त्यौहारी सीजन में प्याज और आलू

बिहार में चुनावी घमासान चल रहा है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी उपचुनाव के लिए जोर-शोर से प्रचार युद्ध चल रहा है।

Update: 2020-10-26 09:23 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिहार में चुनावी घमासान चल रहा है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी उपचुनाव के लिए जोर-शोर से प्रचार युद्ध चल रहा है। इसी बीच नवरात्र में प्याज के दाम तो 80 रुपए से ऊपर पहुंच गए। नवरात्र में आलू की कीमतें हमेशा ही बढ़ती हैं लेकिन इस बार प्याज, टमाटर के अलावा हर सब्जी महंगी हुई है। कभी प्याज हमारे आंसू निकालता है तो कभी टमाटर इतना लाल हो जाता है कि टमाटर नहीं आग का गोला लगने लगता है। कभी आलू सड़कों पर बिखेरा जाता है तो कभी उसकी कमी नजर आती है। इसका अर्थ यही है कि हम कोई ऐसी व्यवस्था को सृजित नहीं कर सके कि हमें इस उतार-चढ़ाव का सामना न करना पड़े।

महाराष्ट्र की नासिक मंडी में प्याज 7 हजार से 8 हजार प्रति क्विंटल बिक रहा है, यही कारण है कि कई राज्यों में प्याज के दाम सौ रुपए किलो पहुंच गए। प्याज के भाव बढ़ने की बड़ी वजह है बारिश से प्याज का नुक्सान होना है। किसानों का कहना है कि बारिश के कारण नर्सरी का रोप खराब हो गया इसलिए प्याज की नई फसल नहीं लगा पाए। वहीं जो प्याज उनके पास रखा हुआ था, वह भी बारिश की भेंट चढ़ गया। प्याज के रखरखाव की पर्याप्त व्यवस्था के बावजूद बरसात से बचाव के लिए बनाए गए शेड फेल हाे गए और प्याज को पानी लग गया। आखिरकार गला हुआ प्याज मजबूरी में फैंकना पड़ा। महाराष्ट्र में उस समय भारी बारिश हुई जब प्याज उत्पादक जिलों में किसान प्याज की पछेती खरीफ की नर्सरी की बुवाई और अगेती खरीफ प्याज खेत से ​निकाल रहे थे। इससे किसानों को बड़ा नुक्सान हुआ। केन्द्र सरकार ने बढ़ते प्याज के दामों को देखते हुए 14 अक्तूबर को प्याज निर्यात पर प्रतिबंध लगा ​दिया। इससे कुछ राहत की उम्मीद की जा रही थी लेकिन इसके बाद महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भारी बारिश हुई, जिसने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। केन्द्र सरकार ने स्थिति को देखते हुए 15 दिसम्बर तक प्याज के आयात काे सुलभ बनाने के लिए कुछ शर्तों में ढील दी। इससे अन्य देशों से प्याज आयात करने में व्यापारियों को सुगमता होगी। केन्द्र ने प्याज के स्टॉक की सीमा भी तय कर दी है। थोक व्यापारी 25 मीट्रिक टन और खुदरा व्यापारी दो मीट्रिक टन प्याज रख सकेंगे। यद्यपि प्याज, आलू और टमाटर के दाम बिहार या अन्य राज्यों के उपचुनाव में पहले की तरह चुनावी गणित पर कोई अधिक प्रभाव नहीं डाल रहे, लेकिन कोरोना महामारी से पहले ही आर्थिक रूप से परेशान आम आदमी को काफी दर्द दे रहे हैं।

प्याज की पालिटिक्स काफी खतरनाक रही है। अतीत में उसने देश की सियासत को कई बार बदला है। दीपावली के आसपास 1998 में प्याज की महंगाई सरकारों को रुला चुकी है। मामला महाराष्ट्र का है जब महंगी प्याज से शौकीनों की दीवाली काली होने के आसार दिखने लगे थे तो कांग्रेस नेताओं ने महाराष्ट्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी को प्याज का ​डिब्बा भेजा और लिखा दीवाली में लोग काफी चीजें तोहफे में देते हैं, इस बार प्याज बहुत कीमती है। तब मनोहर जोशी ने सियासी संदेश समझने में देरी नहीं की और राशन की दुकानों पर 15 रुपए किलो की कीमत पर प्याज बिकवाया था। 1998 में ही दिल्ली में प्याज 50 रुपए प्रति किलो बिका तो उसका खामियाजा चुनाव से 40 ​दिन पहले मुख्यमंत्री बनीं श्रीमती सुषमा स्वराज को भुगतना पड़ा था और भाजपा चुनाव हार गई थी। 1980 के चुनाव में कांग्रेस (आई) को भारी बहुमत मिला। प्रचार के दौरान इंदिरा गांधी ने अखबारों में इस्तेहार दिया था कि प्याज की महंगाई के पीछे उनके सियासी विरोधी हैं। इंदिरा जी के जीतते ही प्याज के दाम अपने आप धड़ाम से नीचे आ गिरे जो चुनाव से पहले 6 रुपए प्रति किलो महंगी हो गई थी। जब भी सब्जियां महंगी हुईं, कई सांसद महोदय स​ब्जियों की माला पहन कर संसद भवन में पहुंचते रहे।

अक्सर देखा जाता है कि कोरोना काल हो या कोई और संकट। शादियां हों या कोई समारोह, उसे यू​नीक बनाने के लिए लोग नए-नए आइडियाज पर काम करते हैं। तमिलनाडु के तिरुवल्लूर की एक शादी काफी सुर्खियां बटोर रही है। एक जोड़े की शादी की रिसैप्शन में दोस्तों ने तीन किलो प्याज उपहार स्वरूप दिया। तमिलनाडु और केरल में तो प्याज 125 रुपए किलो बिका।

प्याज, टमाटर और आलू की कीमतें भले ही कुछ लोगों के ​लिए व्यंग्य का विषय हो सकता है लेकिन आम आदमी इससे बहुत प्रभावित हो रहा है। दाल और खाने के तेल के दाम तो पहले ही काफी बढ़ चुके हैं। इससे गरीब की रसोई का बजट बिगड़ गया है। खपत के मुताबिक आलू के उत्पादन में बढ़ौतरी बहुत कम है। इसलिए खरीफ का आलू आने के बाद भी अधिक राहत की उम्मीद करना अर्थहीन है। अब विदेशों से प्याज आना शुरू हो गया है। तुर्की से भी प्याज आ चुका है। उम्मीद है कि कुछ दिनों में प्याज के दाम नियंत्रित हो जाएंगे। ऐसा नहीं है कि अफसरशाहों को इस बात का अंदाजा नहीं होता। ऐसी व्यवस्था की जरूरत है कि आलू, प्याज की कमी को देखते हुए अपने भंडारों के दरवाजे खोल दें और फसल बाजार में आ जाए। अगर आयात करना ही है तो वह त्यौहारी सीजन से पहले ही कर लिया जाना चाहिए ताकि गरीब की थाली में कम से कम आलू, प्याज तो होना ही चाहिए।

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