पेट्रोल का दाम आसमान में, यूरिया खाद का स्टॉक पाताल में

बात नहीं करने से महंगाई कम नहीं होगी लेकिन बात करने से पता चलेगा कि महंगाई क्यों है

Update: 2021-10-30 09:52 GMT

बात नहीं करने से महंगाई कम नहीं होगी लेकिन बात करने से पता चलेगा कि महंगाई क्यों है. सितंबर 2019 में मोदी सरकार ने मात्र दो दिनों की कवायद में कॉरपोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से 22 प्रतिशत कर दिया. मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक इसके लिए प्रधानमंत्री ने आपात और अप्रत्याशित स्थिति में इस्तेमाल होने वाले रूल 12 का सहारा लिया, जिसके तहत पहले फैसला होता है, बाद में कैबिनेट की मंज़ूरी ली जाती है. तो उसी रूल 12 के इस्तेमाल से एक्साइज ड्यूटी में कटौती कर आम आदमी को राहत क्यों नहीं दी जा रही है. दो दिन में कॉरपोरेट को राहत मिल गई लेकिन आम जनता को दस महीनों में भी नहीं मिली. छह जुलाई 2019 को पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 19 रुपये 98 पैसा था, 2 फरवरी 2021 को 32 रुपये 90 पैसा हो गया. कहीं ऐसा तो नहीं कि कॉरपोरेट को मिली छूट के कारण आम जनता पेट्रोल के ज़रिए चुका रही है.


रही बात अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल के दामों की, तो यह भी देखना चाहिए कि अप्रैल 2019 में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 71 डॉलर प्रति बैरल थी तब हैदराबाद में पेट्रोल 77 रुपये 26 पैसे लीटर था, अप्रैल 2021 में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 63 डॉलर प्रति बैरल थी, तब हैदराबाद में पेट्रोल 94 रुपये 16 पैसे हो गया. अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में दाम घटने पर भी पेट्रोल 90 रुपये लीटर से अधिक बिका है. इस देश में 12 साल में ऐसा हुआ है जब कॉरपोरेट टैक्स का कलेक्शन इनकम टैक्स से कम हुआ है और उत्पाद शुल्क का कलेक्शन ऐतिहासिक रूप से कई लाख करोड़ का हो गया है. क्या डेढ़ लाख करोड़ की टैक्स छूट की कीमत आम जनता चुका रही है, मीडिया में कई विश्लेषणों में इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं.

इसी अगस्त में राज्य सभा में सरकार ने बताया है कि पेट्रोल डीज़ल पर उत्पाद शुल्क और अन्य उपकरों से 2014-15 से 2020-21 के बीच 14 लाख 40 हज़ार करोड़ का कलेक्शन हुआ है. सरकार के राजस्व में पेट्रोल डीज़ल और गैस से आने वाले टैक्स का हिस्सा 12.2 प्रतिशत हो गया है जो 2014-14 में मात्र 5.4 प्रतिशत हुआ करता था. परेशान कार वाले भी हैं क्योंकि वे मोटरसाइकिल पर आ गए हैं मगर मोटरसाइकिल वालों पर दोहरी मार पड़ी हैं, वे पैदल होने को आ गए हैं. 2014 में पेट्रोलियम मंत्रालय ने नेल्सन कंपनी से एक सर्वे कराया था. उसमें यह बात निकल कर आई कि पेट्रोल से जितना टैक्स आता है, उसका 61 प्रतिशत हिस्सा टू-व्हीलर वालों से आता है. कार वालों का हिस्सा मात्र 34 प्रतिशत होता है. यूपी के एक मंत्री उपेंद्र तिवारी ने कहा था कि 95 प्रतिशत जनता पेट्रोल का इस्तेमाल नहीं करती. इससे अधिक झूठ और क्रूर कुछ नहीं हो सकता. 2014 का यह सर्वे है उस समय दिल्ली में पेट्रोल 72 रुपये 43 पैसा हो गया था और जनता का गुस्सा उबल रहा था. लेकिन आज दिल्ली में 109 रुपये लीटर पेट्रोल है और जनता शांत है. दावे के साथ नहीं कह सकते कि वह ख़ुश भी है.

बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में जब चुनाव था तब दामों का बढ़ना रुक गया था. चुनाव ख़त्म, दाम बढ़ गया. तब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार कहां था, वो भी इलेक्शन में ड्यूटी कर रहा था? जल्दी ही चुनावी राज्यों में पेट्रोल के दाम कम होंगे, टैक्स घटाए जाएंगे और संपादक इसे राहत लिखेंगे. महीनों तक जेब से निकालते रहिए और जब अठन्नी-चवन्नी बच जाए तो छोड़ दीजिए और हेडलाइन लगाइये कि राहत मिली है, दाम घटे हैं.

35 पैसे बढ़ते-बढ़ते आज पेट्रोल 31 दिनों में 7 रुपया महंगा हो गया. 108 रुपये से लेकर 120 रुपये लीटर बिकने लगा है. 2014 के चुनावों में बीजेपी के पोस्टरों पर एक नारा लिखा होता था. बहुत हुआ जनता पर पेट्रोल डीज़ल की मार अबकी बार मोदी सरकार. सरकार बदल देने में पेट्रोल के दाम का भी रोल था लेकिन आज सरकार ही कह रही है कि कच्चे तेल का आयात बढ़ गया है, पेट्रोल डीज़ल का उपभोग बढ़ गया है. यही हाल खाद का है. 2 सितंबर को इंडियन एक्सप्रेस में हरीश दामोदरन ने विस्तार से रिपोर्ट लिखा है जिसमें बताया है कि 31 अगस्त तक खाद का स्टॉक काफी कम है जिसके कारण अक्तूबर और नवंबर में होने वाली रबी की बुवाई के समय भारी सकंट हो सकता है. साल दर साल खाद का आयात कम होने लगा है. 2019 के 31 अगस्त को भारत मे DAP का स्टॉक 62.48 लाख टन था, 2021 के 31 अगस्त को मात्र 21 लाख 59 हज़ार टन था. चालीस लाख टन की कमी का यह असर तो होना ही था. अगस्त में पता था सरकार को संकट आने वाला है लेकिन अक्तूबर बीतने पर आयात आयात कर रही है और सीधे जवाब देने के बजाए कह रही है कि प्रधानमंत्री ने सब्सिडी बढ़ा दी है.

