एक आत्मघाती विस्फोट, राजीव गांधी की हत्या, राजीव गांधी परिवार के बच्चों की वेदना, जांच और कानून की पेचीदिगियों सिस्टम की लाचारगी और बहुत सारे सवालों के बीच राजीव गांधी हत्या का केस तैयार हुआ। मानवाधिकार संगठन भी जेलों में बंद ऐसे लोगों की रिहाई की मांग करते रहे हैं जिनकी सजा पूरी हो चुकी है। कुछ जांचकर्ताओं ने भी इस बात को स्वीकार किया कि पेरारिवलन का पूरी साजिश में शामिल होना या नहीं होना विवादित प्रश्न है। कुछ का व्यक्तिगत मत है कि पेरारिवलन ने बैटरी जरूर दी लेकिन उसे यह नहीं पता था कि बैटरी का इस्तेमाल क्या होने वाला है। पेरारिवलन की रिहाई के बाद सियासत हो रही है। राजनीति की दिलचस्पी वोटों के लिए, वोटों की सियासत सत्ता के लिए है यह सब जानते हैं लेकिन पूरे मामले में न्यायिक प्रणाली की कार्यप्रणाली पर सवाल जरूर खड़े किए हैं। राजीव गांधी हत्या केस की ही तरह बेअंत सिंह हत्या केस के आरोपी को फांसी नहीं हुई उसकी भी रिहाई की मांग की जा रही है।