अपना अपना लोकतंत्र

पिछले सप्ताह खूब तारीफ सुनी हमने नरेंद्र मोदी की। उनके शासनकाल के आठ साल पूरे होने के जश्न में रेडियो, टीवी और अन्य मीडिया पर सरकारी इश्तिहारों ने उनके गुण गिनाए।

Update: 2022-06-05 05:31 GMT

तवलीन सिंह; पिछले सप्ताह खूब तारीफ सुनी हमने नरेंद्र मोदी की। उनके शासनकाल के आठ साल पूरे होने के जश्न में रेडियो, टीवी और अन्य मीडिया पर सरकारी इश्तिहारों ने उनके गुण गिनाए। मोदी के आने से इंटरनेट की तारें बिछ गई हैं गांव-गांव। मोदी के आने से शौचालय बन गए हैं। मोदी के आने से बैंक खाते खुल गए हैं गरीबों के। मोदी के आने से देश बदल गया है। आदि, आदि। लेकिन इस प्रशंसा से भी ज्यादा लाभ मोदी को पहुंचाया भारत के पूर्व युवराज राहुल गांधी ने एक भाषण देकर।

राहुलजी विदेशी दौरे पर थे और इस बार चोरी-चुपके नहीं। लंदन में 'आइडियाज फार इंडिया' (भारत के लिए विचार) नामक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे, जहां उन्होंने कहा कि भारत में अब लोकतंत्र नहीं है। अपनी बात विस्तार से कहते हुए उन्होंने आगे कहा कि अब खतरा सिर्फ आरएसएस से नहीं है, अब ऐसा माहौल बन गया है भारत में कि भारत सरकार की जांच संस्थाओं का राजनीतिकरण हो गया है। स्पष्ट किया उन्होंने कि ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और सीबीआइ (केंद्रीय जांच ब्यूरो) का दुरुपयोग हो रहा है और लोकतंत्र को बचाने के लिए अब हर विपक्षी दल को इकट्ठा होकर जन आंदोलन की तैयारी करनी होगी।

इस भाषण को जिसने भी सुना, शायद तय कर लिया होगा कि मोदी को फिर से वोट देने की जरूरत है। लोकतंत्र की क्या इतनी भी समझ नहीं है राहुल गांधी को, कि उसकी बुनियाद है चुनाव जीतना? मोदी एक बार नहीं, दो बार चुनाव जीत कर प्रधानमंत्री बने हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे राहुल की माताजी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी दो बार चुनाव जीत कर आई थी। उस समय तो किसी ने यह आरोप नहीं लगाया कि भारत में लोकतंत्र को खतरा है।

रही बात ईडी और सीबीआइ के दुरुपयोग की, तो राहुलजी शायद भूल गए हैं कि ऐसा अगर आज हो रहा है, तो इसलिए कि इन संस्थाओं को आदत पड़ी थी राजनीतिक दखल की कांग्रेस पार्टी के लंबे शासनकाल में। सीबीआइ को उन दिनों पिंजड़े का तोता कहा जाता था और ईडी का शिकंजा अक्सर कसता था उन पर, जिन्होंने गांधी परिवार के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत की थी।

अगले हफ्ते अगर सोनिया गांधी को ईडी के सामने पेश होना पड़ रहा है, तो इससे दिखता है कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि बड़े से बड़े लोग भी कानून से ऊपर नहीं हैं। नेशनल हेरल्ड वाले मामले में पेश हो रही हैं सोनियाजी, इसलिए कि कांग्रेस पार्टी के इस अखबार पर कब्जा किया था गांधी परिवार ने एक नई कंपनी बना कर, जिसके निदेशक सब उनके दोस्त और करीबी थे। सवाल अगर पूछे जा रहे हैं तो हर्ज क्या है? अगर इस परिवार ने कुछ गलत नहीं किया है, तो निर्दोष पाए जाएंगे। हमको बल्कि खुश होना चाहिए कि देश के इस शाही परिवार को कठघरे में खड़ा करने की हिम्मत दिखा रही है भारत सरकार।

