By: divyahimachal
आज हम नि:शब्द हैं। निराशा और पीड़ा भी है। राष्ट्र में ऐसा क्यों हो रहा है और प्रधानमंत्री मोदी बिल्कुल खामोश, तटस्थ हैं। नए संसद भवन के लोकार्पण के दौरान लोकतंत्र की खूब परिभाषाएं दी गईं। उपमाएं और रूपक गढ़े गए। एहसास होता रहा कि लोकतंत्र आज नए सिरे से जीवंत हो उठा है! लेकिन कुछ दूरी पर देश की महान बेटियों के साथ बदसलूकी की जा रही थी। प्रधानमंत्री तो उन खिलाड़ी-बेटियों को अपना परिवार मानते रहे हैं। सार्वजनिक रूप से घोषणा भी की गई है। प्रधानमंत्री आवास पर उन्हें सम्मानित किया गया है। पद्मश्री और खेल-रत्न सरीखे अवार्ड से भी नवाजा गया है। यह पदक जीतने की कीमत नहीं थी। वे तो बहुमूल्य हैं, बेशकीमती हैं। उन्हीं पदकवीर बेटियों को पुलिस ने सडक़ों पर घसीटा और गालियां भी दीं। क्या आज देश की आन-बान-शान ‘अपराधी’ हो गई? पुलिस ने गंभीर धाराओं में उनके खिलाफ प्राथमिकियां भी दर्ज कीं। क्या मजाक है? अंतत: भारत को गौरवान्वित करने वाली, ‘तिरंगे’ को अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिलाने वाली और ‘राष्ट्रगान’ की धुन बजने का अवसर पैदा करने वाली बेटियां पहलवान गंगा मैया में अपने ‘विजयी पदकों’ को प्रवाहित करने को विवश क्यों हुईं? आखिर यह नौबत क्यों आई? बेशक बाहुबली सांसद बृजभूषण शरण सिंह पदक की कीमत 15 रुपए आंकता रहा, लेकिन भारत ऐसे कितने पहलवान या खिलाड़ी पैदा कर सका है, जो अंतरराष्ट्रीय गौरव के प्रतीक बने हैं? 142 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले देश में कितने खिलाड़ी हैं, जो ओलंपिक खेलने की पात्रता हासिल कर सकते हैं? ओलंपिक में जीतना और पदक प्राप्त करना तो बहुत दूर की कौड़ी है। साक्षी मलिक रियो ओलंपिक्स की कांस्य पदक विजेता पहलवान हैं। विनेश फोगाट, साक्षी और बजरंग पूनिया राष्ट्रमंडल खेलों में कुश्ती के चैम्पियन रहे हैं। बजरंग तो विश्व में नंबर वन पहलवान रहे हैं और टोक्यो ओलंपिक्स के कांस्य पदक विजेता हैं। इन पहलवानों के नाम ढेरों उपलब्धियां हैं। यह कोई सामान्य बात नहीं है। सालों की अनथक मेहनत, प्रशिक्षण और संकल्प के प्रतीक रूप हैं ये पदक! अब ये पदक पहलवानों के निजी नहीं हैं। ये भारत देश के पदक हैं और आत्मा की तरह अनश्वर और अमर हैं। ओलंपिक्स, राष्ट्रमंडल, एशियन, विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं के रिकॉर्ड में ये पदक ‘भारत के नाम’ दर्ज हैं। यकीनन खिलाड़ी का नाम भी होता है। हालांकि कुछ बुजुर्ग किसान नेताओं के हस्तक्षेप से फिलहाल पदक गंगा में विसर्जित नहीं किए जा सके। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत को पदकों की पोटलियां सौंप दी गई हैं, लेकिन मात्र 5 दिन का अल्टीमेटम दिया गया है। यदि बेटी पहलवानों को, इस दौरान, इंसाफ नहीं मिला, तो फिर क्या होगा? क्या फिर गंगा में प्रवाहित करने की नौबत आ जाएगी? निराश, रोती, माथा पकड़ कर सिर नीचा किए गंगा घाट पर बैठीं तनावग्रस्त महिला पहलवानों को ऐसा नहीं करना चाहिए। गंगा घाट वाले दृश्य मर्माहत हैं और देश के तौर पर भारत को शर्मसार करने वाले हैं। क्या देश में पदकवीर खिलाडिय़ों का सामाजिक सम्मान बस यही है कि उन्हें सडक़ पर ला दिया जाए? प्रधानमंत्री अपने आवास पर बुलाकर दिलासा क्यों नहीं दे सके? इससे कौन-सी राजनीति ध्वस्त हो जाएगी? बहरहाल ये पदक राष्ट्रीय धरोहर, संपदा और प्रतीक हैं। उन्हें प्रवाहित करने की सोचना भी गलत है। अब ‘यूनाइटेड वल्र्ड रेसलिंग’ ने अल्टीमेटम जारी किया है कि 45 दिन में भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव कराए जाएं। नहीं तो उसकी मान्यता निलंबित कर दी जाएगी। यह वैश्विक संगठन भी भारत की महिला पहलवानों के साथ निचले दर्जे के रवैये और यौन-शोषण की खबरों से चिंतित और सरोकारी है। कुछ साधु-संतों ने आग्रह किया है कि पॉक्सो जैसे कानून में संशोधन किए जाएं।