दिल से ​दीये जलाओ

दिवाली अर्थात् दीयों का त्यौहार सबको बहुत-बहुत मुबारक हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि दिवाली खुशियों और सुख समृद्धि का त्यौहार है। इसलिए बधाई तो बनती है। पूरी दुनिया में यह त्यौहार साम्प्रदायिक सद्भाव और प्रेम तथा भाईचारे के बीच महालक्ष्मी की पूजा के साथ मनाया जाता है। यह एक परम्परा है।

Update: 2022-10-23 04:30 GMT

किरण चोपड़ा: दिवाली अर्थात् दीयों का त्यौहार सबको बहुत-बहुत मुबारक हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि दिवाली खुशियों और सुख समृद्धि का त्यौहार है। इसलिए बधाई तो बनती है। पूरी दुनिया में यह त्यौहार साम्प्रदायिक सद्भाव और प्रेम तथा भाईचारे के बीच महालक्ष्मी की पूजा के साथ मनाया जाता है। यह एक परम्परा है। परम्पराओं का निर्वाह होना भी चाहिए। लेकिन दिवाली की इस खुशी जिसे हम आजादी के 75वें साल की अमृत बेला में मनाने जा रहे हैं तो हमें याद रखना होगा कि इस पवित्र त्यौहार की पृष्ठभूमि में बहुत गहरा दर्द छिपा है। लेकिन इसका उल्लेख करने से पहले मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहूंगी कि दिवाली को केवल दीपों का त्यौहार न मानकर इसे दिल से जोड़ कर आगे बढ़ना चाहिए। तीली-माचिस से दीये जलते हैं और हम खुशियां मनाते हैं, परन्तु दीये तो दिल के प्यार से और स्नेह से जलने चाहिएं, जिसकी आज समाज को बहुत जरूरत है। जिस दर्द की मैं दिवाली की पृष्ठभूमि से जोड़कर बात कर रही थी वह ​जीवन के उतार-चढ़ावों को प्रदर्शित करता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का 14 वर्ष का बनवास कितने उतार-चढ़ावों से भरा हुआ था और जब उन्होंने लोगों की भलाई के खातिर दुनिया को शांति का संदेश देने, दुनिया में शानदार व्यवस्था कायम रखने की खातिर इस लम्बे कष्टदायी बनवास के दौरान खुद को सहज बनाकर दुनिया के सामने संदेश दिया तो ऐसे व्यवस्थापक, ऐसे शासक, ऐसे भगवान, श्रीराम ही हो सकते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में कितने भी कष्ट हों, कितने भी चैलेंज हों, उन्हें दूर करते हुए आगे बढ़ते रहना ही ​दिवाली का संदेश होना चाहिए। अंधेरे में जब एक दीया जलता है तो वह दूसरों को राह दिखाने के लिए काफी है। वह सूरज की तरह चमकता तो नहीं लेकिन अंधेरे में उम्मीद की एक किरण जरूर जगाता है। आज देश में ऐसी ही उम्मीदों की किरण जलाए जाने की आवश्यकता है।कुछ मौकों पर हम देखते हैं कि जीवन में कष्ट अलग-अलग ढंग से आते हैं। लेकिन हमें जीना पड़ता है और जीने के लिए साहस और धैर्य के साथ आगे बढ़ना चाहिए। कहा भी गया है कि ''दुनिया में अगर आए हैं तो जीना ही पड़ेगा,

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