जिंदगी वाकई खूबसूरत है, जब तक भरोसा नहीं होता तब तक ही संदेह करें
शनिवार को अलवर से जयपुर जाते हुए जब हम सरिस्का टाइगर रिजर्व से गुजरने ही वाले थे कि हमारे ड्राइवर ने अचानक गाड़ी मोड़ दी
एन. रघुरामन का कॉलम:
इस शनिवार को अलवर से जयपुर जाते हुए जब हम सरिस्का टाइगर रिजर्व से गुजरने ही वाले थे कि हमारे ड्राइवर ने अचानक गाड़ी मोड़ दी, वो भी दाहिने ओर, फिर एक फलों की दुकान के सामने खड़ी कर दी। मैं बेचैन हो उठा क्योंकि अचानक दाहिने मोड़ना गाड़ी चलाने का सही तरीका नहीं है। उसने आगे जो किया उससे मैं और चिढ़ गया। पर मैं शांत रहा और तय किया कि जो हो रहा है, होने दो। वह 20 रु. के कुछ केले लाया।
कोई भी वैसे ज्यादा पके हुए केले नहीं लेता, वो भी तुरंत खाकर खत्म करने लायक, ऊपर से इतने सारे। इसके अलावा मुंबई में मैंने कोई भी दुकानदार नहीं देखा, जो 20 रु. में इतने सारे केले दे दे। मैंने उससे कुछ नहीं पूछा। वह टाइगर रिजर्व की उस खस्ताहाल सड़क पर गाड़ी चलाता रहा, आगे मैंने देखा कि दूसरी कारों से कुछ यात्री बंदरों को केले खिला रहे हैं।
तब जाकर मुझे ड्राइवर का इरादा और खासकर उस ठेलेवाले से उसका अनकहा लेनदेन पता चला। जरूर वो रेगुलर होगा। वो एक जगह रुका, जहां नन्हे बंदर ज्यादा थे। कुछेक नवजात तो अपनी मां के साथ खेल रहे थे, जो कि खुद सड़क किनारे दीवार पर बैठी थी। वे अपनी-अपनी मांओं के हाथ-पैर और पूंछ पकड़कर झूल रहे थे। मां भी उन्हें जाने देने के लिए बहुत सतर्क थी।
वह कारों से उतरते यात्रियों का बहुत ध्यान से मुआयना करती और तब जाकर बच्चों को जाने देती, ताकि वे लोगों की दी हुई खाने की चीजें ले सकें। उनमें से कुछ मांएं अपनी ही भाषा में आपस में बात कर रही थीं और मैं उनकी टोन सुनकर और आंखें देखकर खुद से समझने की कोशिश कर रहा था, मानो वे कह रही हों, 'ये बदमाश है, बच्चों को छेड़ेगा, उसे मत जाने दो', 'उसको जाने दे, बादाम उठा लेगा', 'ये तो कमीना है, पत्थर से मारेगा, भाग' और भी बहुत कुछ।
बंदरों की भाषा समझने की अपनी बुद्धिमानी पर मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था। कुछ नन्हे बंदर अपनी मां की बात अनसुनी करके उनसे झगड़ते हुए नीचे खाना उठाने आ गए। कुछ को खाना भी मिला, तो कुछ को लोगों ने परेशान किया और इसलिए वे खुद के लिए और मां के लिए बिना खाना लिए ही वापस दौड़ गए। फिर उन बच्चों के माथे पर मां की टपली पड़ी, मानो वो कह रही हो, 'बोला था ना, जाना नहीं, वो कमीना है।' पर जितनी देर मैं वहां खड़ा रहा, मैंने देखा कि ज्यादातर बुजुर्ग बंदर वहां हर इंसान पर संदेह कर रहे थे।
मेरा दिमाग घूमने लगा कि यह तर्क हम इंसानों पर कैसे लागू होता है। मेरा मानना है कि लगातार संदेह या शक हमारे जीवन और रिश्ते को बर्बाद कर देता है। विश्वास और शांति आपस में जुड़े हुए हैं। मैं हमेशा कहता हूं, 'मेरे बारे में आपकी राय, मुझसे ज्यादा आपको उजागर करती है क्योंकि आपकी राय आपकी पृष्ठभूमि पर निर्भर करती है, मेरी नहीं।' जो लोग असुरक्षित महसूस करते हैं या हीन भावना रखते हैं, वे शक करते रहते हैं। मेरे लिए 'फैक्ट' पिता है, तो 'फेथ' यानी भरोसा मां है।
मैं हमेशा लोगों के इरादों पर फोकस करता हूं और उस आदमी के काम के आधार अपना अर्थ नहीं निकालता। मैं अपनी बेटी से हमेशा कहता हूं कि तने से लेकर, शाखाओं, पत्तियों, फूलों, फलों तक आम से लदे पेड़ का इस दुनिया पर मौजूद हर इंसान अनुभव के साथ आनंद लेता है, जबकि जड़ें फिर भी जमीन से जुड़ी होती हैं। इसी तरह तुम्हारी अलग-अलग भूिमकाओं में चाहे पत्नी, बहू, मां, भाभी आदि के रूप में तुम्हारा साथ हर कोई पसंद करेगा, पर तुम हमेशा पापा की बिटिया रहोगी, जैसे पेड़ की जड़।
फंडा यह है कि जब तक भरोसा नहीं होता तब तक संदेह करें। पर भरोसे के बाद अपने पालक या सृष्टा पर संदेह करना बंद कर दें और जीवन जैसा जा रहा है, उसका अनुभव लेते हुए खुद को उसके प्रति समर्पित कर दें। जिंदगी वाकई खूबसूरत है।