बैंकों का निजीकरण समाज के हित में नहीं
एक बैंक को छोड़ सभी सरकारी क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण करने के पीछे क्या तर्क हो सकता है
एक बैंक को छोड़ सभी सरकारी क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण करने के पीछे क्या तर्क हो सकता है, यह तो सरकार ही जाने, लेकिन निजीकरण से होने वाले संभावित नुकसान को लेकर मुझे ऐसा लगता है कि कोई भी देशवासी खुशी महसूस नहीं कर रहा होगा, खासकर जनसंख्या का 70 फीसदी आरक्षित वर्ग। बैंक कारपोरेट्स के हाथों में होंगे। बैंकों पर से सरकारी कंट्रोल खत्म हो जाएगा, बैंक अपनी मनमानी चला सकते हैं क्योंकि उनकी प्राथमिकता अधिक से अधिक फायदा कमाने की होगी। हर प्रकार के सेवाशुल्क से आम आदमी की जेब पर डाका डल सकता है। ग्रामीण क्षेत्र की शाखाएं कम या बंद हो सकती हैं।
सबसे बड़ा नुकसान होगा युवाओं का क्योंकि नौकरियां सरकारी के बजाय निजी हो जाएंगी तो लाजमी है कि वेतन भी कम होगा।
-रूप सिंह नेगी, सोलन
By: divyahimachal