मुनव्वर फारूकी की कॉमेडी और लोगों की आहत भावनाएं

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में बहुत सारे लोग ऐसे हैं

Update: 2021-12-01 07:11 GMT
प्रवीण कुमार।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो कॉमेडियंस की कॉमेडी पर खिलखिला उठते हैं. पर कुछ लोगों को लगता है कि हाल के वर्षों में कुछ ऐसे लोगों की भी जमात खड़ी हुई है, जिनकी इन कॉमेडी से भावनाएं आहत होती हैं. उन्हें यह कॉमेडी देश की सभ्यता और संस्कृति पर हमला लगता है और बात पुलिस-प्रशासन में शिकायत तक पहुंच जाती है. कई बार तो बात उस कॉमेडियन के शो को रद्द कराने या उसे ऑनलाइन-ऑफलाइन धमकी देने तक पहुंच जाती है. इसी फेहरिस्त में एक बार फिर से चर्चा में हैं कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी.
रविवार 28 नवंबर की शाम को फारूकी का लेटेस्ट शो 'डोंगरी टू नोवेयर' बेंगलुरू के गुड शेफर्ड ऑडिटोरियम में होने वाला था. भारी विरोध के बाद पुलिस-प्रशासन ने शो को इजाजत नहीं दी. मुनव्वर फारूकी ने ट्वीट किया, "नफरत जीत गई, आर्टिस्ट हार गया. मैं अब कुछ नहीं कर रहा! अलविदा! अन्याय." हंगामा मचना था सो मचा. कई तरह के सवाल उठ खड़े हुए जिसमें एक सवाल यह भी खड़ा हुआ कि क्या मुनव्वर फारूकी को वेवजह टारगेट किया जा रहा है? पर सवाल ये है कि क्या इस तरह का विरोध अभी हाल के दौर में शुरू हुआ है? क्या इस देश में पहले कलाकार अपनी भावनाएं प्रदर्शित करने के लिए स्वतंत्र थे?
फारूकी को टारगेट करने के पीछे क्या है असल कहानी
गुजरात के जूनागढ़ निवासी स्टैंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को इसलिए टारगेट नहीं किया जा रहा है कि वह हिन्दू नहीं हैं. बात सिर्फ हिन्दू न होने की नहीं है. बहुत सारे हिन्दू कॉमेडियन भी हिन्दूवादी संगठनों और मौजूदा केंद्रीय सत्ता के निशाने पर हैं जो सत्ता के मनमाफिक बात नहीं करते हैं. मसलन कुणाल कामरा, राजीव निगम, वीर दास, तन्मय भट्ट, कीकू शारदा आदि लंबी फेहरिस्त है. असल बात तो ये है कि मुनव्वर फारूकी मुस्लिम होने के साथ-साथ मोदी सत्ता, बीजेपी, आरएसएस समेत तमाम दक्षिणपंथी संगठनों पर अपनी कॉमेडी में अपने कंटेंट से तीखा कटाक्ष भी करते हैं. मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को कौन भूल सकता है. एक बार जब बीबीसी ने हुसैन से सवाल किया था, "क्या सोचकर आपने हिन्दू देवियों को न्यूड पेंट किया?" तो हुसैन का जवाब था, "इसका जवाब अजंता और महाबलीपुरम के मंदिरों में है.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जो अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, उसे भी पढ़ लीजिए. मैं सिर्फ कला के लिए जवाबदेह हूं और कला सार्वभौमिक है. नटराज की जो छवि है, वो सिर्फ भारत के लिए नहीं है, सारी दुनिया के लिए है. महाभारत को सिर्फ साधु-संतों के लिए नहीं लिखा गया है. उस पर पूरी दुनिया का हक है." साल 1970 में बनाई गई इन पेंटिंग पर विवाद तब खड़ा हुआ जब 'विचार मीमांसा' नाम की एक पत्रिका ने साल 1996 में 'मकबूल फिदा हुसैनः पेंटर या कसाई' शीर्षक से उसे प्रकाशित कर दिया. फिर क्या था. यह पहले भी था और आज भी है, जब हिन्दूवादी संगठन ध्रुवीकरण की राजनीति का कोई मौका छोड़ते नहीं हैं. पहले भी ऐसा हुआ है कि मकबूल फिदा हुसैन को देश छोड़ना पड़ा. कहने का मतलब यह कि समय, काल और परिस्थिति के हिसाब से हमेशा इस देश में कलाकार टारगेट होते रहे हैं. मुनव्वर फारूकी अपवाद नहीं हैं.
