नाम परिवर्तन पर आवश्यक पहल: अब नई दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का नाम बदलने की मांग
यह परिवर्तन कांग्रेस पार्टी को पच नहीं रहा कि देश में खेलों के क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड के नाम से जाना जाएगा।
शशांक पांडेय| यह परिवर्तन कांग्रेस पार्टी को पच नहीं रहा कि देश में खेलों के क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड के नाम से जाना जाएगा। उन्हीं हाकी के जादूगर ध्यानचंद के नाम पर जिनकी करिश्माई स्टिक से निकले गोलों ने भारत को कई स्वर्णिम सफलताएं दिलाईं। इससे पहले तक यह पुरस्कार राजीव गांधी के नाम पर था। यही बदलाव कांग्रेस को अखर रहा है। हाल में संपन्न ओलिंपिक में हाकी टीमों के शानदार प्रदर्शन के बाद सरकार ने पुरस्कार के नाम में परिवर्तन संबंधी यह पहल की।
मेजर ध्यानचंद भारतीय खेल जगत की सर्वकालिक महानतम हस्तियों में से एक हैं। ऐसे कालजयी खिलाड़ी के नाम पर खेल रत्न अवार्ड का नामकरण करने के बजाय कांग्रेस पार्टी को इस पर अवश्य आत्ममंथन करना चाहिए कि अपनी सत्ता के दौरान करीब-करीब सभी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय योजनाओं, संस्थानों, अवार्ड और फेलोशिप इत्यादि का नामकरण गांधी-नेहरू परिवार से जुड़े सदस्यों के नाम पर करना कितना बेतुका था। उसमें भी जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे नाम प्रमुख रहे। चूंकि कांग्रेस अब खेल रत्न अवार्ड का नाम बदलने पर हायतौबा मचा रही है तो ऐसे में उसकी उस प्रवृत्ति को उजागर करना बेहद आवश्यक है जिसने उसे प्रत्येक परियोजना, अवार्ड और संस्थान का नामकरण सिर्फ एक परिवार के सदस्यों के नाम पर करने की ओर उन्मुख किया।
जहां तक हमारी जानकारी का सवाल है तो नेहरू, इंदिरा गांधी या राजीव गांधी का खेलों से कोई खास सरोकार नहीं था। इसके बावजूद तमाम टूर्नामेंट और ट्राफियों का नामकरण उनके नाम पर हुआ। इसमें कोई खेल अछूता नहीं रहा। राजीव गांधी के नाम पर कुछ टूर्नामेंटों के उदाहरण ही गिन लीजिए। राजीव गांधी गोल्ड कप कबड्डी टूर्नामेंट, राजीव गांधी फेडरेशन कप बाक्सिंग चैंपियनशिप, राजीव गांधी मेमोरियल रोलर स्केटिंग चैंपियनशिप, आल इंडिया राजीव गांधी बास्केटबाल (गर्ल्स) टूर्नामेंट, राजीव गांधी बोट रेस केरल, राजीव गांधी रोड रेस नई दिल्ली और आल इंडिया राजीव गांधी रेसलिंग गोल्ड आदि-इत्यादि। ये तो कुछ उदाहरण हैं। स्थानाभाव के कारण सभी का उल्लेख संभव नहीं, क्योंकि इंदिरा गांधी और नेहरू के नाम पर भी कई खेल स्पर्धाएं आयोजित की जाती हैं। यह सिलसिला स्टेडियमों के नामकरण तक बढ़ता गया। दिल्ली के दो बड़े स्टेडियम जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम और इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यह सूची बहुत लंबी है। फिर भी गिनती करें तो देश में 26 स्पोर्ट्स टूर्नामेंट और 17 स्टेडियमों के नाम गांधी-नेहरू परिवार के सदस्यों पर है। इतने अन्य हस्तियों या खेल दिग्गजों के नाम पर नहीं।
