काशी की अन्नपूर्णा देवी के बहाने: एक अविरल बहती विशाल सरिता है भारतीय परंपरा

काशी की अन्नपूर्णा देवी के बहाने

Update: 2021-11-16 13:45 GMT
इस्लाम में एक ईश्वर, एक पैगम्बर और एक धर्म ग्रंथ है। जबकि हिन्दुओं के पास एक ऐसा धर्म है जिसका कोई एक पैगम्बर नहीं। कोई संस्थापक नहीं। कोई एक देवता नहीं। कोई एक धार्मिक किताब नहीं। उनका कोई जड़ सिद्धान्त नहीं है। हिंदुओं के अनुसार सृष्टि और सृष्टा अलग नहीं। दोनों एक हैं। यानी घड़ा और कुम्हार दो अलग चीज नहीं। दोनों एक हैं। आत्मा और परमात्मा दो अलग चीजें नहीं हैं दोनों एक हैं। इसलिए हिन्दू जिसकी चाहे उसकी पूजा कर सकता है। वो चाहे पत्थर हो, पेड़ हो, पक्षी हो या पहाड़। सांप हो, चूहा हो आग हो या पानी। ऐसे में वेदों के हवाले से कहा जाने लगा कि हिंदुओं में 33 करोड़ देवी देवता हैं। एक ईश्वरवादियों ने इसका खूब मजाक भी उड़ाया।
दरअसल, वेदों ने 33 कोटि के देवी देवताओं का जिक्र किया। संस्कृति में कोटि के दो अर्थ हैं करोड़ और प्रकार। तो वेदों ने अपने देवी देवताओं को 33 श्रेणियों में बांटा। इन श्रेणियों में करोडों नहीं तो हजारों पौराणिक देवी देवता तो आपको जरूर मिल जाएंगे।लेकिन ध्यान रहे हिन्दुओं ने शुरू से और हमेशा से एक ईश्वर को एक माना। बल्कि आप दावे से कह सकते हैं कि हिंदू एकमात्र ऐसा धर्म है जिसने सबसे पहले एक-ईश्वर के फलसफे की कल्पना की। क्योंकि हिन्दुओं की मान्यता है ईश्वर या वो मूल तत्व कण-कण में है इसलिए उस तक पहुंचने के लिए उसने अपनी सुविधा के अनुसार देवी देवताओं की कल्पना कर ली।
दरअसल हिंदुओं के पौराणिक देवी-देवता मनुष्य की एक विशेष मनोदशा के प्रतीक हैं। ये भले कभी वास्तव में न रहे हों लेकिन इनका मनोवैज्ञानिक अस्तिस्व हमेशा रहा। प्रकृति से जुड़ी हर शक्ति जैसे जल, पानी और वायु को न केवल हिन्दुओं बल्कि दुनिया के तमाम प्राचीन धर्मों ने देवता माना। इसके पीछे डर का मनोविज्ञान रहा होगा। तो इस तरह देवी देवता मनुष्य के चित्त के प्रतीक बन गए। इसलिए हिन्दुओं ने देवी देवताओं को इतना महत्व दिया।
किसी के देवा शिव हो गए किसी के राम, किसी के गणेश, किसी सम्प्रदाय की प्रधान देवी दुर्गा हो गई। अभी मैं दक्षिण से लौटा तो पाया वहां के सब हिन्दु मुरूगन स्वामी को पूजते हैं जो शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय हैं। तो ये देवी देवताओं और मूर्तियों ने केवल मनुष्य को साकार रूप में ईश्वर या अस्तित्व से जोड़ने का काम किया। आपने दक्षिण भारत के महान गणितज्ञ रामानुजम का नाम सुना होगा। वे दुनिया के महान गणितज्ञों में एक थे। और केवल 33 साल की उम्र में चल बसे।
 रामानुजम ने 1900 में जो गणित की इक्वेशन्स लिखीं आज उनकी मदद से विज्ञान ब्लैक होल का रहस्य सुलझाने में लगा है। उनके सूत्रों को प्रयोग क्रिस्टल-विज्ञान में किया जा रहा है। इन सूत्रों की मदद से एक्स-किरण, एलेक्ट्रान, न्यूट्रान, सिन्क्रोट्रान आदि के डिफ्रैक्सन से किया जाता है। उनके अधिकांश कार्य आज भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं।
कहते हैं वे कभी कभी आधी रात को सोते से जाग कर स्लेट पर गणित से सूत्र लिखने लगते थे और फिर सो जाते थे। जैसे वो सपनों भी गणित के प्रश्न हल कर रहे हों। गणित के सवालों को सूलझाने की रामानुजन की अपनी शैली थी। वे गणित का कोई नया सूत्र या इक्वेशन पहले ही लिख देते थे लेकिन उसकी उत्पत्ति पर ध्यान नहीं देते थे।
इसके बारे में पूछे जाने पर वे कहते थे कि यह सूत्र उन्हें उनकी कुलदेवी "नामगिरी देवी" ने हल करवाए। रामानुजन गणित के आध्यात्म का ही एक अंग मानते थे। लंदन के प्रोफेसर हार्डी उस समय के दुनिया के प्रसिद्ध गणितज्ञों में से एक थे। प्रोफेसर हार्डी के शोधकार्य को पढ़ने के बाद रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के अनुत्तरित सवालों के उत्तर खोज निकाले। हतप्रभः प्रो। हार्डी ने उन्हें कैम्ब्रिज आने का आमंत्रण दिया।
प्रोफेसर हार्डी ने उनसे पूछा कि ये उनने ये हल कैसे निकाला, तो रामानुजम ने अपनी कुलदेवी 'नामगिरी देवी' की मूर्ति उन्हें दिखला दी। लेकिन इस सांस्कृतिक विविधिता का असर ये हुआ कि हिन्दू कई सम्प्रदायों में बटंते चले गए। उनमें वैसी धार्मिक एकता कभी नहीं बन सकी जो इस्लाम या इसाइयत में बनी। लेकिन हिन्दुओं ने इसकी कभी परवाह नहीं की। क्योंकि ईश्वर से साक्षातकार का उनका अपना जीवन दर्शन और अपनी शैली थी।
 इसलिए काशी विश्वनाथ मंदिर में अन्नपूर्णा देवी की चोरी हुई मूर्ति कनाडा से वापस लौटी और जिस तरह उसकी प्राण प्रतिष्ठा हुई वह वाकई देवी के भक्तों के लिए रोमांचकारी रहा होगा। अब अन्नपूर्णा देवी की परिकल्पना को हो ले लीजिए। हिन्दुओं ने उसे पूरी दुनिया को अन्न प्रदान करने वाली देवी के रूप में स्थापित किया। अन्न जीवन की एक मूलभूत जरूरत है इसलिए अन्न की भी एक देवी हो गईं। और इसके साथ पुराणों में कहानियां जुड़ती चली गईं। वायु पुराण में एक दिलचस्प कहानी है कि एक दिन, भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती के बीच भौतिकवाद को लेकर बहस छि़ड़ गई। शिव ने कहा कि खाना पीना सब कुछ भौतिकवादी भ्रम है।
आध्यात्म ही सत्य है। इस पर गृहस्थी की देवी पार्वती क्रोधित हो गईं। शिव और दुनिया को अपना महत्व दिखाने के लिए, वह यह कहते हुए गायब हो गई कि उनके बिना दुनिया कैसे चलती है। कहानी कहती है पार्वती अचानक गायब हो गई। चारों लोक में अकाल पड़ गया। शिव के अनुयायी और देवता तक भूख मिटाने के लिए भीख मांगने पर मजबूर हो गए। लेकिन उन्हें कोई भोजन नहीं मिला।
अंत में शिव और उनके अनुयायियों को पता चला कि वाराणसी (काशी) शहर में पृथ्वी पर केवल एक ही रसोई थी, जहाँ अभी भी भोजन उपलब्ध था। शिव भोजन के लिए काशी गए। उन्होंने देखा- रसोई का स्वामित्व उनकी पत्नी पार्वती के पास था लेकिन अन्नपूर्णा के रूप में। शिव ने अपनी भूल स्वीकार की और सम्मानपूर्वक मां अन्नपूर्णा को वापस काशी लाए। तब से काशी विश्वनाथ मंदिर के आंगन में अन्नपूर्णा देवी की प्रतिमा भी स्थापित हो गई।
एक अन्य पुराण में कहानी है कि पार्वती के संग विवाह करने के बाद शिव काशी में आए रहने आए। काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी। एक सामान्य गृहस्थ स्त्री की तरह श्मशान घर होना पार्वती को नहीं भाया। इस पर यह व्यवस्था बनी कि सत्य, त्रेता, और द्वापर, इन तीन युगों में काशी श्मशान रहेगी और कलियुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बस जाएगी। इसलिए अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ, तो इस तरह कथाओं के सहारे कितनी गहरी बात कह दी गई जो सदियों से चली आ रही है।
हर स्त्री अन्नपूर्णा है जो अपने परिवार के लिए अन्न की चिंता करती है। ऐसी तमाम कहानियां अलग अलग पुराणों में है। आप इन पौराणिक कहानियों के ऐतिहासिकता पर यकीन बिलकुल मत करें। जीवन से जुड़ी ये पौराणिक कहानियां ही हिंदू धर्म और हिन्दुत्व की ताकत हैं। लेकिन जब आप इस शब्द पर राजनीति शुरू कर देंगे तो आपसी वैमन्स्य और नफरत के सिवा और क्या हासिल होने वाला है?
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है। 
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