क्या खाद सकंट की जिम्मेदार सरकार है? जब अगस्त में स्टॉक कम हुआ तब सरकार ने वॉर रूम क्यों नहीं बनाया.कई जगहों से किसानों के लाइन में ही मरने और आत्महत्या करने की खबरें आ चुकी हैं. एनडीटीवी संवाददाता अनुराग द्वारी ने 44 साल के किसान धनपाल यादव की खबर ट्विटर पर डाली तो उनका अकाउंट ही सस्पेंड कर दिया गया. 44 साल के धनपाल यादव ने आत्महत्या कर ली क्योंकि उन्हें खाद नहीं मिल रहा था. आज भी मध्य प्रदेश के पिपरोल गांव में एक किसान ने आत्महत्या कर ली है.

यूपी के ललितपुर इलाके में इस तनाव के कारण कई किसानों की मौत की खबर है. प्रियंका गांधी आज भोगी पाल और महेश कुमार बुनकर के परिजनों से मुलाकात की. इन दोनों के बारे में खबर है कि खाद की लाइन में लगे थे. कई दिनों तक लाइन में ही लगते रहे. जिसका असर स्वास्थ्य पर पड़ा और मौत हो गई. सोनी अहिरवार और बब्बू पाल ने भी खाद न मिलने के कारण आत्महत्या कर ली. कर्ज़ से लदे इन किसानों को खाद मिलने में एक दिन की देरी भयंकर तनाव में डाल रही है. सरकार खाद नहीं दे सकती कम से कम लोन में राहत ही दे दे.

आखिर जब पता था कि खाद का आयात कम है, स्टॉक कम है तो सरकार ने क्या किया. आप सारे बयान निकाल कर देखिए, केवल इसी पर ज़ोर है कि सब्सिडी बढ़ा दी गई. हेडलाइन के लिए. किसान खाद मांग रहा है, सब्सिडी बढ़ी तो खाद क्यों नहीं आया.

हरियाणा में भी खाद न मिलने से किसान परेशान हैं. पूरा का पूरा परिवार कई कई दिनों से लाइन में लगता है. बुवाई का सीज़न बीता जा रहा है और खाद का पता नहीं. बताया जा रहा है कि कोई वॉर रूम बन गया है, सुनने में अच्छा लगता है लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि जिस संकट के लिए वॉर रूम बना है उसकी नौबत आई किसकी वजह से.

हमारे सहयोगी सुनील रवीश को किसानों ने बताया कि दो-दो दिन आकर लाइन में लग रहे हैं और खाद नहीं मिल रहा है. थाने में किसानों को लाइन लगाकर खाद बांटा जा रहा है. पुलिस इन दिनों खाद बांट रही है. खाद के लिए लाइनों की तस्वीर बता रही है कि गोदी मीडिया का टेलीस्क्रीन आपको अलग देश दिखाता है और एक अलग देश है जो खाद के लिए लाइनों में हैं. देश के कई इलाकों में किसानों पर लाठी चली है. हरियाणा के महेंद्रगढ़ के अटेली में खाद लूटने के आरोप में कई किसानों पर मुकदमा हो गया है. एनडीटीवी संवाददाता अनुराग द्वारी ने बताया है कि मंगलवार को मध्यप्रदेश के बीना में किसानों ने रेल रोक दी. खाद न मिलने से किसान गुस्से में थे. मध्यप्रदेश की 3400 सहकारी समितियों में खाद नहीं है. राज्य को छह लाख टन यूरिया की जरुरत है लेकिन करीब पांच लाख टन यूरिया ही आवंटित हुआ है और उसमें से भी करीब 2 लाख 40 हज़ार टन ही दिया गया है. वही हाल DAP का है. इस संकट ने देश के ग्रामीण इलाकों में भूचाल पैदा कर दिया है.

किसानों की हालत से मध्यम वर्ग परेशान नहीं हैं, मध्यमवर्ग की हालत से कोई परेशान नहीं है. आर्थिक रूप से तबाह हो रहे लोग धार्मिक मुद्दों में स्वर्ग ढूंढ रहे हैं. आर्थिक रुप से असुरक्षित जनता को धार्मिक रूप से भी असुरक्षित कर दिया गया है. आर्थिक मुद्दों के लिए कोई संगठन नहीं है, धार्मिक मुद्दों के लिए तरह-तरह के संगठन तलवार लाठी लिए चले आ रहे हैं. कहीं मस्जिद पर हमला है तो कहीं नमाज न पढ़ने देने का जुलूस निकल रहा है. आख़िर आप कितनी नफ़रत करेंगे, क्या आपको इसकी परवाह है यह नफरत आपके ही बच्चों को दंगाई बनाने जा रही है. धर्म के मुद्दों की इस राजनीति को जनता ने अपने सर उठा लिया है, उसे ब्रेक की ज़रूरत है और आपको भी.
ndtv 


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