बिजली का गहराता संकट
इस वक्त करीब तीस बिजली संयंत्रों में कोयले का भंडार गंभीर श्रेणी में है, जहां सात दिन से भी कम का कोयला बचा है। माना जा रहा है कि अगर स्थिति नहीं सुधरी तो यह बेहद गंभीर यानी तीन दिन से भी कम की श्रेणी में आ जाएगा।
योगेश कुमार गोयल; इस वक्त करीब तीस बिजली संयंत्रों में कोयले का भंडार गंभीर श्रेणी में है, जहां सात दिन से भी कम का कोयला बचा है। माना जा रहा है कि अगर स्थिति नहीं सुधरी तो यह बेहद गंभीर यानी तीन दिन से भी कम की श्रेणी में आ जाएगा। संघीय दिशा-निर्देशों के अनुसार बिजली संयंत्रों में कम से कम चौबीस दिनों का कोयला होना चाहिए।
भीषण गर्मी के बीच बिजली की बढ़ती मांग के कारण देश के कई राज्यों में बिजली की कमी का संकट गहराने लगा है। मांग बढ़ने के साथ ही तापबिजली घरों में कोयले की खपत तेजी से बढ़ी है और इसी कारण कुछ राज्यों के बिजली कारखानों में कोयले का भंडार घट रहा है। दरअसल, गर्मी के कारण बिजली कंपनियों में बिजली की मांग दस फीसद तक बढ़ गई है। जैसे-जैसे गर्मी और बढ़ेगी, बिजली की मांग भी उसी तेजी से बढ़ती जाएगी।
औद्योगिक गतिविधियों में तेजी की वजह से उद्योगों में भी बिजली की खपत बढ़ रही है। लेकिन मांग के अनुरूप बिजलीघरों को कोयला मिल नहीं पा रहा है। बिजली की कमी के कारण आंध्र प्रदेश में तो स्टील उत्पादन करने वाली एक कंपनी ने अपना उत्पादन पचास फीसद घटा दिया है। इस वक्त करीब तीस बिजली संयंत्रों में तो कोयले का भंडार गंभीर श्रेणी में है, जहां सात दिन से भी कम का कोयला बचा है। माना जा रहा है कि अगर स्थिति नहीं सुधरी तो यह बेहद गंभीर यानी तीन दिन से भी कम की श्रेणी में आ जाएगा। संघीय दिशा-निर्देशों के अनुसार बिजली संयंत्रों में कम से कम चौबीस दिनों का कोयला होना चाहिए।
देश के प्रमुख औद्योगिक गढ़ महाराष्ट्र में तो कई वर्षों बाद इतना बड़ा बिजली संकट पैदा हुआ है, जहां मांग के मुकाबले ढाई हजार मेगावाट बिजली कम मिल रही है। आंकड़े देखें तो महाराष्ट्र में करीब अट्ठाईस हजार मेगावाट बिजली की मांग है, जो पिछले वर्ष के मुकाबले चार हजार मेगावाट ज्यादा है। उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, मध्यप्रदेश, झारखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना जैसे राज्यों भी बिजलीघर कोयले की किल्लत से जूझ रहे हैं। झारखंड, बिहार, हरियाणा, उत्तराखंड में मांग के मुकाबले तीन-तीन फीसद कम बिजली मिल रही है।
आंध्र प्रदेश में तो मांग के मुकाबले बिजली की आपूर्ति में 8.7 फीसद की कमी आई है। उत्तर प्रदेश में बाईस हजार मेगावाट मांग के मुकाबले उन्नीस हजार मेगावाट की ही आपूर्ति हो पा रही है। राजस्थान और मध्यप्रदेश का भी कमोबेश यही हाल है। राजस्थान में प्रतिदिन बारह से सोलह हजार टन, जबकि मध्यप्रदेश में पंद्रह हजार छह सौ मीट्रिक टन कोयले की कमी चल रही है। हरियाणा में 11 अप्रैल की स्थिति देखें, तो इस दिन पिछले साल के मुकाबले बिजली की मांग बीस फीसद ज्यादा थी, लेकिन कोयले की कमी और तकनीकी गड़बड़ियों के कारण बिजली उत्पादन कम हो पा रहा है। पंजाब में भी कोयले की किल्लत के कारण बिजली उत्पादन बारह सौ मेगावाट घट गया है।
केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए) के मुताबिक देश में एक सौ तिहत्तर बिजली संयंत्रों में से एक सौ पचपन ऐसे बिजली संयंत्र हैं, जहां पास में कोई कोयला खदान नहीं है और इनमें औसतन कोयले का करीब अट्ठाईस फीसद भंडार है। जबकि कोयला खदानों के पास स्थित अठारह संयंत्रों का औसत भंडार सामान्य मांग का इक्यासी फीसद है। सीईए के आंकड़ों के अनुसार एक सौ तिहत्तर बिजली संयंत्रों में से सनतानवे में कोयले के भंडार की गंभीर स्थिति है। पिछले साल अक्तूबर में भी बिजली की मांग करीब एक फीसद बढ़ जाने के कारण कोयला संकट के चलते बिजली संकट गहराया था, लेकिन अब केवल एक हफ्ते के भीतर ही बिजली की मांग 1.4 फीसद बढ़ जाने से यह संकट गंभीर हो गया है।
