फैसलों की नई लिखावट

इबारत बदलते मंसूबों में हिमाचल प्रदेश सरकार के लिए अपनी सत्ता का अंतिम वर्ष चुनावी मुनादी की तरह हो सकता है

Update: 2021-12-01 18:45 GMT

इबारत बदलते मंसूबों में हिमाचल प्रदेश सरकार के लिए अपनी सत्ता का अंतिम वर्ष चुनावी मुनादी की तरह हो सकता है, बशर्ते मसले ताक पर न रहें और फैसले हर वर्ग व हर क्षेत्र के लिए रहंे। ऐसे में आगामी शीतकालीन सत्र की तैयारियों से पहले मंत्रिमंडल के फैसलों की पृष्ठभूमि दिखाई जाएगी और जनता यह देखेगी कि सरकार उसके कितना नजदीक खड़ी है। बेशक वर्तमान सरकार के कार्यकाल में चस्पां कोविड पीरियड एक अवांछित नुकसान की तरह रहेगा, फिर भी केंद्र की कृपा दृष्टि से इतना महीन तो काता जा सकता है कि कुछ तारीफ हो जाए। तारीफ के हिसाब से स्कूली बच्चों को मुफ्त की वर्दी और साथ ही बैग भी फ्री मिलेगा। जाहिर है बच्चे याद करेंगे और अभिभावक इस उपहार को सरकार की नेमत मानेंगे। सरकार अपने एजेंडे पर चलते हुए कुछ नए कार्यालयों की शिनाख्त कर चुकी है, तो जरी और रे में उपतहसीलों का खुलना या जलशक्ति विभाग ने आनी के सनाड, करसोग के चुराग तथा पांगी के किलाड़ में उपमंडल खोलकर अपनी रिक्तियां भर लीं। फाइल अब तेजी से शृंगार करना चाहेगी और इसी के साथ नीति व नीयत की दुहाई से मेलों का जिलास्तरीय घोषित होना, रिक्त पदों का भरना तथा बड़े पदों में रेखांकित होने का जादुई स्पर्श भी निकल रहा है।

मंत्रिमंडलीय फैसलों के दायरे घूम रहे हैं, तो जंजैहली सांस्कृतिक केंद्र की धुन स्पष्ट हो रही है, मंडी में राज्य विश्वविद्यालय की पताका ऊंची हो रही है, तो कई भू आबंटन के प्रस्तावों को मंजूरी मिल रही है। हिमाचल सरकार केंद्र से प्रेरित होकर इलेक्ट्रिकल वाहनों पर सबसिडी देने में प्राथमिकता दे रहा है। इलेक्ट्रिकल वाहनों के संचालन में कई तरह की छूट के सदके खरीददार को वित्तीय राहत मिलेगी, लेकिन इसका असर सार्वजनिक परिवहन को क्या रास्ता दिखाता है, देखना होगा। आश्चर्य यह कि धर्मशाला स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत जो इलेक्ट्रिकल बसें आनी हैं, उनकी निविदाएं ही नहीं खुल रहीं, जबकि पूर्व में चले परिवहन निगम के छोटे इलेक्ट्रिक वाहन अब ढूंढे नहीं मिल रहे। ऐसे में कल के परिवहन में हिमाचल की पिक्चर कैसी होगी, इसकी रूपरेखा भी सामने आनी चाहिए और यह एक सक्षम परिवहन नीति से ही संभव होगा। परिवहन के साथ-साथ पर्यटन व खेल नीति का इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है। पिछले दिनों पैराग्लाइडिंग के दौरान धर्मशाला व बीड-बिलिंग में जो हादसे हुए हैं, उन्हें देखते हुए स्पष्ट नीति व निर्देश चाहिए।
यह इसलिए भी क्योंकि प्रदेश के कई भागों में पैराग्लाइडिंग तेजी से शुरू हो रही है, तो इसके लिए नीतिगत निर्देश व विभागीय व्यवस्था चाहिए। दूसरी ओर एक साल से भी अधिक समय पूर्व जिस खेल नीति की शेखी बघारते हुए मंत्री आगे बढ़े थे, उसे अब डस्टबिन से निकालने की जरूरत है। मंत्रिमंडल की आगामी बैठकों में प्रत्येक मंत्री के दायित्व व जिम्मेदारियों का खुलासा भी होगा। सरकार के फैसलों का अरक कहां निकल रहा है और किस मंत्रालय पर अमृत टपक रहा है, यह भी देखना होगा। मंत्रिमंडलीय फैसलों की श्रेष्ठता में कौन सा जिला सर्वोपरि और कौन सा क्षेत्र फकीर नजर आ रहा है, इसकी गणना भी अब शुरू हो जाएगी। खासतौर पर मंडी जिला में मेडिकल यूनिवर्सिटी के बाद राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना से राजनीति का बेशकीमती कालीन बिछ रहा है, तो पूछा यह भी जाएगा कि दस सालों से लावारिस केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए दो गज जमीन कब मिलेगी। तीन दशकों से भी पहले स्थापित हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र, धर्मशाला की अब क्या भूमिका व स्तर होगा। क्या इसे स्वायत्त संस्थान का दर्जा मिलेगा या इसे भी क्षेत्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्तरोन्नत किया जाएगा। क्या प्रदेश के एकमात्र पपरोला आयुर्वेदिक कालेज को भी इसी तरह के संवर्द्धन से स्वतंत्र विश्वविद्यालय के स्वरूप में स्तरोन्नत किया जाएगा। मंत्रिमंडल के फैसलों से नई लिखावट में कई शुभकामनाएं मिल रही हैं या उम्मीदें पूरी हो रही हैं, लेकिन अतीत की लकीरों को जहां अवरुद्ध होते देखा जा रहा है, उसे अंगीकार नहीं किया गया, तो सारे साधुवाद अटक जाएंगे। पिछली सरकार ने धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा दिया था, लेकिन इस विषय पर मौजूदा सत्ता ने अपनी स्थिति फिलहाल स्पष्ट नहीं की है।

divyahimachal 

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