मामला केवल खेलों तक सीमित नहीं है। करीब 450 सरकारी योजनाओं, इमारतों और फेलोशिप इत्यादि भी गांधी परिवार के इन सदस्यों के नाम पर हैं। इनमें एयरपोर्ट, बंदरगाह, विश्वविद्यालय और अकादमिक संस्थान शामिल हैं। यहां तक कि भौगोलिक स्थानों पर भी नेहरू-गांधी परिवार की छाप लगा दी गई। देश का सबसे दक्षिणी सिरा जो पहले पिग्मिलियन पाइंट कहा जाता है, उसका नाम बदलकर इंदिरा पाइंट कर दिया गया। इतना ही नहीं हिमालय में माउंट राजीव के साथ ही मुंबई हार्बर में जवाहर द्वीप भी कर दिया गया। कांग्रेस ने कभी नहीं सोचा कि स्वामी विवेकानंद या श्री अर¨वद या कोई अन्य व्यक्तित्व भी ऐसे ही सम्मान के पात्र हैं। हद तो तब हो गई जब उसने नेहरू-गांधी परिवार से इतर कांग्रेस के अन्य नेताओं और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भी अनदेखी की। सरदार पटेल से लेकर डा. आंबेडकर और लाल बहादुर शास्त्री से लेकर पीवी नरसिंह राव जैसे तमाम दिग्गज इस अनदेखी के शिकार हुए।
दरअसल, कांग्रेस ने नामकरण की इस आपाधापी में विवेक और बुद्धि को पूरी तरह ताक पर रख दिया। अनुसूचित जाति और जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए नेशनल फेलोशिप स्कीम को डा. आंबेडकर के बजाय राजीव गांधी के नाम पर किया गया। देश के शीर्ष तकनीकी संस्थान भी देश के मूर्धन्य विज्ञानियों के नाम पर नहीं, बल्कि राजीव गांधी के नाम पर किए गए। राष्ट्रीय पार्को और म्यूजियम की भी यही नियति हुई। नई दिल्ली स्थित विदेश मंत्रलय के मुख्यालय को जवाहरलाल नेहरू भवन नाम दिया गया है। पर्यावरण मंत्रलय को इंदिरा पर्यावरण भवन कहा जाता है। नागर विमानन मंत्रलय राजीव गांधी भवन से संचालित होता है। इसी तर्ज पर नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट इंदिरा गांधी और हैदराबाद एयरपोर्ट राजीव गांधी के नाम पर है। वास्तव में हैदराबाद एयरपोर्ट एनटी रामाराव के नाम पर था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने उसे बदल दिया। बाद में घरेलू टर्मिनल को रामाराव के नाम पर किया गया। कुछ एयरपोर्ट इस कांग्रेसी फितरत से बच निकले। जैसे बेंगलुरु एयरपोर्ट इस खूबसूरत शहर के संस्थापक केंपेगौड़ा के नाम पर है। वहीं पटना एयरपोर्ट जयप्रकाश नारायण और रांची एयरपोर्ट बिरसा मुंडा के नाम पर है। असल में सभी एयरपोर्ट संबंधित क्षेत्र की प्रतिष्ठित हस्तियों के नाम पर ही होने चाहिए।
कांग्रेस ने नेहरू-गांधी परिवार के नेताओं के नाम पर नामकरण की जो खराब परंपरा चलाई उसे दुरुस्त करने की अब शुरू हुई कोशिशों को और गति देनी होगी। इसमें सुधार आवश्यक हैं, जिन्हें सुनियोजित एवं चरणबद्ध रूप से अंजाम दिया जाए। इसके कई ठोस कारण हैं। पहला तो यही कि भारत कोई राजतंत्र नहीं है। यह राजतंत्रों में ही होता है जहां सभी योजनाओं और संस्थानों का नामकरण राजा या राजपरिवार के अन्य सदस्यों के नाम पर किया जाए। दूसरा कारण यह कि एक ही परिवार के सदस्यों के नाम के वर्चस्व में दूसरी हस्तियों के योगदान को नकारने वाली साजिश दिखती है। नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर हुए अंधाधुंध नामकरण ने हमें एक कृतघ्न देश बना दिया, जहां राष्ट्र निर्माण में योगदान देने वाले शिल्पियों को पर्याप्त सम्मान नहीं मिला। तीसरा कारण यह कि हमारा समाज बेहद विविधतापूर्ण है और प्रत्येक राज्य के समुदायों ने भारत की तरक्की में अपना योगदान दिया है। जब हम भारत के विभिन्न समुदायों के नाम पर नामकरण करते हैं तो इससे विविध पृष्ठभूमि के लोगों के गौरवशाली योगदान और अपनी सामाजिक वास्तविकताओं का भी स्मरण कराते हैं। इसीलिए इन विसंगतियों को जल्द दूर करने की जरूरत है। इसमें कोई हिचक नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे राष्ट्रीय एकता को ही बल मिलेगा। साथ ही महान भारतीयों के योगदान को भी मान्यता मिलेगी।