पिछले साल के बिजली संकट के बाद यह स्पष्ट हुआ था कि बिजली संयंत्रों को कोयले की वांछित आपूर्ति नहीं होने के अलावा कई नीतिगत खामियां भी बिजली संकट का प्रमुख कारण बनती रही हैं। बिजली संकट के कारण आम नागरिकों की परेशानियां तो बढ़ती ही हैं, देश की अर्थव्यवस्था पर भी काफी बुरा असर पड़ता है। ऊर्जा की कमी को आर्थिक विकास में बड़ी बाधा माना गया है।
गौरतलब है कि कोरोना काल से पहले अगस्त 2019 में देश में बिजली की खपत एक सौ छह अरब यूनिट थी, जो करीब अठारह फीसद बढ़ोतरी के साथ अगस्त 2021 में एक सौ चौबीस अरब यूनिट हो गई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि मार्च 2023 तक देश में बिजली की मांग में 15.2 फीसद तक की बढ़ोतरी हो सकती है, जिसे पूरा करने के लिए कोयला आधारित बिजलीघरों को उत्पादन में 17.6 फीसद वृद्धि करनी होगी। देशभर में कुल उत्पादन का पचहत्तर फीसद बिजली उत्पादन कोयला से चलने वाले बिजलीघरों से ही होता है।
बिजली संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने गैरबिजली क्षेत्र को कोयले की कम आपूर्ति करने का फैसला किया है। साथ ही, आयातित कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों की समीक्षा के बाद सरकार ने यह निर्णय भी किया कि कोयला संकट से निपटने और बिजली उत्पादन जारी रखने के लिए केंद्र सरकार राज्यों को खदानों के पास वाले संयंत्रों के लिए लिंकेज कोल पर पच्चीस फीसद टोलिंग सुविधा देगी, जिसके तहत आयातित कोयले में देशी कोयला मिलाया जाता है।
लंबी दूरी के परिवहन से बचने के लिए बिजली मंत्रालय ने देशी और आयातित कोयले को मिलाने की जो सुविधा मुहैया कराने का फैसला किया है, उस प्रणाली में राज्यों की बिजली उत्पादन कंपनियां कोयला खदानों के पास तापबिजली घरों को उत्पादन करने की अनुमति दे सकती हैं। कोयले की बढ़ती मांग के कारण बिजली मंत्रालय ने कोयले का आयात बढ़ा कर तीन करोड़ साठ लाख टन करने को कहा है। हालांकि विदेशों से कोयले का आयात बंद करने से भी समस्या गहराई है।
दरअसल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमतें काफी बढ़ी हैं। बिजली संयंत्र भी कोयले का आयात इसीलिए बंद या बहुत कम कर रहे हैं क्योंकि इससे उनकी उत्पादन लागत काफी बढ़ रही है। यही कारण है कि घरेलू कोयले की कमी को देखते हुए सरकार सभी ताप संयंत्रों को घरेलू कोयले के साथ दस फीसद तक आयातित कोयला मिला कर इस्तेमाल करने के सुझाव के बाद भी इस समस्या का कोई स्थायी समाधान निकलता नहीं दिखता।
दरअसल बिजली वितरण में तकनीकी गड़बड़ियों के कारण काफी बिजली नष्ट हो जाती है। वितरण प्रणाली को दुरुस्त करके बेवजह नष्ट होने वाली इस बिजली को बचाया जा सकता है। इसके अलावा लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर चोरी की जाने वाली बिजली के मामले में भी सख्ती बरतते हुए निगरानी तंत्र विकसित करते हुए बिजली की चोरी पर अंकुश लगाना होगा। बिजली संकट से स्थायी राहत के लिए अब आवश्यकता इस बात की भी महसूस होने लगी है कि देश में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के बजाय प्रदूषण रहित सौर ऊर्जा परियोजनाओं, पनबिजली परियोजनाओं और परमाणु बिजली परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाए।
हालांकि इस वर्ष तक सौर ऊर्जा के जरिए सौ गीगावाट बिजली पैदा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल नहीं किए जा सकने के कारण भी बिजली की कमी का संकट बना है। सौर ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत फिलहाल चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी के बाद दुनियाभर में पांचवें स्थान पर है। बिजली के समय-समय पर गहराते संकट से देश को निजात तभी मिलेगी, जब सौर ऊर्जा परियोजनाओं के जरिए लक्ष्यों को समय से हासिल किया जाए। घरों पर सौर ऊर्जा पैनल लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाए, उन्हें आसान शर्तों पर कर्ज और सरकारी मदद दी जाए।