देशभक्ति की भावना

उन्हें भी बदलते समय के अनुसार अपने को ढालना चाहिए। राष्ट्र के प्रति अभिमान गर्व का विषय है, शर्म का नहीं।

Update: 2022-05-13 02:00 GMT

हर नागरिक को अपने राष्ट्र पर स्वाभाविक और उचित ही गर्व होता है। देशभक्ति की भावना उसे बचपन से ही अपने परिवेश, परिवार और पाठशाला से मिलनी शुरू हो जाती है। देश पर गर्व की अभिव्यक्ति वह विभिन्न अवसरों पर अपना राष्ट्रगान या राष्ट्रगीत गाकर करता है। हर देश में राष्ट्रगान गाने या बजाने को लेकर विधि-विधान है। विशेष मुद्रा में खड़े होकर उसे सम्मान देना होता है।

मगर विचित्र है कि हमारे देश में राष्ट्रगान गाने या उसके सम्मान में खड़े होने को लेकर समुदाय विशेष के लोग इसलिए हिचकते हैं कि उनके धर्मग्रंथ में ईश्वर से ऊपर किसी को नहीं माना गया है। यही वजह है कि मदरसों में राष्ट्रगान गाना और बजाना अनिवार्य नहीं किया गया। यह उनकी स्वेच्छा पर छोड़ दिया गया था कि वे चाहें तो गाएं या न गाएं।
मगर अब उत्तर प्रदेश सरकार ने हर मदरसे में रोज प्रार्थना के बाद राष्ट्रगान गाना अनिवार्य कर दिया है। स्कूलों में नया सत्र शुरू हो गया है और यह नियम तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है। यह आदेश सभी सरकारी अनुदान प्राप्त या गैर-अनुदान प्राप्त मदरसों पर लागू होगा। कयास लगाए जा रहे हैं कि यह आदेश बहुत सारे लोगों को नागवार गुजरेगा।
हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब राष्ट्रगान या राष्ट्रगीत गाने को लेकर कोई आदेश जारी किया गया है। कुछ साल पहले सिनेमाघरों में भी फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने का आदेश जारी किया गया था। मगर उसे लेकर बहुत सारे लोगों ने आपत्ति जताई। मामला अदालत में भी गया था, पर अदालत ने उस आदेश में कोई वैधानिक अड़चन नहीं नोट किया था।
इसी तरह राष्ट्रगीत यानी वंदे मातरम गाने को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय ने एतराज जताया था कि चूंकि उनके धर्मग्रंथ में ईश्वर के अलावा किसी और के सामने सिर न झुकाने की बात कही गई है, इसलिए उन्हें यह गीत गाने का दबाव न डाला जाए। मगर राष्ट्रगान यानी जन गण मन गाने में भला क्यों किसी को एतराज होना चाहिए। इस आदेश को राजनीतिक नजरिए से देखा भी नहीं जाना चाहिए। यह तो हर नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपना राष्ट्रगान गर्व के साथ गाए। जिस तरह दूसरे राष्ट्रीय प्रतीक हमारी पहचान बनते हैं, उसी तरह राष्ट्रगान भी पहचान है। इसे धर्म की राह में रोड़ा क्यों माना जाना चाहिए।
मगर इन दिनों जिस तरह हमारी राजनीति हर चीज को जाति, धर्म, समुदाय के पैमाने से नापती देखी जा रही है, उसमें विपक्षी दल इस फैसले को भी सियासी रंग दे दें, तो हैरानी नहीं। जो दल इसी तरह अपना जनाधार बनाने का प्रयास करते रहे हैं, उनके लिए यह एक आसान मुद्दा हो सकता है। मगर राष्ट्रगान को लेकर राजनीति होगी, तो यह देश की छवि के साथ मजाक ही कहा जाएगा।
रही बात मदरसों की, तो उन्हें इसमें हिचक क्यों होनी चाहिए। कहीं किसी भी देश में इस तरह राष्ट्रीय अस्मिता को धार्मिक पहचान से जोड़ कर नहीं देखा जाता। कोई धर्मग्रंथ यह नहीं कहता कि राष्ट्र पर गर्व करने से ईश्वर का अपमान होता है। पुरानी और जड़ हो चुकी मान्यताओं, अवधारणाओं को तोड़ना ही तो तरक्की की निशानी है। बहुत सारे अल्पसंख्यक बड़े गर्व से राष्ट्रगान गाते मिल जाएंगे। फिर मदरसों को इससे अलग क्यों रहना चाहिए। उन्हें भी बदलते समय के अनुसार अपने को ढालना चाहिए। राष्ट्र के प्रति अभिमान गर्व का विषय है, शर्म का नहीं।

सोर्स : jansatta news 

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