आज देश में टकराव की आग में घी डालकर उसे बड़ा बनाने में मीडिया बड़ी भूमिका निभा रही है. गुजरात बजरंग दल के एक नेता ने तो यहां तक कह दिया था कि मुनव्वर फारूकी ने अपनी कॉमेडी से हिन्दू धर्म को नीचा दिखाया है, हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है. बजरंग दल इन चीजों को लेकर सहिष्णु नहीं है. और फिर गुजरात में होने वाले फारूकी के तमाम शो को रद्द कर दिया गया.
क्या है फारूकी के विवाद की पूरी कहानी?
मध्यप्रदेश के इंदौर से शुरू हुई विवादों की यह कहानी अब कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु पहुंच काफी गर्म हो गई है. साल 2021 पहली जनवरी की बात है. मुनरो कैफे में कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी का स्टैंडअप कॉमेडी शो था. हालांकि कुछ अन्य विवादित कॉमेडी वीडियो को लेकर फारूकी पहले से ही हिन्दू संगठनों के निशाने पर थे. लेकिन यहां तो लाइव शो के दौरान ही कुछ हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता आ धमके थे. तब फारूकी 37 दिन तक जेल में रहे थे. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी थी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तब तुकोगंज पुलिस स्टेशन में मुनव्वर फारूकी पर हिन्दू देवी-देवताओं सीता मैया, भगवान राम और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने का आरोप लगा था. जहां तक बेंगलुरू शो की बात है तो द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, हिन्दू जागृति समिति ने बीते 27 नवंबर को बेंगलुरू के पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर फारूकी के शो को रद्द करने के लिए कहा था. रणनीति के तहत इसी पत्र को ट्विटर पर भी पोस्ट किया गया जिसमें कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या और अनंत कुमार हेगड़े को टैग किया गया था. राजनीतिक दबाव में बेंगलुरू पुलिस ने शो की इजाजत नहीं दी. मामला तब और तूल पकड़ गया जब कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा सांसद राहुल गांधी ने मुनव्वर का नाम लिए बिना ट्वीट किया, "नफरत नहीं जीतेगी. विश्वास रखिए. हार नहीं माननी है. रुकना नहीं है."
सोशल मीडिया पर मुनव्वर के समर्थन और विरोध में खूब बहस चल रही हैं. हालांकि मुनव्वर ने खुद अपने ट्वीट में इस बात का दावा किया है, "हमारे पास शो का सेंसर सर्टिफिकेट भी है. इसमें कोई भी आपत्तिजनक बात नहीं है. हमने पिछले दो महीने में 12 शो रद्द किए हैं. सिर्फ धमकियों की वजह से." लेकिन कहते हैं न कि 'होइहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावै साखा'. सो फारूकी को रामायण की इन पंक्तियों की गहराई को आत्मसात करना चाहिए.
मुनव्वर फारूकी बनाम जाकिर खान क्यों?
