नए वेरिएंट की चुनौती
कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर पूरी दुनिया में चिंता तो है ही, इसने नीति-निर्माताओं के सामने कई स्तरों पर चुनौतियां भी पेश की हैं। सबसे बड़ी समस्या तो इसकी स्पीड ही है।
कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर पूरी दुनिया में चिंता तो है ही, इसने नीति-निर्माताओं के सामने कई स्तरों पर चुनौतियां भी पेश की हैं। सबसे बड़ी समस्या तो इसकी स्पीड ही है। कुछ दिन पहले तक यह उम्मीद जताई जा रही थी कि चूंकि इसमें संक्रमण का नेचर माइल्ड है, इसलिए संभव है कि यह वेरिएंट ज्यादा तकलीफदेह न साबित हो। शायद, संक्रमित होने वालों के शरीर में इम्यूनिटी बने और इससे महामारी से लड़ने में मदद मिले। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि माइल्ड इन्फेक्शन के बावजूद जिस तेजी से ओमिक्रॉन फैलता है, उसे देखते हुए बहुत संभव है कि इसकी भारी संख्या ही हेल्थ सिस्टम के लिए बड़ी चुनौती साबित हो।
वैसे, यह भी याद रखने की जरूरत है कि इस वेरिएंट को लेकर अभी शुरुआती जानकारियां ही मिली हैं। इसके बावजूद कई देशों में कहा जा रहा है कि अगर लोगों ने सावधानी नहीं बरती और सख्ती से कोरोना प्रोटोकॉल पर अमल नहीं किया तो दिसंबर के आखिर तक हॉस्पिटल फिर से मरीजों से भर सकते हैं। यह सूचना भी कम गंभीर नहीं कि ज्यादातर देशों तक यह वेरिएंट अपनी पहुंच बना चुका है, भले ही उन देशों में अभी इसके ज्यादा केस सामने न आए हों। जाहिर है, केसों की कम संख्या और हलके लक्षणों के आधार पर इसे गंभीरता से न लेना भारी पड़ सकता है।
बहरहाल, अपने देश में, जैसा कि नीति आयोग के सदस्य और कोविड टास्कफोर्स चीफ डॉ. वीके पॉल ने कहा है, फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती यही है कि सभी वयस्कों को जल्द से जल्द टीके की दोनों डोज दी जाएं। बूस्टर डोज की बात भी तभी सोची जा सकती है, जब यह काम पूरा हो चुका हो। हालांकि बुरी से बुरी स्थिति की कल्पना करते हुए चलें तो एक स्थिति यह भी बनती ही है कि ओमिक्रॉन के सामने हमारे टीके बेअसर साबित हों। अगर इस पर ये काम कर भी गए तो शायद अगले वेरिएंट पर बेअसर हो जाएं। इसलिए एक्सपर्ट्स की यह बात सही है कि हमें ऐसे टीकों पर काम करना होगा, जो आने वाले वेरिएंट पर कारगर हों। अगर ये उन पर कारगर न भी हुए तो यह संभावना रहे कि थोड़ी कोशिश से उन्हें उन नए वेरिएंट के उपयुक्त बनाया जा सके।
जैसे कि आसार बताए जा रहे हैं, नए वेरिएंट की यह चुनौती हर दो-तीन महीने पर भले न आए, साल में एक बार तो आ ही सकती है। याद रखने की एक और बात यह है कि यह चुनौती किसी एक देश की नहीं बल्कि वैश्विक है, इसलिए इससे मुकाबले को लेकर भी तमाम देशों के बीच तालमेल बढ़ाना होगा। ताकतवर और अमीर देशों की अधिक से अधिक वैक्सीन अपने लिए रखने की मौजूदा प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने और विभिन्न देशों में सहयोग की भावना मजबूत करने का काम जितनी जल्दी हो सके, उतना बेहतर होगा।