हमको वे दिन याद हैं, जब इस परिवार से कोई भी सवाल नहीं कर सकता था। सोनिया गांधी जब मलिका-ए-हिंदुस्तान थीं तो उन्होंने तय किया कि उनकी बेटी को दिल्ली में सरकारी कोठी दी जाएगी, बावजूद इसके कि प्रियंका गांधी उस समय राजनीति में नहीं थीं। सोनिया ने तय यह भी किया था कि उनके दामाद, राबर्ट वाड्रा, का नाम उस वीआइपी श्रेणी में दर्ज किया जाए, जिसके होने से एअरपोर्ट पर उनकी मेटल डिटेक्टर में से जाने की जरूरत न हो। सोनियाजी जब खुद सफर किया करती थीं तो उनकी गाड़ी हवाई जहाज तक जाया करती थी, बिल्कुल वैसे जैसे पुराने जमाने में राजा-महाराजा किया करते थे। क्या ऐसा करना आलोकतांत्रिक नहीं था?

सोनिया गांधी के दौर में लोकतंत्र इतना कमजोर कर दिया गया था कि उनकी मर्जी से प्रधानमंत्री बनते थे, जनादेश पाकर नहीं। क्या ऐसा करना आलोकतांत्रिक नहीं था? जब अपने प्रिय डाक्टर मनमोहन सिंह ने देश के प्रधानमंत्री होते हुए कहा था कि राहुल गांधी जब भी उनकी जगह लेना चाहते हैं, ले सकते हैं, तो क्या वह आलोकतंत्रिक नहीं था?

स्पष्ट शब्दों में कहना चाहती हूं कि लोकतंत्र को इतना कमजोर किया था सोनिया गांधी ने कि लोकसभा में तकरीबन हर दूसरा सांसद सिर्फ इसलिए लोकतंत्र के इस मंदिर में पहुंचा था, क्योंकि उनकी मम्मीजी या डैडीजी ने अपने चुनाव क्षेत्र को उनको विरासत में दिया था, जैसे उनकी निजी जायदाद हो। इसलिए जब मोदी परिवारवाद को गलत कहते हैं, जनता उनकी बात से सहमति जताती है और तय करती है कि मोदी जो भी हो, कम से कम प्रधानमंत्री अपने बल पर बने हैं।

मोदी के शासनकाल में गलतियां हुई हैं कई सारीं। नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था की ऐसी कमर तोड़ी थी कि कोरोना से पहले ही आर्थिक हाल कमजोर हो गया था देश का। कोरोना के दौर में भी कई गलतियां हुई थीं, जिनके कारण पिछले साल बेमौत मरे थे कई हजार लोग। मोदी अभी तक देश की राजनीतिक सभ्यता बदल नहीं पाए हैं, सो आज भी भाई-भतीजावाद चल रहा है, बिल्कुल वैसे जैसे पहले था। और अब अशांति का माहौल बन रहा है देश भर में, क्योंकि मुसलमानों को लगने लगा है कि उनका नामो-निशान मिटाने का प्रयास हो रहा है, और उनको हिंदुओं से कम अधिकार मिलने वाले हैं मोदी के 'न्यू इंडिया' में।

इन सारी गलतियों के बावजूद अभी तक मोदी के हारने की कोई संभावना नहीं दिखती है, क्योंकि उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं एक ऐसे व्यक्ति जो लोकतंत्र को समझे नहीं हैं। जब तक राहुल गांधी रहेंगे मोदी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी उनको अपनी कुर्सी खोने की कोई चिंता नहीं होनी चाहिए। बल्कि जब भी मुंह खोलते हैं भारत के पूर्व युवराज, मोदी की लोकप्रियता थोड़ी और बढ़ जाती है।


Tags:    

Similar News

-->