सोशल मीडिया पर मुनव्वर फारूकी को खूब नसीहत दी जा रही है, 'कॉमेडी करनी है तो जाकिर खान से सीखो, मुनव्वर फारूकी की तरह किसी धर्म का मजाक उड़ाने की जरूरत नहीं है'. आखिर फारूकी का विरोध करने के लिए हिन्दूवादियों को जाकिर खान की जरूरत क्यों पड़ी? कौन हैं जाकिर खान जिसकी उपमा देकर फारूकी को नसीहत दी जा रही है? दरअसल जब मुनव्वर फारूकी के कॉमेडी कंटेंट पर सवाल उठा तो कुछ लोगों ने उनके समर्थन में कहा कि मुस्लिम होने की वजह से ही हमेशा उन्हें टारगेट किया जाता है. इसके जवाब में मुनव्वर फारूकी को ट्रोल करते हुए बड़ी संख्या लोग सोशल मीडिया पर लिखने लगे, दुनिया में और भी मुस्लिम कॉमेडियन्स हुए हैं, जिन्हें भारत में खूब पसंद किया जाता है. जाकिर खान भी मुस्लिम हैं और सभी उसे बहुत पसंद करते हैं. निश्चित रूप से इस तरह की टिप्पणी इस बात को स्थापित करने के लिए लिखी गई कि मुस्लिम होने की वजह से मुनव्वर फारूकी को टारगेट नहीं किया जा रहा है.
ऐसा कहा जाता है कि मध्यप्रदेश के इंदौर निवासी जाकिर खान के स्टैंडअप कॉमेडी की खास बात ये है कि इससे मिडिल क्लास फैमिली खुद को बेहद नजदीक पाती है. उनकी कॉमेडी का अंदाज बाकी स्टैंडअप कॉमेडियन से काफी अलग है जिसकी वजह से वह काफी मशहूर हैं. उनका सत्ता, सियासत और धर्म से कोई लेना-देना नहीं रहता. दरअसल, कॉमेडी भी कला की एक ऐसी विधा है जिसके कई रंग होते हैं. कोई जरूरी नहीं कि कॉमेडी के जिस रंग को जाकिर खान जीते हैं उसी रंग को मुनव्वर फारूकी भी जीयें. कोई अपनी कॉमेडी से समाज पर कटाक्ष करता है तो कोई सत्ता और सियासत पर. यही तो हमारे लोकतंत्र और भारतीय संविधान की खूबसूरती भी है कि हर कोई अपने तरीके से अपनी बात को अभिव्यक्त करने के लिए आजाद है. लेकिन यही आजादी जब सत्ता को बर्दाश्त नहीं होता तो आईटी सेल किसी मुनव्वर फारूकी के खिलाफ किसी जाकिर खान को खड़ा कर देता है.
समझना मुनव्वर फारूकी जैसे कॉमेडी कलाकारों को होगा
बहरहाल, कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी का बेंगलुरू में होने वाला शो पुलिस की सलाह पर रद्द किया जा चुका है. कानून-व्यवस्था की आड़ में आगे भी ऐसे शो रद्द होते रहेंगे इससे कोई इनकार नहीं. यही हमारे कानून की धाराओं की मुश्किल खूबसूरती है. लेकिन फारूकी इसी कानून को चुनौती देते हुए कहने से नहीं चूक रहे कि 'मुझे उस जोक के लिए जेल में डाला गया था, जो मैंने कभी कहा ही नहीं. मेरे शो में कुछ भी विवादास्पद नहीं है. लेकिन इसे भी रद्द कर दिया गया. यह अन्याय है.' फारूकी ने दावा किया है कि उनके पास शो का सेंसर सर्टिफिकेट भी है. इसमें कोई भी आपत्तिजनक बात नहीं है. लेकिन पुलिस प्रशासन ने फारूकी की बात नहीं सुनी.
बात उनकी सुनी जिनके आका सत्ता के शीर्ष पर विराजमान हैं. भले ही फारूकी के इस लेटेस्ट शो में कोई आपत्तिजनक कंटेंट नहीं हो, लेकिन फारूकी का अतीत (धमकियों की वजह से पिछले दो महीने में 12 शो रद्द) उसका पीछा नहीं छोड़ रहा है. चूंकि उसके इसी अतीत से दक्षिणपंथी संगठनों की सत्ता की जमीन को खाद-पानी मिलता है, पांच राज्यों में चुनावी सरगर्मियां तेज हो चली हैं. लिहाजा वो तो शोर मचाएंगे ही. समझना मुनव्वर फारूकी जैसे कॉमेडी कलाकारों को ही होगा कि वो अपनी बात को इस तरह से कह जाएं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटने पाए.
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