नरेन्द्र मोदी विपक्ष और वेशभूषा
लोकतन्त्र में विपक्ष जब व्यक्तिगत आलोचना को विरोध का मुख्य आधार बना देता है तो
लोकतन्त्र में विपक्ष जब व्यक्तिगत आलोचना को विरोध का मुख्य आधार बना देता है तो वह सैद्धांतिक व नीतिगत रूप से 'दिवालिया' करार दिया जाता है। संसदीय प्रणाली में आलोचना के इस स्तर को 'ओछापन' इसलिए कहा जाता है क्योंकि ऐसा करके विपक्ष अपनी नाकाबलियत का फरमान जारी करता है और ऐलान करता है कि नीतिगत विरोध के लिए उसके पास पर्याप्त तर्कों का अभाव है। प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कोरोना टीका लगवाने की आलोचना विभिन्न विपक्षी नेताओं ने जिस तर्ज औऱ अंदाज से की है उसका आम भारतवासी को सन्देश यही गया है कि कांग्रेस के लोकसभा में नेता श्री अधीर रंजन चौधरी वैचारिक रूप से थके हुए और सतही विचारों के व्यक्ति हैं। बड़े अदब से मैं गुजारिश करना चाहता हूं कि श्री चौधरी ने टीका लगवाते वक्त प्रधानमन्त्री के कपड़ों और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सा कर्मचारियों का जिस रूप में और जिस तल्खी के साथ उदाहरण दिया उससे देश के समस्त चिकित्सा वैज्ञानिकों और चिकित्सा कर्मचारियों का अपमान हुआ है। श्री चौधरी को बोलने से पहले सौ बार विचार करना चाहिए था कि श्री मोदी एक प्रधानमन्त्री के रूप में साठ साल से ऊपर के बुजुर्गों के कोरोना टीकाकरण का श्रीगणेश कर रहे थे। क्या प्रधानमन्त्री का स्वयं चिकित्सा संस्थान जाना गलत था? क्या उन्होंने पूर्ण रूप से भारत में बने कोरोना टीके 'कोवैक्सीन' को लगवा कर गलत किया? क्या उन्होंने प्रत्येक बुजुर्ग को बेखौफ होकर टीका अपनाने की प्रेरणा देकर कोई गलत सन्देश दिया? यह सब श्री मोदी ने इसीलिए किया जिससे प्रत्येक भारतवासी में यह विश्वास जमाने कि कोरोना का टीका लगवाना राष्ट्रीय नागरिक धर्म से कम नहीं है और एक नागरिक के रूप में वह अपना धर्म निभाने के लिए सबसे आगे आये हैं। जरा सोचिये विपक्ष के कुछ नेताओं ने कोरोना टीके के बारे में ही क्या-क्या भड़काऊ बयान नहीं दिये थे?