By: divyahimachal
हिमाचल में बसना तो सभी चाहते हैं, लेकिन अब हिमाचल को बसाने वालों की तलाश में, नए निवेश के रास्ते खोलने की सारी बाधाएं हटाने का वक्त आ गया है। निजी निवेश की प्राथमिकताओं के साथ इसके प्रति प्रदेश का सौहार्द आवश्यक है और इसीलिए वर्तमान सुक्खू सरकार भी कुछ नई खिड़कियां खोलने का प्रण ले चुकी है। ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टमेंट एक अनूठी पहल हो सकती है, बशर्ते ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की प्राथमिक रुकावटें हट जाएं। हालांकि पूर्व की कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने भी अपने-अपने ढंग से निजी निवेश को आकर्षित करने का बीड़ा उठाया था, लेकिन इस दिशा में आगे बढऩे का परिणाम अभी सामने नहीं आया है। एक बार फिर मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू व्यवस्था परिवर्तन के लक्ष्य में निजी निवेश को आगे बढ़ाते हुए दृढ़ प्रतिज्ञ दिखाई दे रहे हैं। आर्थिकी की साझेदारी में निजी निवेश को पुकार रही हिमाचल सरकार ने कुछ अहम कदम उठाने का मंसूबा पाल रखा है। इसी के तहत बीस हजार करोड़ निवेश का लक्ष्य और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष नब्बे हजार नौकरियों का वायदा भी सरकार कर रही है। अधोसंरचना, उद्योग, पर्यटन, ऊर्जा व आवासीय योजनाओं में हिमाचल आगे बढक़र निजी क्षेत्र के साथ कदमताल करना चाहता है, लेकिन निवेशक को पर्वतीय आंचल में बसाने के लिए कुछ सम्मान, कुछ प्रेरणा-प्रोत्साहन, सहज-सरल तरीके व भविष्य की गारंटी भी देनी होगी, वरना जिस प्रदेश में धारा 118 के तहत अनुमति लेना ही कोड़े बरसाने जैसा प्रावधान हो, वहां निवेश का पहला कदम ही घायल हो जाता है।
प्रदेश की कनेक्टिविटी एक दूसरी समस्या है, जबकि सबसे अहम मुद्दा यहां उपयुक्त मानव संसाधन की खोज तथा निजी क्षेत्र की कार्य संस्कृति को अपनाने का भी है। उम्मीद है प्रस्तावित ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टमेंट तमाम अनुमतियों के साथ-साथ युवाओं को निजी क्षेत्र में काम करने के लिए भी प्रेरित करेगा। दूसरी ओर अनुसंधान का विषय यह भी है कि निवेश की प्राथमिकताएं तय करते हुए यह भी विचार किया जाए कि युवा उद्यमशीलता किस क्षेत्र में रुचि दिखा रही है और इसे निजी क्षेत्र की समग्रता में पहचाना जाए। मसलन पिछले दो दशकों में निजी स्कूलों व अस्पतालों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है, जबकि कारोबार की विभिन्न श्रेणियों में उपभोक्ता मांग के अनुरूप बाजार अब हट्टी से निकल कर मॉल में परिवर्तित हो रहा है। ट्रांसपोर्ट सेक्टर और पर्यटन क्षेत्र में निवेश व रोजगार की अधिकतम संभावनाएं हैं। निजी वोल्वो बसों के बढ़ते संचालन को देखते हुए कर प्रणाली को आसान व सरल बनाना होगा और इन्हें पर्यटन पार्टनर के रूप में आगे बढ़ाते हुए शिमला, मनाली व धर्मशाला में वोल्वो बसों के पार्किंग स्थल विकसित करने होंगे। हिमाचल में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत दो स्मार्ट शहरों की दर्जनों निवेश योजनाएं पहले ही ध्वस्त हो चुकी हैं, तो सोचना यह होगा कि सरकारी मशीनरी किस ढंग से कार्य करती है या कोरी सियासत के चलते हम कितने अवसर खो चुके हैं। कांगड़ा एयरपोर्ट निर्माण के साथ सुक्खू सरकार निवेश के सारे मानचित्र भी बदल सकती है। इसी तरह अगर पूरे प्रदेश में निवेश, पुनर्वास, आईटी, एजुकेशन व हैल्थ जोन बना कर निजी निवेश को हांक लगाएं तो सारा परिदृश्य बदल जाएगा।
जरूरत है वर्तमान शिक्षा का चरित्र व पाठ्यक्रम बदल कर इसके तहत युवाओं में उद्यमशीलता के ख्वाब भरे जाएं। सरकार प्रमुख मार्गों पर हर बीस किलोमीटर के बाद पर्यटन परिसर निर्माण के लिए निवेश प्रेरित कर सकती है, तो पूरे प्रदेश में सौ के करीब छोटे-बड़े बस स्टैंड परिसर कम मॉड्रन शापिंग काम्पलेक्स निर्माण में निजी क्षेत्र को मौका दे सकती है। इसी तर्ज पर टूरिस्ट विलेज, पार्किंग एवं व्यापारिक परिसर तथा फूड मार्ट जैसी सुविधाओं में स्थानीय युवाओं को उद्यमी बना सकती है। निवेश की अवधारणा में युवाओं में उद्यमशीलता लाने का एक प्रयास इलेक्ट्रिक टैक्सी के मार्फत भी हो सकता है। टाटा जैसे कारपोरेट हाउस से संपर्क साध कर, हिमाचल इसे ई टैक्सी का ब्रांड एंबेसेडर बना दे, तो युवाओं को आसान दरों पर वाहन उपलब्ध होंगे। ई टैक्सी सेवा को अपने कंधों पर उठा कर हिमाचल न केवल इनके किराये को कम दरों पर निर्धारित कर सकता है, बल्कि इस सेवा के मार्फत पर्यटन व प्रदेश की ब्रांडिंग भी कर सकता है। प्रदेश में इस तरह पांच से दस हजार तक युवा ई टैक्सी सेवा सारे परिवहन क्षेत्र की भूमिका ही बदल देगी।