जिला प्रशासन ने इस मामले में एक इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया है, लेकिन क्या इस हादसे के लिए केवल एक ही व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? क्या हम मानव जीवन का मोल नहीं समझ पा रहे हैं? क्या हम हादसे की गंभीरता नहीं समझ पा रहे हैं? बिना मंजूरी अगर निर्माण हो रहा था, फिर तो स्थानीय स्तर पर तत्काल कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। केवल पटाखे बनाने वालों को ही नहीं, बल्कि इसका अवैध कारोबार करने वालों को भी दबोचना चाहिए। प्रदेश में कानून-व्यवस्था का जब राज है, तब ऐसे अवैध निर्माण व खरीद-बिक्री की जरूरत क्यों है? यहां जिस तरह के पटाखे बनाए जा रहे थे, क्या उनके ग्राहक बिहार के बाहर के हैं? विस्तार में देखना चाहिए कि भागलपुर आधी रात को क्यों थर्रा उठा? अनेक घायलों का इलाज चल रहा है, इनसे भी पूछताछ होनी चाहिए। ऐसा हो नहीं सकता कि यहां विस्फोटक सामग्री के बारे में किसी को न पता हो। क्या अपने देश में लोग ऐसे खतरों के प्रति सजग नहीं हैं? क्या हमने अपने आसपास की आपराधिक गतिविधियों की ओर से आंखें मूंदना सीख लिया है? फोरेंसिक टीम और खुफिया पुलिस पर जिम्मेदारी है कि हादसे की पूरी सच्चाई सामने आए।
सूचना यह भी सामने आई है कि पीड़ित परिवारों में से एक पटाखा बनाने का काम करता था और इनके घर पहले भी विस्फोट की घटना हो चुकी है। इस सूचना के साथ ही यह मामला और भी गंभीर हो जाता है। काजवलीचक आखिर 14 साल बाद दोबारा भीषण विस्फोट का गवाह कैसे बना है? उस विस्फोट में भी तीन लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हुए थे। उस विस्फोट से भी भागलपुर दहल गया था, लेकिन शायद प्रशासन की तंद्रा नहीं टूटी, इसलिए फिर यह हादसा हो गया। यथोचित कार्रवाई नहीं हुई होगी, इसलिए अपराधियों और अवैध धंधा करने वालों को फिर कहर ढाने का मौका मिल गया। पुलिस किसी भी राज्य की हो, ऐसे खतरनाक अपराधों या कृत्यों के प्रति उसका संवेदनशील होना बहुत जरूरी है। मामला पटाखे या बंदूक निर्माण का हो या अवैध शराब निर्माण का, फौरी कार्रवाई करके अपराधियों को छोड़ने की कुप्रवृत्ति का अंत होना चाहिए। आज समाज में किसी भी तरह के अपराध को अगर हम छिपाएंगे, तो स्वयं अपने भविष्य के लिए ही बड़े खतरे पैदा करेंगे।