1918 की महामारी और भारत: ऑक्सीजन की कमी और देश को लेकर गांधी जी के विचार
कोविड से पीड़ित लोगों की मृत्यु ऑक्सीजन सिलेेडर ढूंढ़ते-ढूंढ़ते हो गई।
कुछ दिन पहले भारत सरकार के स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने संसद में जब बयान दिया कि ऑक्सीजन के अभाव से कोविड की दूसरी लहर में किसी की मृत्यु नहीं हुई थी, तो सारा देश चौंक गया क्योंकि यह सर्वविदित् है कि भारत के अनेक राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ऑक्सीजन की भीषण कमी थी और कोविड से पीड़ित लोगों की मृत्यु ऑक्सीजन सिलेेडर ढूंढ़ते-ढूंढ़ते हो गई।
उस संदर्भ में दो वाक्य- "जो व्यक्ति सांस लेने के लिए ऑक्सीजन सिलेेंडर के ऊपर निर्भर हो वह मृतप्राय है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत मृतप्राय स्थिति में है?" ऑक्सीजन की कमी गंभीर स्थिति को व्यक्त करती है। यह पढ़कर कोई भी सोचेगा कि किसी संवेदनशील व्यक्ति ने कोविड महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन और अस्पताल में बेड न मिलने के कारण लोगों की हुई मृत्यु और हाहाकार वाली परिस्थिति से व्यथित होकर ही लिखा होगा। लेकिन उपरोक्त दोनों वाक्य और किसी ने नहीं बल्कि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 6 जुलाई 1921 में 'यंग इंडिया' में लिखे थे। कुछ महीने के बाद 5 मार्च 1922 को नवजीवन में उन्होंने लिखा था, "भारत में पर्याप्त ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है इसीलिए श्वासरोध अनुभव करता है"|
गांधीजी के उन सभी मन्तव्यों का परिप्रेक्ष्य था इन्फ्लुएंजा महामारी जो 1918 और 1921 में आई थी जिसकी चार लहर थी। अमेरिका में शुरू होकर वह पूरे विश्व में फैली थी और उसकी दूसरी लहर हिंदुस्तान में एक करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत का कारण बनी। महात्मा गांधी ने 23 नवंबर 1918 में हरिलाल गांधी को एक पत्र में लिखा था-
"मुझे दुःख हुआ जब पता चला कि आपका परिवार इन्फ्लुएंजा से पीड़ित था और किसी सदस्य की मृत्यु भी हो गई है। ऐसी ही खबर चारो तरफ से बार-बार आ रही है और उससे मन मुश्किल से प्रभावित हो रहा है"।
तीन साल बाद 1921 में गांधी ने भारत के बहुत सारे प्रांतों का भ्रमण किया और देश को एक साल में आजादी प्राप्त करने हेतु गठित 'तिलक स्वराज फण्ड' के लिए लोगों का समर्थन मांगा एवम् उनसे अपील की कि फण्ड का लक्ष्य एक करोड़ रुपया जुटाना है जिसे हासिल करने में मदद करें।
उन्होंने भारत की आज़ादी और आत्मनिर्भरता का अर्थ लोगों को समझाने के लिए ऑक्सीजन को एक रूपक के तहत प्रयोग किया और कहा कि जैसे एक व्यक्ति ऑक्सीजन सिलेंडर के ऊपर निर्भर कर के आत्मनिर्भर नहीं हो सकता, उसी तरह भारत विदेशी वस्त्र और बाजार पर निर्भर करके आज़ाद नहीं हो पाएगा।
गांधी जी और मौजूदा समय
गांधीजी के उस चिंतन के सौ साल बाद मोदी शासन ने 'आत्मनिर्भर भारत' की बात कही और इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए बहुत सारे प्रयास जारी हैं, लेकिन जिस नेतृत्व ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात कही वह कोविड की भयंकर द्वितीय लहर में पीड़ित लोगों को ऑक्सीजन तक मुहैया नहीं करा पाया।
गांधी ने सौ साल पहले जिस तरह से पराधीन भारत में गहराते बहुत सारे संकटों को लोगों को समझाने के लिए ऑक्सीजन को एक रूपक की तरह प्रयोग किया, वह बात 2021 में भारत के लिए बहुत मायने रखती थी और आज भी गांधी की उस बात को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
चूंकि कोविड -19 रोगियों के परिवार ऑक्सीजन सिलेंडर तक पहुंचने के लिए दर-दर भटक रहे थे, लेकिन कुछ नेता समस्या की गंभीरता को छिपा रहे थे। अप्रैल माह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया था कि राज्य में ऑक्सीजन या अस्पताल में बिस्तरों की कोई कमी नहीं है।
