महामारी हमारी जिंदगी के कई हिस्सों में हेरफेर करने के लिए है तैयार

इन दिनों दुनिया के कुछ हिस्सों जैसे दक्षिण कोरिया के सियोल में लड़के-लड़कियां चमकीले रंगों वाली पोलो टी-शर्ट्स के साथ ट्रैकसूट और ऊपर से हुडी पहनकर स्कूल जाते हुए दिख रहे हैं

Update: 2022-01-05 09:45 GMT

एन. रघुरामन । इन दिनों दुनिया के कुछ हिस्सों जैसे दक्षिण कोरिया के सियोल में लड़के-लड़कियां चमकीले रंगों वाली पोलो टी-शर्ट्स के साथ ट्रैकसूट और ऊपर से हुडी पहनकर स्कूल जाते हुए दिख रहे हैं। महामारी के बाद से ये उनकी नई यूनिफॉर्म है। लग रहा है कि स्कूल शिक्षकों ने भी इन आधुनिक यूनिफॉर्म को लेकर अपनी आंखें मूंद ली हैं या कम सख्त हैं, ताकि बच्चे स्कूल आकर कक्षाएं लेने के लिए प्रेरित हों।

संक्षेप में कहें तो ऐसा लगता है कि विकसित देशों में 'पॉप कल्चर में हाई-टीन फैशन' (हाई स्कूल जाने वाले किशोर) के दिन आ रहे हैं। यह उन स्कूलों-अभिभावकों के बीच विरोधाभास का नया नतीजा है, जिसमें ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बावजूद स्कूल खोलने पर अड़े हैं, जबकि माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजने में डर रहे हैं। अब बच्चे चाहते हैं कि यूनिफॉर्म परंपरागत के बजाय 'कंफी' (आरामदेह) हो। और फैशन डिजाइनर्स बच्चों की इच्छा पूर्ति करते हुए इन 'कंफी' यूनिफॉर्म डिज़ाइन से दुकानें भर रहे हैं।
ये दुनिया के कुछ समृद्ध शहरों में ज्यादा दिख रहा है। इससे लगता है कि महामारी ने ना सिर्फ स्वास्थ्य की दृष्टि से जीवन पर असर डाला है, बल्कि स्कूल यूनिफॉर्म जैसे पुराने चलन को भी प्रभावित किया। वो दिन गए जब लड़के कॉलर पर नीचे टांकी बटन वाली शर्ट के साथ ट्राउजर्स, और लड़कियां भी वैसी ही शर्ट के साथ प्लेट वाली स्कर्ट और ऊपर स्कूल के लोगो वाली ब्लेजर्स पहने जाते थे।
आज जब महामारी से वर्क फ्रॉम होम बढ़ गया है, तो लोगों ने आरामदायक कपड़े जैसे पजामा पहनकर काम शुरू कर दिया, जो लैपटॉप कैमरे से नहीं दिखता। अब लगता है कि बच्चों ने भी उसी की नकल कर ली है जो यूनिफॉर्म में भी आरामदेह डिजाइन चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि यूनिफॉर्म में दशकों से कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ था, ये भी चुस्त फिटिंग वाले लुक से ढीली-ढाली बैगी, फिर बॉक्सी फिट से ओ‌वर साइज तक हुईं।
कई स्कूलों ने लड़कियों को स्कर्ट्स के बजाय ट्राउजर्स पहनने दिए क्योंकि इसने उन्हें लैंगिक आधार पर भेद करने वाले पहनावे के अलावा आराम से चलने-फिरने की आजादी दी। हालांकि ये कंफर्ट का मुद्दा लंबे समय से बना है और कोविड ने जरूर इसकी इच्छी को हवा दी। इसलिए पिछले 18 महीनों से नीचे ट्रैक पैंट्स पहनकर ऑनलाइन क्लास कर रहे छात्र अब उसी तरह वापस लौटना चाहते हैं।
दिलचस्प रूप से कभी गली-मोहल्लों में पहने दिखने वाली स्वेटशर्ट और हुडीज़ सर्दियों में दिख रही है। लग रहा है छात्र गली-नुक्कड़ वाला लुक दिखाने पर आमादा हैं। चूंकि छात्र वो 'कंफी' ड्रेस पहनकर अपनी स्वच्छंदता व्यक्त करना चाहते हैं, दुकानों में बिकने वाली यूनिफॉर्म ने भी स्वेटशर्ट, फ्लीस जैकेट, पफर जैकेट और कई सारे कपड़ों से बनी वर्सिटी जैकेट का आकार ले लिया है।
मुझे याद है उन दिनों मेरे पीटी टीचर न सिर्फ बालों की लंबाई पर करीब से नजर रखते थे, बल्कि इस हद तक देखते थे कि लड़कों के पैंट की मोहरी 6.5 इंच से ज्यादा न हो। उससे ज्यादा होने पर सजा मिलती और मोहरी कम करने के लिए कड़ी चेतावनी वाला पत्र अभिभावकों को भेज जाता।
उन दिनों अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, नवीन निश्चल जैसे कई अभिनेताओं ने लंंबे बालों के साथ 'बैल बॉटम' को हवा दी, जिसने हम जैसे स्कूल जाने वाले लड़कों को रिझाया। पर जब यूनिफॉर्म डिजाइन की बात आई तो स्कूल पीछे नहीं हटे। अब लगता है कि महामारी ने स्कूलों को सख्ती कम करने के लिए मजबूर कर दिया है।
फंडा यह है कि महामारी हमारी जिंदगी के कई हिस्सों में हेरफेर करने के लिए तैयार है और लगता है कि हाई स्कूल किशोरों की यूनिफॉर्म सिर्फ शुरुआत है।

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