यूपी में राजभर-ओवैसी का संकल्प मोर्चा: बीजेपी या SP-BSP किसके लिए होगा घातक?

उत्तर प्रदेशमें 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए बिगुल फूंका जा चुका है.

Update: 2021-07-06 12:58 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में 2022 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections 2022) के लिए बिगुल फूंका जा चुका है. तमाम राजनीतिक पार्टियां चुनावी रण में अपना विजय पताका लहराने के लिए कटिबद्ध हो चुकी हैं, इस बार के विधानसभा चुनाव में सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (BJP) और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के बीच है. हालांकि, अपने कोर वोट बैंक के चलते मायावती (Mayawati) भी इस लड़ाई में शामिल हैं. लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में सबसे नई बात देखने को मिल रही है वह है असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) और ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) की नई रणनीति, जिसे 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' का नाम दिया गया है. ओमप्रकाश राजभर 2017 के विधानसभा चुनाव में एनडीए (NDA) का हिस्सा थे, लेकिन किन्हीं कारणों को लेकर उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए से अपना रिश्ता तोड़ लिया और असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर 10 छोटी पार्टियों को मिलाकर एक नए गठबंधन भागीदारी संकल्प मोर्चा के निर्माण में जुट गए.

असदुद्दीन ओवैसी और ओपी राजभर की यह कोशिश, उत्तर प्रदेश में कितनी कामयाब होगी यह तो आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे. लेकिन इस बात से बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता कि यह नया समीकरण आगामी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को नुकसान पहुंचाएगी.
दरअसल ओपी राजभर, राजभर समुदाय पर अच्छी पकड़ रखते हैं. जिसकी उत्तर प्रदेश में लगभग 3 फ़ीसदी आबादी है. यह आबादी 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ खड़ी थी. लेकिन अब जब ओपी राजभर एनडीए से अलग हो चुके हैं, जाहिर सी बात है यह वोट बैंक भी कहीं ना कहीं एनडीए से छिटक गया है. वहीं असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों के वोट बैंक पर सीधा नजर गड़ाए हुए हैं. जिसकी आबादी उत्तर प्रदेश में लगभग 20 फ़ीसदी है. मुस्लिम आबादी उत्तर प्रदेश में तकरीबन 125 विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव डालती है. इस नए समीकरण से साफ पता चलता है कि अगर असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर के साथ-साथ 10 नई छोटी पार्टियों का गठबंधन हो गया जिनका आधार एक विशेष जाति समूह पर केंद्रित है तो यह बीजेपी, बीएसपी और एसपी के लिए नुकसानदायक साबित होंगी.
सबसे ज्यादा किस को नुकसान पहुंचाएगी भागीदारी संकल्प मोर्चा
असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर का नया गठबंधन भागीदारी संकल्प मोर्चा सबसे ज्यादा नुकसान किसे पहुंचाएगा यह तो आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे बताएंगे. हालांकि, अगर जातिगत समीकरणों के हिसाब से देखें. तो उत्तर प्रदेश में लगभग 17 ऐसी जातियां हैं जो इस भागीदारी संकल्प मोर्चा से प्रभावित हो सकती हैं, जिनमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, वाथम, तुरहा, गोड़िया और मांझी है. इनकी आबादी यूपी में लगभग 13 फ़ीसदी के करीब है. 2017 के विधानसभा चुनाव में यह सारी जातियां भारतीय जनता पार्टी की ओर थीं. लेकिन अब जब यूपी में भागीदारी संकल्प मोर्चा बना है जिसमें 10 छोटी पार्टियां भी शामिल हैं जो इन्हीं जातियों का नेतृत्व करती हैं तो जाहिर सी बात है इससे भारतीय जनता पार्टी को काफी नुकसान होने की संभावना है.
इसी तरह से असदुद्दीन ओवैसी जिनकी नजर यूपी के मुस्लिम वोट बैंक पर है, जिसकी जनसंख्या उत्तर प्रदेश में लगभग 20 फ़ीसदी है वह 2014 और 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की तरफ थीं. लेकिन अब जब असदुद्दीन ओवैसी सीधे मैदान में हैं तो जाहिर सी बात है जैसे ओवैसी के आने से बिहार में आरजेडी को नुकसान हुआ था उसी तरह उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को भी नुकसान होना तय माना जा रहा है. बात जहां तक रही मायावती की तो यह नया गठबंधन उनके वोट बैंक में भी सेंध लगाने की पूरी कोशिश कर रहा है, दरअसल भागीदारी संकल्प मोर्चा ने जिन 10 पार्टियों का गठबंधन बनाया है उसमें उभरते हुए दलित युवा नेता चंद्रशेखर की पार्टी भारतीय समाज पार्टी भी शामिल हैं जो मायावती के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने को तैयार बैठे हैं.
