पाक और चीन का फौजी रुख
कश्मीर के फौजी कमांडर लेफ्टि. जनरल डी.पी. पांडेय के इस कथन से कि विगत फरवरी मास से पाकिस्तान की तरफ से एक बार भी युद्ध विराम का उल्लंघन नहीं किया गया है |
आदित्य नारायण चोपड़ा: कश्मीर के फौजी कमांडर लेफ्टि. जनरल डी.पी. पांडेय के इस कथन से कि विगत फरवरी मास से पाकिस्तान की तरफ से एक बार भी युद्ध विराम का उल्लंघन नहीं किया गया है, दर्शाता है कि हमारे पड़ोसी देश में अन्तर्राष्ट्रीय व द्विपक्षीय समझौतों का सम्मान करने का भाव जग रहा है। इसे हम फौरी तौर पर सकारात्मक बदलाव भी कह सकते हैं। परन्तु इससे हम बेफिक्र नहीं हो सकते क्योंकि पाकिस्तान की पुरानी वादा खिलाफी की आदतों से भी हम अच्छी तरह वाकिफ हैं। ले. जनरल पांडेय के अनुसार सीमा पार से घुसपैठ कराने की वारदातें भी अभी तक केवल दो बार जुलाई व इसी महीने के विगत सप्ताह 'उरी' में हुई है जिसमें हमारे सैनिकों को भी नुकसान पहुंचा है। विगत फरवरी महीने में दोनों देशों के बीच युद्ध विराम पर सहमति बनी थी जिससे सीमा पर पूरी शान्ति व अमन कायम रह सके। दो पड़ोेसी देशों के बीच ऐसा कदम सराहनीय कहा जा सकता है बशर्ते कि इसका पालन ईमानदारी से किया जाए। पाकिस्तान ने इसके बाद अभी तक सदाशयता का परिचय दिया है परन्तु सीमा पार से घुसपैठ कराने के मामले में वह खुद पर काबू नहीं रख सका है और दो बार उसने कश्मीर में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के असफल चेष्टा की है। जनरल पांडेय के अनुसार कश्मीर में मुश्किल से अब 50 से लेकर 60 के बीच पाकिस्तानी आतंकवादी बचे हैं जिनकी कोशिश यह है कि वे कश्मीर में ही युवा लोगों को आतंकवादी बनायें। पाक आतंकवादी खुद हमले करने से बच रहे हैं और एेसा करने के लिए कश्मीरी युवकों को प्रेरित कर रहे हैं। एेसा वे इसलिए कर रहे हैं कि किसी कश्मीरी के आतंकवादी कार्य में मारे जाने पर उसके परिवार का गुस्सा भारतीय सेना के खिलाफ पैदा हो। हमारी फौज ने पाकिस्तान की यह रणनीति समझ ली है और वह बहुत संभल कर कश्मीर की स्थिति को अपने नियन्त्रण में रखे हुए हैं। जाहिर है कि पाकिस्तान कश्मीर के मसले को किसी न किसी तरह सुलगाये रखना चाहता है और इस मुद्दे पर आम पाकिस्तानी को भारत के खिलाफ बरगलाये रखना चाहता है। मगर कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद परिस्थितियों में गुणात्मक अन्तर आ चुका है। यह एेसी हकीकत है जिसे पाकिस्तान भी भीतर से महसूस करता है परन्तु जग जाहिर नहीं करना चाहता। दूसरी तरफ लद्दाख में चीन की सीमा पर जो हो रहा है उस तरफ भी ध्यान दिये जाने की सख्त जरूरत है। पाकिस्तान फिलहाल चीन की गोदी में बैठा हुआ है और उसे लग रहा है कि 1963 में उसने पाक अधिकृत कश्मीर का जो काराकोरम के इलाके वाला 540 वर्ग मील हिस्सा चीन को सौगात में दिया था उसका नतीजा अब भारत के खिलाफ निकलने वाला है। चीन ने लद्दाख के इलाके में भारतीय सीमा में जो अतिक्रमण किया हुआ है उसे वह किश्तों में पीछे हटते हुए खाली करने का नाटक इस अन्दाज से कर रहा है कि इस विवाद पर लगातार भारत व चीन के बीच वार्ताओं के दौर चलते रहें और वह नियन्त्रण रेखा के पास अपनी फौजी अड्डे कायम करता रहे। चीन ने लद्दाख में नियन्त्रण रेखा के पास कम से कम दस फौजी हवाई अड्डे बना लिये हैं। इससे चीन की नीयत का अंदाजा लगाया जा सकता है क्योंकि लद्दाख के क्षेत्र में इस प्रकार सीमा रेखा खींचना चाहता है जिससे पाकिस्तान के साथ उसका फौजी राब्ता बेरोक-टोक तरीके से इस इलाके में भी हो सके और भारत को पाक अधिकृत कश्मीर से लगे अपने फौजी ठिकानों तक पहुंचने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़े। यदि गौर से देखें तो चीन की पूरा लद्दाख रणनीति पाकिस्तान को साथ लेकर अपने उन आर्थिक हितों की साधने की है जो 'सी पाक' परियोजना से बावस्ता हैं। भारत को पाकिस्तान व चीन की असली नीयत के प्रति हमेशा सावधान होकर काम करना पड़ेगा। संपादकीय :आंखें नम हुई...कोरोना काल में नस्लभेदचन्नीः एक तीर से कई शिकारस्पेस टूरिज्म : अरबपतियों का रोमांचबंगाल में तृणमूल और भाजपागुलामी के समय की न्याय व्यवस्थादरअसल चीन ने पाकिस्तान को अपने कन्धे पर बैठा कर जिस तरह समूचे एशिया में अपनी आर्थिक चक्रव्यूह तैयार किया है उसे समझने की जरूरत है । वह अफगानिस्तान में भी पाकिस्तान के रुख का सीधा समर्थन कर रहा है और वहां काबिज तालिबान को भी मदद करने का अभियान छेड़े हुए हैं। पाकिस्तान की हर चन्द कोशिश है कि चीन तालिबान के पक्ष में अन्तर्राष्ट्रीय सहानुभूति बटोरने के सभी संभव उपाय करे जिससे आर्थिक संकट से जूझ रहे तालिबानों की मदद हो सके। परन्तु चीन ने लद्दाख के मोर्चे पर भारत को जिस तरह उलझा रखा है उससे निकलने का एकमात्र रास्ता सीधे चीन से ही बातचीत करके निकल सकता है । चीन भारत पर दबाव बनाने के लिए जो भी हरकतें कर रहा है उसके तार हिन्द महासागर क्षेत्र में नये बनते पश्चिमी देशों के समीकरणों से जाकर भी जुड़ते हैं। अतः भारत को चीन के साथ अपने सम्बन्धों में वह स्पष्टता लानी होगी जिससे पाकिस्तान को थोड़ा पसीना छूटे। पाकिस्तान को भी यह याद रखना होगा कि उसने चीन से दोस्ती बढ़ा कर भारत के साथ दोस्ताना ताल्लुकात को मजबूत करने का एेेसा स्वर्णिम अवसर खो दिया है जिसमें दोनों देश मिल कर पश्चिम एशिया में अपने आर्थिक हितों को मजबूत बना सकते थे। परन्तु पाकिस्तान का वजूद ही वहां की फौज के सहारे हैं और इसकी फौज का वजूद भारत विरोध की वजह से है। इसलिए इस मुल्क के बीमार होने की वजह समझी जा सकती है।