पुराने साल में भी मैं किंकर्तव्यविमूढ़ था-वही हाल नए साल में होने वाला है। परंतु मेरे भीतर नए साल के प्रति उत्साह और उमंग दोनों हैं तथा नए प्रण लेने का सामर्थ्य भी। मैं प्रण करता हूं कि नए साल में मैं एक साथ चार या आठ कचौरी नहीं खाऊंगा। ऐसा नहीं है कि खाने की मेरी क्षमताएं चुक गई हैं। परंतु मेरा जेब खर्च अब मुझे घटाना ही होगा वरना इससे नुकसान मेरा ही होगा। नए साल में एक और प्रण लेता हूं कि मैं जनहित के कार्य करने का कोई सेवा शुल्क किसी से नहीं लूंगा। मेरा मतलब गरीब को नहीं सताऊंगा, क्योंकि गरीब की हाय बहुत बुरी होती है। आखिर ईश्वर के दरबार में जाकर भी तो सवालों के जवाब देने हैं। इसलिए ऐसा सवाल ही क्यों पैदा करूं, जिसका झंझट गले पड़ जाए।
नया संकल्प यह भी है कि पत्नी को अब नहीं डांटूंगा। बेचारी पिछले बीस वर्षों से मेरी डांट-फटकार से तंग आकर इतनी परेशान हो चुकी है कि वह लगभग बेजुबान हो गई है। महिला आरक्षण का युग है, यह आजादी मैं नए साल में उसे सौंपकर अपना बोझ हल्का करूंगा। लेकिन मैं भी करूं क्या, लड़ाई टोटे की है। वरना पत्नी को भी कोई डांटा जाता है क्या? इधर मैं बच्चों को भी आश्वस्त कर चुका हूं कि उनकी देखभाल समुचित करूंगा। वे चाहे जो करें। वे चाहें तो गलत रास्ते पर भी जा सकते हैं। क्योंकि मैं बाएं चलते-चलते और रास्ते बताता-बताता तंग आ चुका हूं। कुछ टंेशन मुझे छोड़ने ही होंगे। मैंने शादी के बाद अपना वेट दस किलो लूज किया है। हालांकि डॉक्टर मुझे अंडरवेट बताकर टॉनिक देता आया है, लेकिन अब कोई हैल्थ टॉनिक नहीं लूंगा। अब टेंशन की दवा तो मेरी लत बन गई है, इसलिए उसे तो चाहकर भी नहीं छोड़ सकता। गरीबी में आटा गीला ही होता है, इसलिए मैं इससे नहीं घबराऊंगा। लगे हाथ नए साल पर मैं यह भी प्रण करता हूं कि जिससे जितना भी पुराने साल में उधार लिया है, वह अपनी मेहत के बूते पर चुकता कर, आगे से सूदखोरों के चक्कर में नहीं पड़ूंगा। थोथा दिखावा छोड़ना अब जरूरी हो गया है, क्योंकि इसी ने मुझे नए से नए जाल में फंसाया है।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक