अस्थिरता की राजनीति

बिहार जैसे पिछड़े राज्य में सतत राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण कायम रहना अत्यंत दुखद है। हालांकि 1990 के बाद राज्य में क्षेत्रीय दलों की सरकारें रहीं, जिसमें लालू-राबड़ी शासन के बाद 2005 में भाजपा के सहयोग से नीतीश सत्तासीन हुए। मगर नीतीश सरकार की दूसरी पारी के ढाई साल बाद यह अस्थिरता का वातावरण कायम हो गया।

Update: 2022-08-10 05:48 GMT

Written by जनसत्ता: बिहार जैसे पिछड़े राज्य में सतत राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण कायम रहना अत्यंत दुखद है। हालांकि 1990 के बाद राज्य में क्षेत्रीय दलों की सरकारें रहीं, जिसमें लालू-राबड़ी शासन के बाद 2005 में भाजपा के सहयोग से नीतीश सत्तासीन हुए। मगर नीतीश सरकार की दूसरी पारी के ढाई साल बाद यह अस्थिरता का वातावरण कायम हो गया।

स्वाधीनता के बाद अधिकांश समय कांग्रेस की ही सरकार रही, लेकिन श्रीकृष्ण सिंह के बाद कोई सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। ऐसे में, नए घटनाक्रम के तहत अगर नया गठबंधन आकार लेता है या पुराना कायम रहता है, तब भी 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव में राज्य का मतदाता यह सवाल पूछेगा कि इस अस्थिरता का जिम्मेदार कौन है? नीतीश या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व, क्योंकि इसका नुकसान अंतत: बिहार की जनता को हुआ।

गौरतलब है कि ऊंची कूद में कांस्य पदक जीतने वाले तेईस वर्ष के तेजस्विन के प्रदर्शन को नजरअंदाज कर राष्ट्रमंडल खेलों में चयन नहीं किया गया था। वे दिल्ली हाई कोर्ट में पहुंचे और कोर्ट की वजह से ऐन वक्त पर खेलों में प्रवेश मिला और देश के लिए पदक जीत लिया। भारतीय खेल संघों में आज भी पक्षपात, भाई-भतीजावाद, स्वार्थी राजनीति और दबाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता।


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