अमेरिका में पीएम नरेंद्र मोदी: मोदी-बाइडन को मिलकर चीन को बनानी होगी रणनीति

भारतीय प्रधानमंत्री की बेहद महत्वपूर्ण मानी जाने वाली अमेरिकी यात्र शुरू हो गई है।

Update: 2021-09-24 04:04 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| तिलकराज । भारतीय प्रधानमंत्री की बेहद महत्वपूर्ण मानी जाने वाली अमेरिकी यात्र शुरू हो गई है। इस यात्र पर केवल भारत ही नहीं विश्व समुदाय की भी निगाह होगी, क्योंकि इस दौरान भारतीय प्रधानमंत्री न केवल आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के शासनाध्यक्षों से द्विपक्षीय मुलाकात करेंगे, बल्कि क्वाड सम्मेलन में भी भाग लेंगे। इसके अलावा वह संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे। इस अवसर पर वह दुनिया को उन चुनौतियों पर नए सिरे से ध्यान देने के लिए कह सकते हैं, जो गंभीर रूप लेती जा रही हैं।

यह तय है कि अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के अतिरिक्त अफगानिस्तान के बदले हालात भारतीय प्रधानमंत्री के एजेंडे में सबसे ऊपर होंगे। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वहां तालिबान जिस तरह काबिज हुआ उसने दुनिया के अन्य देशों के साथ भारत की भी चिंता बढ़ी दी है। यह चिंता और अधिक इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि एक तो तालिबान की कथनी और करनी में भारी अंतर दिख रहा है और दूसरे यह लग रहा है कि अफगानिस्तान नए सिरे से आतंकवाद का गढ़ बन जाएगा। वहां से जो संकेत मिल रहे हैं, वे इसलिए अच्छे नहीं, क्योंकि पाकिस्तान के प्रभाव वाला तालिबान न तो खुद को आतंकवाद से अलग करता दिख रहा है और न ही ड्रग्स के कारोबार से। बीते दिनों ही भारत में अफगानिस्तान से आई हेरोइन की जो बड़ी खेप पकड़ी गई, उसके पीछे तालिबान का भी हाथ माना जा रहा है और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ का भी।

यह जितना भारत के लिए आवश्यक है कि वह अफगानिस्तान से उभरते खतरों के प्रति अमेरिका को सावधान करे उतना ही अमेरिका के लिए भी यह जरूरी है कि वह इन खतरों से निपटने के लिए सजग हो। उसे यह आभास होना चाहिए कि अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं को बुलाकर उसने एक नया संकट खड़ा करने का काम किया है। भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच आपसी चर्चा में जो अन्य बहुपक्षीय मसले चर्चा के केंद्र में रहने चाहिए, वे हैं कोविड महामारी से उपजी चुनौतियां और चीन का अतिक्रमणकारी रवैया।

भारत और अमेरिका के लिए यह आवश्यक है कि वे चीन पर आर्थिक निर्भरता कम करने के अपने प्रयासों को साझा स्वरूप प्रदान करें। इससे ही विश्व समुदाय को दिशा दिखाने में मदद मिलेगी। चूंकि चीन के अतिक्रमणकारी रुख को अमेरिका भी देख-समझ रहा है इसलिए उसे उसके खिलाफ कुछ ठोस कदम उठाने के लिए तत्पर होना होगा। इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को वैसे ही तेवर दिखाने की जरूरत है जैसे उन्होंने सत्ता में आने के पहले दिखाए थे। इसी के साथ भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि चीन के खिलाफ आकस गठबंधन तैयार होने का प्रतिकूल असर क्वाड पर न पड़े।






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