ओमप्रकाश राजभर को मनाने में जुटी बीजेपी
बीजेपी को पता है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव हो या 2017 के विधानसभा चुनाव , पार्टी को अति पिछड़ी जातियों का बंपर सपोर्ट मिला था. अगर इन जातियों के वोटर इनसे रूठते हैं तो भारतीय जनता पार्टी को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी. बीजेपी को य़ह पता है कि अगर ओमप्रकाश राजभर इसी तरह से उत्तर प्रदेश की छोटी-छोटी पार्टियों को एक साथ लाकर उसके सामने खड़े हो गए तो उसके लिए आगामी विधानसभा चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा. यही वजह है कि बीजेपी अब ओमप्रकाश राजभर को फिर से एनडीए में शामिल करने पर जोर दे रही है. सूत्रों के अनुसार बीजेपी के एक बड़े नेता इस वक्त ओमप्रकाश राजभर के संपर्क में हैं, यहां तक कि उन्होंने ओमप्रकाश राजभर से दो दौर की बातचीत भी कर ली है, इस बातचीत के दौरान ओमप्रकाश राजभर को यकीन दिलाया गया है कि जल्द ही रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को लागू किया जाएगा और उन्हें योगी कैबिनेट में दोबारा एंट्री दिलाया जाएगा.
भारतीय जनता पार्टी को पता है कि उत्तर प्रदेश में जो छोटी राजनीतिक पार्टियां हैं जिनका आधार एक विशेष जाति समूह होता है अगर उन्हें अपने साथ मिला लिया जाए तो छोटी-छोटी कई जातियों पर पकड़ बना कर उसकी स्थिति और मजबूत हो जाएगी जिसका लाभ उत्तर प्रदेश के ज्यादातर विधानसभा सीटों पर दिखाई देगा. मीडिया में चल रही खबरों की माने तो बीजेपी और ओमप्रकाश राजभर के बीच अब सिर्फ एक ही मुद्दा आकर खड़ा है, ओमप्रकाश राजभर चाहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू कर दे तो वह फिर से एनडीए का हिस्सा हो जाएं.
पंचायत चुनाव और पूर्वांचल में पकड़ ओपी राजभर की स्थिति मजबूत करती है
उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में जिस तरह से पूर्वांचल के क्षेत्र में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी ने प्रदर्शन किया उसे देख कर यूपी में उनकी मजबूत स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी राजभर की पार्टी को कई सीटों पर जीत मिली. पंचायत चुनाव में मिले जीत की वजह से ओमप्रकाश राजभर अब खुद को यूपी में मजबूत स्थिति में देख रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में राजभर समुदाय की आबादी भले ही 3 फ़ीसदी है, लेकिन पूर्वांचल में इस समुदाय की आबादी लगभग 12 से 22 फ़ीसदी है. राजभर समुदाय उत्तर प्रदेश के घाघरा नदी के दोनों ओर के इलाकों के सियासत को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. गाजीपुर, मऊ, बलिया, देवरिया, चंदौली, लालगंज, आजमगढ़, मछली शहर, अंबेडकर नगर, जौनपुर, मिर्जापुर, वाराणसी और भदोही जैसे जिलों में इस समुदाय की अच्छी खासी आबादी रहती है, जो पूरे राज्य के करीब 50 विधानसभा सीटों पर प्रभाव बनाती है. ओमप्रकाश राजभर एनडीए से दूर हुए तो पार्टी ने राजभर समुदाय को साधने के लिए अनिल राजभर को मोर्चे पर लगाया, हालांकि अनिल राजभर, राजभर समुदाय में उतनी पैठ नहीं बना पाए जितना कि ओमप्रकाश राजभर का है.

एसपी, बीएसपी और कांग्रेस के साथ भी जा सकती है भागीदारी संकल्प मोर्चा

भागीदारी संकल्प मोर्चा उत्तर प्रदेश में जिस तरह से छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को एक साथ लाने की कोशिश कर रही है वह कहीं ना कहीं सूबे की बड़ी पार्टियों के ऊपर प्रेशर बना रही है, जिसमें खास तौर पर समाजवादी पार्टी, कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी है. इन तीनों पार्टियों को पता है कि अगर 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' इनके साथ आ जाती है तो प्रदेश में इनकी स्थिति और भी ज्यादा मजबूत हो जाएगी. भागीदारी संकल्प मोर्चा ने फिलहाल इन तीनों पार्टियों से गठबंधन को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में इसकी पूरी उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव से पहले असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली भागीदारी संकल्प मोर्चा समाजवादी पार्टी, कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में से किसी एक के साथ गठबंधन करके उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़े. अगर ऐसा होता है तो यह नया समीकरण भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत बनने वाला है.


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