श्रीलंका में गुस्सा सड़कों पर न केवल मुखर होने लगा है, बल्कि हिंसा पर भी उतारू होने लगा है। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग इस कदर तेज हो गई है कि लोग राष्ट्रपति कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन करने लगे हैं। प्रदर्शन केवल कोलंबो में ही नहीं, उसके आसपास के उपनगरों में भी हो रहे हैं। गुरुवार को स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि कफ्र्यू लगाना पड़ा। राष्ट्रपति कार्यालय ने गुरुवार को हुई हिंसा के लिए संगठित चरमपंथियों को जिम्मेदार ठहराया है, इसके बाद 54 गिरफ्तारियां हुई हैं। दरअसल, लोग ईंधन, बिजली और दूध की कमी से बहुत परेशान हैं। प्रदर्शन के दौरान हुई झड़प में आम लोगों के साथ-साथ पुलिस वाले भी घायल हुए हैं। लोगों को राष्ट्रपति भवन के सामने से हटाने के लिए आंसू गैस के गोले व पानी की बौछार भी करनी पड़ी है। लोग राष्ट्रपति से इस कदर नाराज हैं कि उनका एक ही नारा है, गोटाबाया घर जाओ। पुलिस की एक बस को प्रदर्शनकारियों ने आग के हवाले कर दिया। सेना व पुलिस ने संयम से काम लिया है, पर आने वाले दिनों हिंसक प्रदर्शन नहीं होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
दिक्कत यह है कि हजारों लोग प्रदर्शन के लिए जुट जा रहे हैं, एक साथ इतने लोगों पर कठोर कार्रवाई करना किसी सरकार या प्रशासन के लिए या श्रीलंका जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए बहुत मुश्किल काम है। लोगों ने ही राष्ट्रपति चुना है और अब ज्यादातर लोग राष्ट्रपति को हटाने के पक्ष में हैं। लोग यह मानते हैं कि वर्तमान राष्ट्रपति ने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया है, तो इसमें एक हद तक सच्चाई है। गौर करने की बात है कि गोटाबाया राजपक्षे को श्रीलंका में शांति के लिए भी श्रेय दिया जाता है। लिट्टे के साथ श्रीलंका के लगभग 30 साल चले संघर्ष को समापन तक पहुंचाने में गोटाबाया का बड़ा योगदान है। श्रीलंका में उन्हें युद्ध नायक मानने वाले बहुत रहे हैं, लेकिन अब उनकी लोकप्रियता तेजी से छीज रही है। वह श्रीलंका में एक आदर्श नायक की हैसियत गंवाने लगे हैं। उनके कार्यालय के सामने हुआ प्रदर्शन श्रीलंका के लिए अशुभ संकेत है।
तेल या ईंधन की घटती आपूर्ति ने इस द्वीप देश को हिलाकर रख दिया है। प्रतिदिन 13 घंटे या उससे भी ज्यादा की बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। देश पर खूब ऋण है और विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका है। भारत ने फरवरी और मार्च में श्रीलंका को 2.4 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता दी है। श्रीलंका को और पैसा चाहिए, क्योंकि उसकी कमाई लगभग थम गई है। भारत विभिन्न परियोजनाओं के तहत आर्थिक सुधार के प्रयास में लगा है, लेकिन इसमें समय लगेगा। युद्ध और जरूरत से ज्यादा नीतिगत परिवर्तनों की वजह से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था लगभग चौपट हो गई है। भारत को बड़े पैमाने पर श्रीलंका की मदद के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि भारत श्रीलंका का निकटतम पड़ोसी है। गौर करने की बात है कि श्रीलंका में पैदा संकट का असर तमिलनाडु पर भी पड़ेगा। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने राज्य सरकार द्वारा श्रीलंकाई तमिलों को मानवीय सहायता देने की अनुमति मांगी है। भय है कि बेरोजगारी और कमर तोड़ महंगाई के चलते श्रीलंका से तमिलों का पलायन बढ़ जाएगा, जिससे तमिलनाडु पर सीधे भार बढ़ेगा। श्रीलंका के संकट की अनदेखी परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से भारत को नुकसान पहुंचाएगी। श्रीलंका में स्थिति जल्दी संभल जाए और हिंसक स्थिति कहीं पैदा न हो, इसके लिए भारत को हरसंभव कदम उठाने चाहिए।
क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान