अब अफगानिस्‍तान की औरतें इतिहास में 200 साल पीछे ढकेल दी जाएंगी

पिछले साल नवंबर में अफगानिस्‍तान के गजनी प्रांत से एक खबर आई. एक 33 साल की महिला खतेरा को तालिबानियों से पहले गोली मारी

Update: 2021-08-18 09:49 GMT

मनीषा पांडेय। पिछले साल नवंबर में अफगानिस्‍तान के गजनी प्रांत से एक खबर आई. एक 33 साल की महिला खतेरा को तालिबानियों से पहले गोली मारी, फिर उसे चाकू से गोदकर उसकी दोनों आंखें निकाल लीं. खतेरा ने कुछ ही महीने पहले गजनी पुलिस फोर्स के क्राइम ब्रांच में नौकरी शुरू की थी. तालिबान को ये गंवारा नहीं हुआ कि एक औरत मर्दों जैसे लिबास में हाथ में बंदूक लेकर क्रिमिनलों को पकड़ती फिरे. उन्‍होंने कहा कि ये इस्‍लामिक कानून शरीया के खिलाफ है. खतेरा की जान तो बच गई, लेकिन उनकी दोनों आंखें चली गईं. अब वो कभी देख नहीं पाएंगी.

मलालाई काकर की कहानी किसने नहीं पढ़ी होगी. एक 38 साल की जांबाज पुलिस ऑफीसर, जिसे 28 सितंबर, 2008 की सुबह उनके घर के बाहर तालिबानियों ने गोली मार दी, जब वो घर से काम पर जाने के लिए निकल रही थीं. मलालाई कांधार पुलिस के क्राइम अगेन्‍स्‍ट वुमेन विभाग की हेड थीं, जिन्‍हें गोली मारने से पहले तालिबानियों ने सैकड़ों बार जान से मार देने की धमकी दी थी. उन पर दबाव था कि वो पुलिस की नौकरी छोड़कर घर बैठें और बुर्के में रहें. तालिबानियों की बात न मानने की कीमत मलालाई को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी.
ये इसी साल अप्रैल की घटना है. जलालाबाद प्रांत में एक और महिला पुलिस ऑफीसर बसीना को तालिबानियों ने गोली से उड़ा दिया. उन्‍होंने उनके माथे के बीचोंबीच पॉइंट ब्‍लैंक गोली मारी थी. बसीना ने अस्‍पताल के रास्‍ते में ही दम तोड़ दिया. बसीना की हत्‍या के ठीक तीन दिन पहले तालिबानियों ने तीन और महिलाओं को गोली मार दी थी, जो उस इलाके में पोलियो टीकाकरण के लिए काम करती थीं.
इन सारी औरतों की एक ही गलती थी कि वो औरत होकर भी पर्दे में नहीं थीं और घर से बाहर निकलकर काम करने जाती थीं.
यहां मैंने सिर्फ तीन घटनाओं का जिक्र किया है, लेकिन आप गूगल पर जाकर चेक कर लीजिए, आपको ऐसे 30,000 वाकये मिलेंगे, जहां तालिबान ने सार्वजनिक तौर पर तथाकथित शरीया कानून का उल्‍लंघन करने के लिए औरतों को सरेआम गोली मारी, उन्‍हें पत्‍थरों से मार-मारकर मार डाला और उन पर कोड़े बरसाए.
सीएनएन का कुछ साल पुराना एक वीडियो है, जिसमें वहां के बामयाम प्रांत में नीले बुर्के में सिर से लेकर पांव तक ढंकी एक औरत को एक आदमी कोड़े मार रहा है. वो गिनकर 30 कोड़े मारता है. चारों ओर मर्दों, बूढ़ों और बच्‍चों की भीड़ जमा है. सब चिल्‍ला रहे हैं. हरेक कोड़े पर औरत के मुंह से एक दबी हुई चीख निकल जाती है. वो औरत दुख में भी इतनी जोर से नहीं चिल्‍ला पा रही, जितने कि चारों ओर जमा मर्द खुशी में चिल्‍ला रहे हैं. उस वीडियो के साथ दी गई जानकारी में बताया गया था कि उस औरत को 30 कोड़ों की सजा इसलिए दी गई क्‍योंकि उसके पति ने उसे एक गैर मर्द के साथ खुले चेहरे ते बात करते हुए देख लिया था. मामला शरीया के ठेकेदार मौलवियों के पास पहुंचा और उन्‍होंने औरत को 30 कोड़ों की सजा सुनाई.
ऐसी की एक और घटना पिछले साल की हेरात प्रांत की है, जिसमें एक औरत को 40 कोड़ों की सजा सुनाई गई क्‍योंकि उसने किसी गैर मर्द से बात कर ली थी. नीले रंग के बुर्के में अपनी पूरी देह सिकोड़कर सिर झुकाए बैठी औरत पर दो आदमी लगातार कोड़े बरसा रहे थे. उन्‍हें 80 सेकेंड लगे 40 कोड़े लगाने में और इस पूरे दौरान चारों ओर जमा मर्दों की भीड़ खड़ी तमाशा देखती रही. उस भीड़ में उस औरत का पति भी था.
ये सारी खबरें और सारे वीडियो इंटरनेट पर मौजूद हैं.
इन सारी कहानियों के मद्देनजर मैं काबुल में हुई तालिबान की पहली प्रेस कॉन्‍फ्रेंस के अर्थ निकालने की कोशिश कर रही हूं. और इस बीच सोशल मीडिया पर तमाम प्रगतिशील, बुद्धिजीवी, वामपंथी दबे-छिपे शब्‍दों में अफगानिस्‍तान के तालिबान शासन को अपना छद्म समर्थन दे रहे हैं और कह रहे हैं कि अब तालिबान शांतिपूर्ण तरीके से शासन करेगा, पड़ोसी मुल्‍कों के साथ सौहाद्रपूर्ण संबंध बनाएगा, औरतों को पढ़ने और नौकरी करने का अधिकार देगा. ये सब पढ़ते हुए समझ नहीं आ रहा कि ये लोग इतिहास के वो पन्‍ने भूल गए हैं या जानबूझकर अपनी आंखें बंद कर ली हैं. या उन्‍हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अब औरतों के साथ वहां क्‍या होने वाला है.
अफगानिस्‍तान की सत्‍ता पर काबिज होने के बाद तालिबान ने पहली प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में जो बातें कहीं, औरतों पर उसका तात्‍कालिक और लंबा प्रभाव क्‍या होगा, इसे लेकर कई सवाल मुंह बाए खड़े हैं. सवाल, जिनका जवाब हर उस व्‍यक्ति और समूह के पास है, जो इस वक्‍त तालिबान की वकालत कसीदे पेश कर रहे हैं, लेकिन जवाब दे नहीं रहा.
प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में बोलते हुए तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा कि तालिबान के शासन में औरतों के अधिकारों का दमन नहीं होगा. उन्‍हें पढ़ने और काम करने की अनुमति होगी. लेकिन इसके साथ ही उन्‍होंने तुरंत ही ये वाक्‍य जोड़ दिया कि 'इस्‍लाम के तय नियमों के मुलाबिक.' उन्‍होंने कहा कि हमारी महिलाएं मुसलमान हैं और उन्‍हें भी अपने धर्म के मुताबिक चलना है. जबीहुल्ला मुजाहिद ने शरीया कानून का जिक्र किया और कहा कि महिलाओं को अधिकार दिए जाएंगे, लेकिन शरीया के नियमों के भीतर.
सरहा करीमी
शरीया के नियम औरतों के अधिकारों, शिक्षा और नौकरी के बारे में क्‍या कहते हैं, ये जानने के लिए ऊपर सुनाई गई कहानियां अगर काफी न लगें तो इंटरनेट पर जाकर ऐसी दस हजार और कहानियां पढ़ लीजिए. पिछले 30 सालों का अफगानिस्‍तान का इतिहास उठाकर देख लीजिए. जवाब मिल जाएगा.
तालिबानियों ने सत्‍ता संभालते ही महिला न्‍यूज एंकरों को हटा दिया है. वहां के सरकारी न्‍यूज चैनल की एंकर खदीजा अमीन को हटाकर मर्द एंकर को बिठा दिया गया है. कंधार में कब्‍जा करने के लिए वहां के सबसे बड़े बैंक अजीजी बैंक में घुसकर तालिबानियों ने वहां काम कर रही 9 औरतों को वापस घर भेज दिया और कहा कि अब कल से काम पर आने की जरूरत नहीं है. तुम्‍हारी जगह तुम्‍हारे घर के मर्द काम करेंगे. हेरात में कब्‍जा करने के बाद वहां की यूनिवर्सिटी से लड़कियों को निकालकर घर भेज दिया गया और कहा कि अब कल से यूनिवर्सिटी आने की जरूरत नहीं है. तालिबान के विरोध में आखिर तक डटी रही बल्‍ख प्रांत की गवर्नर सलीमा मजारी को बंधक बना लिया.
इस्‍लामिक कानून की किताब शरीया के मुताबिक औरतों की जगह घर के भीतर और पर्दे में है. ये सिर्फ अफगानिस्‍तान की बात नहीं है. अभी चंद रोज पहले भारत में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुसलमानों के लिए एडवाइजरी जारी की है, जिसमें कहा गया है कि अपनी बेटियों को अंतरधार्मिक शादियां करने से बचाने के लिए उनका कम उम्र में विवाह कर दें. उन्‍हें मोबाइल फोन न दें और उनकी गतिविधियों पर नजर रखें. बस उन्‍होंने ये नहीं कहा कि उन्‍हें शिक्षा न दें, लेकिन समय पर शादी करने की बात जरूर की है. और ये सारी बातें उन्‍होंने इस्‍लामिक शरीया कानून के हवाले से कही हैं कि शरीया औरतों को क्‍या-क्‍या करने की इजाजत नहीं देता है.
काबुल की सड़कों पर गश्‍त करते तालिबानी लड़ाके. फोटो: AFP
और यहां भारत और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का उदाहरण इसलिए मौजूं है क्‍योंकि बात यहां भी शरीया की है और एक ऐसे देश की, जिसकी जाहिलियत, मूढ़ता और कमजहनियत में तालिबान से कोई तुलना ही नहीं है.
इसलिए 17 साल की उस लड़की का डर गैरवाजिब नहीं है, जो रो रही है और कह रही है कि किसी को उसकी परवाह नहीं क्‍योंकि वो अफगानिस्‍तान में पैदा हुई. वो लोग यूं ही इतिहास में दफन हो जाएंगे. सहरा करीमी का डर गैरवाजिब नहीं है, जिन्‍हें लगता है कि पिछले 20 सालों में उन्‍होंने जो कुछ हासिल किया, वो सब मिट्टी हो जाएगा. उन औरतों का डर गैरवाजिब नहीं है, जो काबुल की सड़कों पर बैनर-पोस्‍टर लेकर उतर आई हैं और तालिबान का विरोध कर रही हैं.
हर उस औरत का डर गैरवाजिब नहीं है, जिसकी जिंदगी उसके मुल्‍क में रातोंरात बदल गई है. उन्‍हें डर है कि अफगानिस्‍तान की औरतें इतिहास में 200 साल पीछे ढकेल दी जाएंगी और ये डर कतई गैरवाजिब नहीं.


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