यशपाल बिल्कुल शाकाहारी थे, जिंदगी में कभी शराब का सेवन नहीं किया। विदेश में जब हम लोग जाते हैं, तो हमें ज्यादातर मांसाहारी भोजन मिलता है, लेकिन यशपाल शर्मा के पास गरम-गरम मसालेदार शाकाहारी खाना कहीं न कहीं से पहुंच ही जाता था। वह अपनी पूरी सोच क्रिकेट में लगाए रखते थे। आज सब कहते हैं, रवींद्र जडेजा जब हाथ में बॉल पकड़ते हैं, तो सीधे विकेट पर मारते हैं, लेकिन हमारे समय में यही काम यशपाल शर्मा लगातार करते थे। सेमीफाइनल में जब इंग्लैंड के दो विकेट पर 92 रन थे, तब एलन लैंब को उन्होंने दूर से ही सीधे गेंद फेंककर रन आउट किया था। उस विकेट के बाद मोहिंदर अमरनाथ ने दो विकेट लिए और इयान बॉथम को मैंने बोल्ड कर दिया, प्रतिद्वंद्वी टीम सिमट गई। मतलब, उस रनआउट ने मैच का रुख बदल दिया था।
उनके स्वभाव की बात करें, तो कई बार यह समझ में नहीं आता था कि वह मजाक कर रहे हैं या गंभीर हैं। हम विदेश में थे, वहां कौआ दिख गया, तो उन्होंने कहा, यहां भी कौए काले हैं? अचानक वहां छोटे-छोटे बच्चे आ गए, तो कहा- देखो, यहां छोटे-छोटे बच्चे भी अंग्रेजी में बात करते हैं? यशपाल के बात करने का तरीका ही अलग था, सुखद आश्चर्य में डाल देते थे। आज उनकी कई ऐसी बातें मन में उमड़ रही हैं। बहुत मजबूत बल्लेबाज थे, टिककर खेलते थे। नॉर्थ जोन के लिए जब हम साथ खेलने लगे, तब वह हमें बताते थे कि स्ट्रोक्स तो मैं कभी भी खेल सकता हूं, लेकिन जैसा मुझे कहा जाता है, मैं वैसा खेलता हूं। वह टीम के बहुत अनुशासित खिलाड़ी थे। आज के युवा क्रिकेटरों को उनसे सीखना चाहिए। जब भी टेस्ट क्रिकेट खेलते हैं, तो किस प्रकार से अपना विकेट बचाना है। जब विकेट पर टिकना सीखेंगे, तभी लंबी पारियां खेल सकते हैं। जब कभी टीम को आक्रामक बल्लेबाजी की जरूरत हो, तब वह बखूबी खेलते थे। इंग्लैंड के खिलाफ गुंडप्पा विश्वनाथ के साथ 316 रन की उनकी साझेदारी को कौन भूल सकता है!
मैं उनके परिवार से मिलने गया था। जिस दिन वह दुनिया से विदा हुए, उस दिन दिल्ली में बहुत दिनों बाद बारिश हुई थी, उन्होंने कहा कि आज मैं टहलने नहीं जाऊंगा। घर पर ही रुकूंगा। इतना बोलने के बाद एक-दो मिनट ही बीते होंगे, उन्होंने एक लंबी सांस ली और दुनिया को अलविदा कह दिया। क्रिकेट की भाषा में हम बात करें, तो कहा जा सकता है कि कोई बल्लेबाज हवा में गेंद खेलता है, तो कुछ देर गेंद हवा में रहती है और चांस होता है कि कैच ड्रॉप हो जाए, क्षेत्ररक्षक लड़खड़ा जाए और बल्लेबाज को मौका मिल जाए। रनआउट की स्थिति होती है, तो कोई एक छोर से दूसरी छोर पर भागता है और क्षेत्ररक्षक विकेट पर गेंद फेंकता है, तो चांस की बात है, गेंद विकेट पर लगे, न लगे। मौका होता है बचने का, लेकिन यशपाल शर्मा ने जिंदगी में कभी दूसरा मौका नहीं देखा। पहले मौके पर ही काम किया और जिंदगी से जाते हुए भी उन्होंने किसी को मौका नहीं दिया। सीधे चल दिए। अगर कुछ वक्त मिलता, तो शायद उन्हें बचा सकने की गुंजाइश होती। हमारा एक नगीना, परिवार का हिस्सा छिन गया।
हम 1983 क्रिकेट विश्व कप विजेताओं का एक वाट्सएप ग्रुप है, सब खूब बातें करते हैं, हंसी-मजाक करते हैं, लेकिन जब मैंने वाट्सएप पर यशपाल शर्मा के बारे में संदेश डाला, तो किसी को विश्वास नहीं हुआ कि टीम का सबसे चुस्त-दुरुस्त सदस्य ऐसे चला जाएगा। वह हमारी टीम के मध्य क्रम की रीढ़ थे। उस शाम मैं उनके घर गया। शाम को हमारे कप्तान रहे कपिल देव भी काम छोड़कर मुंबई से भागे-भागे आए थे और यशपाल शर्मा के परिवार को विश्वास दिला रहे थे कि 1983 की वह पूरी टीम आज भी उनके साथ है। सन 1983 की टीम के सभी सदस्य अभी 25 जून को ही एक किताब के लोकार्पण पर जुटे थे। सब स्वस्थ थे, खुद यशपाल एकदम फिट। 24-25 जून को हम साथ रहे। नाश्ता, खाना हमने साथ-साथ किया था। वहां यशपाल शर्मा ने कहा था- कीर्ति, बडे़ फिट लग रहे हो, ऐसे ही रहो। वजन कम किया है, तो अब बढ़ने मत देना। अब खुद फिट रहने वाला फिटनेस का बड़ा पैरोकार चला गया है, विश्वास नहीं होता। फिल्म आने वाली है 1983 की विजय पर। उसके बारे में यशपाल शर्मा ने कहा था, हम फिल्म साथ देखेंगे, मजा आएगा। वह अक्सर हमारी टीम के बारे में कहते थे, जैसे आटा-पानी गूंद दिया जाता है, वैसे ही हम हैं। हम कभी अलग नहीं हो सकते। तय हुआ था, तय है, 15 अगस्त को हमारी टीम फिर मिलेगी, लेकिन वहां यशपाल नहीं होंगे।