ऑनलाइन गेम: जब खेल ही मनोरोगी बना दे
कोरोना युग आरंभ होने के साथ बच्चों का जहां घर से निकलना न्यूनतम हो गया
कोरोना युग आरंभ होने के साथ बच्चों का जहां घर से निकलना न्यूनतम हो गया, वहीं ऑनलाइन पढ़ाई के साथ ऑनलाइन गेम का चलन भरपूर उठान पर है। मोबाइल, लैपटॉप हर बच्चे की आवश्यकता बन गई है। आज बच्चों से लेकर नवयुवक तक ऑनलाइन गेम की लत के शिकार हो रहे हैं। इसे हमारे समाज में आई संचार क्रांति के तमाम सकारात्मक प्रभावों के बीच एक नकारात्मक परिणाम के रूप में रेखांकित किया जा सकता है।
आज आभासी दुनिया में ऐसे तमाम सॉफ्टवेयर और ऐप उपलब्ध हैं, जिनमें अपनी सोच, रुचियों और अभिवृत्ति वाले लोग एक मैत्री समूह बनाकर परस्पर संवाद करते हैं। एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। संभव है कि बहुत सारे ऐसे लोग आभासी दुनिया की ओट में बच्चों से रूबरू होते हैं, जिन्हें वे नहीं जानते हैं। पर्याप्त निगरानी न कर पाने के चलते माता-पिता इससे अनभिज्ञ होते हैं। इसका कारण उस सॉफ्टवेयर और ऑनलाइन गेम पर आज की पीढ़ी के टेक्नो फ्रेंडली बच्चों की ज्यादा निर्भरता है।
अक्सर अभिभावकों के पास यह देखने का समय नहीं होता कि बच्चे गैजेट्स पर क्या कर रहे हैं या वे यह देखकर ही संतोष कर लेते हैं कि चलो, कम से कम बच्चा आंखों के सामने है और कुछ कर रहा है। लेकिन प्रश्न यहीं से शुरू होता है कि वह क्रियाकलाप उसके मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव डाल रहा है। कई बार यह प्रभाव इतना गहरा होता है, कि जब तक हम समझते हैं, बात हाथ से निकल चुकी होती है। कई बार ऑनलाइन गेम की लत के चलते बच्चों के दिलो-दिमाग पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ता है कि हमें लगता है कि वे दिनोंदिन आक्रमक होते जा रहे हैं। यहां तक कि वे कई बार दूसरों पर घात और आत्मघात जैसा जघन्य कृत्य कर बैठते हैं। कई बार बच्चे कर्ज लेकर गेम खेलते हैं और कर्ज की राशि ज्यादा होने पर किसी को बताने की स्थिति में नहीं होते। नतीजतन वे कई बार अपराध की राह पर कदम बढ़ा देते हैं।
खेलों का उद्देश्य मानसिक विकास और स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ होता है, लेकिन जब खेल ही बच्चों को मनोरोगी बनाने लगे और एक भीषण असंतुलन का कारक बनने लगे, तो यह निस्संदेह खतरे की घंटी है। सच तो यह है कि ऑनलाइन गेम की लत कई बार ड्रग्स की लत से भी खतरनाक होती है। दिन भर आभासी (वर्चुअल) दुनिया में रहना खेलने वाले को वास्तविक दुनिया से दूर करता है। गन, फायरिंग इत्यादि जहां बच्चों को हिंसक बनाती है, वहीं अवार्ड, पैसे इत्यादि जीतने की लत कई बार उनसे जघन्य अपराध करा देती है। बच्चों का चिड़चिड़ापन, बात- बात में नाराजगी उनके व्यवहार में आए कुछ ऐसे प्रत्यक्ष परिणाम हैं, जो आजकल के ज्यादातर बच्चों में नजर आएंगे। एक तरह से आज की पीढ़ी के बच्चे पहले की अपेक्षा समाज से बहुत दूर हैं।
यहां पर माता-पिता और अभिभावकों की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाती है। उन्हें डांटने और कड़ाई से पेश आने के बजाय समय रहते उनके साथ मनोवैज्ञानिक तरीके से पेश आने की आवश्यकता है। यदि कुछ गेम माता-पिता और शिक्षकों के सान्निध्य में खेले जाएं, तो बच्चों में कौशल विकास को बढ़ावा मिल सकता है। कई ऑनलाइन गेम खेलने वाले की कल्पनाशीलता को बढ़ावा देते हैं, जिससे वे अपने लक्ष्यों के प्रति अधिक नवोन्मेषी हो सकते हैं।
मल्टी टास्किंग और मल्टी प्लेयर गेम बच्चों में रणनीतिक सूझ-बूझ, विश्लेषण तथा निर्णय की क्षमता को विकसित करते हैं, तो मल्टी प्लेयर गेम बच्चों में टीम भावना को भी जगाने का कार्य करते हैं। वर्चुअल गेम खेलते वक्त यदि बच्चे नए लोगों से जुड़ते हैं और उनकी संस्कृति से परिचित होते हैं, तो यह अच्छी बात है, लेकिन इसकी जानकारी माता-पिता को होनी चाहिए। तब वे साइबर बुलिंग का शिकार होने से भी बच जाएंगे।
आभासी दुनिया खुद को अभिव्यक्त करने का अच्छा माध्यम है, किंतु उसके नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं, उन प्रभावों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। उन्हें दृष्टिगत रखकर माता-पिता को एहतियात के साथ बच्चों को अपने निर्देशन में इनका प्रयोग करवाना ही समुचित होगा।
SHRUTI MISHRA