इसी दौर की परिवहन व्यवस्था की लाचारी समझनी होगी कि क्यों वार्षिक मेले अफरातफरी का शगुन बन जाते हैं। इसे हम सामान्य पर्यटन के साथ जोड़कर भी देखें, तो यह तथ्य स्पष्ट होता है कि न तो हमारी सड़कें अभी उस तरह विकसित हुई हैं कि सैलानियों के उत्साह में सुरक्षित व्यवस्था दे सकें और न ही पर्यटक स्थलों को जोड़ती परिवहन व्यवस्था को परिभाषित कर पाईं। नतीजतन सड़कों पर वाहनों की आवारगी या तो पुलिस का एक चालान भर भुगतान से माफ हो जाती है या ट्रैफिक जाम में फंसी हुई दिखाई देती है। अभी पर्यटक सीजन पूरी तरह शुरू भी नहीं हुआ है कि अनेक स्थानों पर ट्रैफिक जाम से हालात बिगड़ रहे हैं। बहरहाल हिमाचल में यातायात के दबाव और सैलानियों के सैलाब को समझते हुए ट्रैफिक प्रबंधन की दिशा में नए प्रयोग करने होंगे। यह तभी संभव होगा यदि असुरक्षित व असीमित परिवहन को व्यवस्थित किया जाए। राज्य के एंट्री प्वाइंट्स पर ट्रक, ट्रैक्टर या ऐसे किसी अनौपचारिक यात्री ढुलाई को तुरंत प्रभाव से रोकते हुए वैकल्पिक व्यवस्था मुहैया करानी होगी। यानी ऐसे वाहनों को प्रवेश द्वार पर ही रोक आगे का सफर सार्वजनिक परिवहन के माध्यम से सुनिश्चित करना होगा।
धार्मिक मेलों या रूटीन में धार्मिक स्थलों का ट्रैफिक प्लान बनाकर न केवल इनकी परिधि तक सीमित रहना होगा, बल्कि राज्य के प्रवेश द्वारों से ही पैट्रोलिंग का मुकम्मल इंतजाम करना होगा। पूरे प्रदेश के खाके में पर्यटक परिवहन के हर माध्यम पर नजर तथा भीड़ भरे सीजन से निजात दिलाने के लिए वैकल्पिक यातायात व्यवस्था तथा मुख्य शहरों से दस-पंद्रह किलोमीटर पहले बाहरी वाहनों का ठहराव करते हुए, आगे का सफर रज्जु मार्गों या स्काई बस जैसे विकल्पों से करना होगा। परिवहन सुरक्षा के इंतजामों में प्रदेश के सड़क मार्गों की स्थिति आज भी दबाव के अनुरूप नहीं है। पूरे प्रदेश में अब तो वोल्वो व डीलक्स बसों के कारण सड़कों की स्थिति हर पर्यटक स्थल के ढांचे की कमजोरी बन रही है, जबकि वाहन चालकों के लिए दिशा-निर्देश भी गुमसुम रहते हैं। बाहरी वाहन चालकों की ड्राइविंग स्किल का कोई परीक्षण न होना भी हादसों का एक बड़ा कारण बन जाता है। परिवहन दक्षता के पर्वतीय मानदंडों की हिफाजत में सारी यातायात प्रणाली को खंगालने की जरूरत है, खासतौर पर जब धार्मिक मेलों का उत्साह सड़कों पर पसर रहा हो या सैलानियों की तादाद से कहीं अधिक बाहरी वाहनों की संख्या बढ़ रही हो, तो कहीं मौजूदा परिपाटी के दोष भी घातक सिद्ध होते हैं। मैड़ी दुर्घटना ने सारे तामझाम की आंखों में धूल झोंकी है और यह सफर तब तक घातक बना रहेगा, जब तक माल ढुलाई वाहनों को यात्री ढोने की छूट मिलती रहेगी।