उन्होंने कहा कि ऑक्सीजन की कमी की अफवाह फैलाने वाले असामाजिक तत्वों के खिलाफ पुलिस राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करेगी। इसका मतलब यह हुआ कि ऑक्सीजन की कमी की शिकायत करने वाले कोई भी व्यक्ति के खिलाफ दंडात्मक कानूनी करवाई की जाएगी।
फलस्वरूप, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश पुलिस ने शशांक यादव नाम के एक युवक के खिलाफ मुकदमा चलाने का फैसला किया क्योंकि उन्होंने अपने दादा के लिए ट्वीट करके लिखा था, "ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता है"। पुलिस ने उनके ट्वीट को भ्रामक बताया।
यादव की अभिव्यक्ति को जिस तरीक़े से दबाया गया, वह गांधी जी द्वारा 28 दिसंबर, 1921 के अहमदाबाद के कांग्रेस अधिवेशन में दिए गए भाषण की याद दिलाता है।
उन्होंने कहा था- विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता और संस्थाएं बनाने की स्वतंत्रता, मनुष्य के दो फेफड़ों की तरह हैं । इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा - जिस तरह से दोनों फेफड़ों के बिना मनुष्य को सांस लेना असंभव है, उसी तरह स्वधीनता की ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए मनुष्य के लिए यह दोनों स्वतंत्रता अत्यावश्यक है।
मोदी सरकार कोविड की भयंकर द्वितीय लहर में पीड़ित लोगों को ऑक्सीजन तक मुहैया नहीं करा पाई। - फोटो : सोशल मीडिया
उन्होंने विस्तार से कहा, "यदि कोई सत्ता इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संस्थाएं बनाने की स्वतन्त्रता को रोकना चाहती है, तो मै इस मंच से आपकी ओर से यह चेतावनी देना चाहता हूं कि वह सत्ता, यदि उसने ऐसा करना बंद नहीं किया तो भारत के आगे, जो उच्च साहस, महान उद्देश्य और संकल्प से इस्पात बन चुका है, नष्ट हो जाएगी, भले ही अपने को भारतीय कहने वाले सब नर-नारी इस पृथ्वी से मिट जाएं"।
नवंबर 1931 में लंदन में 'फेडरल स्ट्रक्चर कमेटी' की बैठक में भी गांधी ने ऑक्सीजन की बात की थी। जब ब्रिटिश अधिकारियों ने सुझाव दिया कि प्रमुख जिम्मेदारियों के बिना प्रांतीय स्वायत्तता दी जाएगी तो गांधी ने कहा था कि उस तरह का सुझाव एक चिकित्सक द्वारा मरे हुए व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीजन देने जैसा होगा।
उन्होंने यह भी कहा था कि उस परस्थिति में ऑक्सीजन प्रयोग करने से कोई फायदा नहीं होगा। गांधी ने आशंका जताई और कहा कि ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा लोगों का बहुत ज्यादा दमन किया जाएगा।
उन्होंने जोर देकर कहा-"दमन की मुझे परवाह नहीं है; उससे हमारा लाभ ही होगा। जो राष्ट्र निश्चित संकल्प के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा हो, दमन से उसका कभी कोई नुकसान नहीं हुआ है; क्योंकि वह दमन तो सचमुच नव-जीवन का संचार करने वाले ऑक्सीजन का काम करता है।"
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 की अपेक्षित तीसरी लहर से पहले भारत की ऑक्सीजन उपलब्धता की समीक्षा करने के लिए कुछ सप्ताह पहले एक बैठक की, तो उन्हें गांधी द्वारा 16 सितंबर, 1928 को नव-जीवन में लिखे गए उस लेख को पढ़ने का कष्ट करना चाहिए था। गांधी जी ने एक जैन फार्म में गाय-बैल की करुणामय तरीके से सेवा करने का वर्णन किया था। गांधी ने कहा कि करुणा समुद्र की तरह विशाल होनी चाहिए।"
जिस प्रकार जीवनदायनी ऑक्सीजन हर पल समुद्र की तरह सुगंध फैलाती है, वैसे ही करुणा की ऑक्सीजन मनुष्य और अन्य सभी जीवों को सुख, शांति और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करे," उन्होंने लिखा- भारत मे अभी जिस तरह से स्वतंत्रता के ऊपर हमला हो रहा है और हमारे देश को आंशिक मुक्त और निर्वाचित निरंकुशता बताया जा रहा है, इस परिस्थिति में देश को बचाने के लिए ऑक्सीजन के साथ-साथ "करुणा की ऑक्सीजन" की बहुत जरूरत है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।